अपने आजू-बाजू देखिये। कुछ दिखा! चलिए, हम बता देते हैं। आपको जो भी दिख रहा होगा, वह एक दशक पहले वैसा नहीं था। तह में जाते हैं। जो भी आपने देखा उसका रंग हरा नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि यह तो जादू है। अखबार के दफ्तर में बैठे-बैठे कैसे किसी ने बूझ लिया कि वहां से बहुत दूर कोई अपनी आंखों से क्या देख रहा है। परेशान न होइए, हम कोई त्रिकालदर्शी नहीं हैं। इसका सटीक उत्तर कोई भी दे सकता है। अब यह सार्वभौमिक जवाब बन चुका है। अपवाद छोड़ें तो अब हर जगह से प्रकृति और हरियाली गायब हो चली है।

जहां कुछ साल पहले घने जंगल हुआ करते थे, आज कंक्रीट की अट्टालिकाएं अट्टहास कर रही हैं। पानी से लबालब भरे ताल, पोखर, झीलें अमूमन हैं ही नहीं, जो हैं वे सूखे-उजाड़ पड़े हैं। मौसम बदल रहा है। जीव-जंतु गायब हो रहे हैं। नई-नई बीमारियां दम घोंट रही हैं। समुद्र उफन रहा है। पर्यावरण के हर क्षेत्र को हम असंतुलित करते जा रहे हैं। इन

सभी गड़बड़ियों का एक मात्र कारण है पर्यावरण के कुदरती नियमों से की गई छेड़छाड़।

हमने स्वार्थों के लिए प्रकृति का इतना दोहन किया लेकिन बदले में उसे उतना दे नहीं सके। हम प्रकृति से अलग होते चले गए। हमारे अस्तित्व की जिम्मेदार धरती के अस्तित्व पर हम सबसे बड़ा खतरा साबित हो रहे हैं। लेकिन धरती नहीं तो हम भी नहीं होंगे। लिहाजा पर्यावरण को बचाते हुए अपनी जरूरतों को पूरी करने की कला हमें जल्द सीखनी होगी। देश-दुनिया में ऐसे तमाम लोग, संस्थाएं इसे अपना सरोकार बना चुकी हैं। आइए, जनहित जागरण अभियान के तहत दैनिक जागरण के पर्यावरण संरक्षण के सरोकार को आत्मसात करते हुए प्रकृति को बचाएं।