प्राय: यह समझा जाता है कि जो व्यक्ति सुसंपन्न होता है, वह प्रसन्न रहता है। इसके साथ ही प्रतिभावान, दूरदर्शी, कुशल व सफलता अर्जित करने वाले लोगों कोभी प्रसन्न माना जाता है। प्रसन्नता इन्हीं परिस्थितियों की प्रतीक है। वास्तव में प्रयत्नपूर्वक अर्जित स्वभाव विनिर्मित किया जा सकता है। स्वभाव की प्रतीति चेहरे पर झलकने वाली भाव-भंगिमा के आधार पर परिलक्षित होती है। क्रोधी, खिन्न, उद्विग्न व निराश व्यक्ति अपनी मनोदशा चेहरे के माध्यम से प्रकट करते हैं। यह पता लगाना कठिन है कि वस्तुत: कौन व्यक्ति किन परिस्थितियों में निर्वाह कर रहा है। वास्तविक जानकारी तो मुखमंडल की भाव-भंगिमा प्रकट करती है। एक बड़ी दुकान के भीतर क्या माल रखा है, यह पता लगाना तो सड़क चलते लोगों के लिए कठिन है, पर उस दुकान पर टंगे बोर्ड पर लिखे अक्षरों से यह जान लिया जाता है कि यहां क्या मिलता है, क्या बनता है, क्या बिकता है? इसी तरह मुखमंडल पर झलकती भाव-भंगिमा यह बताती है कि इस व्यक्ति का स्तर, स्वभाव और वैभव किस प्रकार का होना चाहिए।

प्राय: लोग स्वयं को महत्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए कीमती वस्त्र धारण करते हैं। समाज में बड़प्पन का परिचय देने के लिए विभिन्न प्रकार का दिखावा करते हैं। इस सबकी अपेक्षा यह ज्यादा सरल व फलदायी है कि स्वभाव को हंसता-मुस्कराता, खिलखिलाता बनाया जाए। यह कोई कठिन बात नहीं है। अल्प अभ्यास से यह उपलब्धि अर्जित की जा सकती है। यह किसी भी शारीरिक व्यायाम की तुलना में सबसे सरल व तुरंत फलदायी है। इस क्रिया में केवल होंठों व नेत्रों को सही स्थिति में रखने की चेष्टा करनी पड़ती है। दर्पण इस तथ्य का निर्णय दे सकता है कि मंद मुस्कान को अपनाकर आपने अपनी सुंदरता में कितनी वृद्धि की है? व्यक्तित्व में कितना निखार लाने में सफल रहे हैं और अन्य लोगों पर अपने व्यक्तित्व की कितनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं?

[डॉ. विजय प्रकाश त्रिपाठी]

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर