जो व्यक्ति हर पल अपने प्रति ईमानदार रहता है, वास्तव में वही सच्चा जीवन जीता है। संत कबीरदास ने कहा है कि ईश्वर ने जिस तरह पवित्र आत्मा के साथ आपको पृथ्वी पर भेजा था, ठीक उसी तरह उन्हें दे देना, बिना किसी दाग के। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपने लिए नहीं, बल्कि भगवान के लिए काम करे। जो व्यक्ति ईश्वर को कभी नहीं भूलता और सदैव अपने कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक निभाता है और बदले में जो मिल जाए उसी में संतुष्ट हो जाता है, वही सच्चा और सुखी है। गौतम बुद्ध ने कहा कि कामी व्यक्ति अनेक बार मरता है। जितनी कामना, उतनी बार मृत्यु। मनुष्य की हर कामना एक जन्म बन जाती है, साथ ही हर कामना एक मृत्यु भी बन जाती है। यही कारण है कि अनेक राजाओं और महापुरुषों ने अपने वैभव का त्याग करके सुख की तलाश में संन्यास ले लिया। संतोष जीवन है और असंतोष मृत्यु।
संतोष का मतलब है कि अपने कर्म को पूरे उत्साह से करना और उससे जो भी फल मिले उससे संतुष्ट हो जाना है। मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा दुश्मन उसके विचार ही हैं। मनुष्य को यह जानना-समझना होता है कि कौन-सा विचार उसका मित्र है और कौन-सा शत्रु। सकारात्मक विचार अपने साथ कई दोस्तों को लाता है और नकारात्मक विचारों वाला व्यक्ति दुश्मनों से घिर जाता है। असल में सभी लोग जीवन को अपने-अपने नजरिये से देखते हैं। कोई कहता है कि जीवन एक खेल है, कोई कहता है कि जीवन ईश्वर का दिया हुआ उपहार है, कोई कहता है कि जीवन एक यात्रा है, कोई कहता है कि जीवन एक दौड़ है। कहने का तात्पर्य यही है कि हम जिस नजरिये से जीवन को देखेंगे, हमारा जीवन वैसा ही बन जाएगा। लेकिन सच्चा जीवन वही जी सकता है जो अपने जन्म और मृत्यु के बीच के समय को भरपूर हास्य और प्रेम से भर दे। अक्सर मनुष्य अपने भविष्य और अतीत के बारे में सोचता रहता है और इस चक्कर में वह वर्तमान की कोई परवाह नहीं करता, जबकि जीवन वर्तमान में ही है। अगर अतीत में मनुष्य से कोई गलती हुई भी है तो उसे उससे सबक लेकर अपने वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को भविष्य में आने वाले संकटों को देखकर घबराना नहीं चाहिए। वर्तमान को आनंदित बनाने के लिए मनुष्य को कोई भी कार्य शुरू करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर गौर कर लेना चाहिए।
[ आचार्य अनिल वत्स ]