डॉ. उदितराज

वस्तु और सेवा कर लागू हो चुके एक पखवाड़ा होने जा रहा है, लेकिन देश के कुछ हिस्सों में उसका विरोध जारी है। कहीं-कहीं पर यह विरोध धरना-प्रदर्शन के रूप में भी हो रहा है। प्रश्न यह पैदा होता है कि जब जीएसटी एक दशक से प्रस्तावित था और बीते कुछ समय से यह स्पष्ट था कि उसका लागू होना तय है तो फिर उसके विरोध का क्या मतलब? दुनिया के अन्य समाज की तरह भारतीय समाज में परिवर्तन के प्रतिप्रतिकूल रहने की एक प्रवृत्ति है, लेकिन सिवाय उन्हीं मामलों में जिनमें खुद का स्वार्थ न हो। जब शुरू-शुरू में मोबाइल कंपनिया आईं तो उनकी ओर से ऐसे भी विज्ञापन आते थे कि एक दिन हर व्यक्ति केहाथ में मोबाइल होगा, चाहे वह मजदूर हो या किसान? तब लोग इसे मजाक समझते थे कि भला अनपढ़ लोग इसे कैसे इस्तेमाल कर पाएंगे? लोगों का यह मानना था कि मोबाइल कंपनियां बढ़-चढ़कर विज्ञापन दे रही हैं। उनका यह भी सवाल था कि आखिर मोबाइल में अंग्रेजी में लिखे अंकों-शब्दों को पढ़कर फोन करना या संदेश भेजना सबके लिए आसान कैसे हो जाएगा? चूंकि यह एक आवश्यकता थी इसलिए क्या पढ़ा-लिखे क्या अनपढ़, सभी मोबाइल का इस्तेमाल करने लगे। कभी-कभी हम यह पाते हैं कि किशोरवय के अनपढ़ मोबाइल के बारे में जितनी जानकारी रखते हैं उतनी पढ़े-लिखे नहीं रखते, क्योंकि यह उनकी रुचि और जरूरत की वस्तु हो गई है। उनके पास समय होता है तो वे मोबाइल पर गाने, फिल्म और समाचार आदि भी सुनते और देखते हैं।
अगर जीएसटी को केवल स्वयं के उपयोग के लिए नहीं, भविष्य और देश के परिप्रेक्ष्य में देखेंगे तो कुछ भी मुश्किल नहीं। इस बात का बड़ा जोर-शोर है कि जीएसटी से परेशानी बढ़ गई है। यह समझना होगा कि शुरुआत में किसी भी अच्छे काम में मुश्किलें तो आती ही हैं। मोबाइल फोन का उदाहरण यह समझने के लिए उपयुक्त है। शुरू में कॉल दर बहुत महंगी थी और बात करते-करते कॉल कट भी जाती थी, फिर भी लोग मोबाइल फोन की उपयोगिता से परिचित होते गए और आज स्थिति यह है कि करीब-करीब सबके हाथ में मोबाइल फोन है। सामान्य मोबाइल फोन के बाद जब स्मार्ट फोन आया तो बहुत से लोगों को वह एक नया झंझट लगा, लेकिन अब स्मार्ट फोन धारकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यदि हम गौर करें तो पाएंगे कि पहले की कर प्रणाली कहीं अधिक जटिल थी। चूंकि उस प्रणाली में टैक्स से बचने की गुंजाइश ज्यादा थी इसलिए भी शायद वर्तमान व्यवस्था यानी जीएसटी का विरोध किया जा रहा है। अभी जो तमाम जटिलता बताई जा रही है वह सही नहीं। जो व्यक्ति एक बार बेचेगा उसे ही फार्म भरना पड़ेगा। खरीददार को उसी को डाउनलोड करना है और फिर दोनों का संग्रह। इस तरह प्रत्येक स्तर पर सिवाय शुरुआत की बीच की कड़ी के अलावा बाद वालों को डाउनलोड ही करना है।
हमारे देश में जब भी समाज और देश के भले के लिए कोई काम करने की बात आती है तो एक वर्ग की ओर से उसमें सारी जटिलताएं देखी जाने लगती हैं। कई बार यह महज विचारधारा के चलते किया जाता है। आर्थिक और वित्तीय मामलों में कोई नई नीति आते ही इंस्पेक्टर राज, कागजी कार्यवाही का रोना भी रोया जाने लगता है, लेकिन जब वही काम स्वयं के लाभ के लिए करना हो तो सारी कठिनाई आसान लगने लगती है और कई बार तो हम पड़ोसी को भी हवा नहीं लगने देते कि हमने इतना कठिन काम कर लिया। निजीकरण, भूमंडलीकरण, मुक्त अर्थव्यवस्था के कुछ नुकसान भी हैं, जैसे रोजगार का कम होना और पूंजी का संग्रह कुछ लोगों के हाथों में जाना। अधिकाधिक लाभ कमाने के लिए तकनीक का ज्यादा उपयोग करके उत्पादन बढ़ाने की होड़ लगी रहती है और इसका प्रतिकूल असर यह होता है कि कम से कम कर्मचारी की जरूरत पड़ती है, लेकिन जीएसटी से कुल सकल घरेलू उत्पाद में इजाफा होगा और इससे रोजगार की बढ़ोतरी होना तय है। न केवल रोजगार बढ़ेगा, बल्कि इससे प्रत्यक्ष कर में भी काफी इजाफा होगा। जब दुनिया में लगभग 160 देश जीएसटी लागू कर चुके हैं तो भारत कितने दिनों तक इससे बचे रह सकता था? जीएसटी से पूरा देश एक बाजार हो गया है और तमाम वस्तुएं सस्ती भी हो रही हैं। वस्तुएं सस्ती होने का मतलब है आम आदमी को फायदा। यह देखा जा रहा है कि प्रत्येक राज्य की सीमा पर हजारों ट्रकों का जो जाम होता था उससे मुक्ति मिल गई है और इससे न केवल व्यापारियों को लाभ मिल रहा, बल्कि आवागमन करने वालों को भी।
यह भी समझने की जरूरत है कि डिजिटाइजेशन जितना बढ़ेगा उतना ही भ्रष्टाचार कम होगा। इसका असर केवल वस्तु और सेवा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सब जगह पर होगा। इसकी वजह से कुछ लोगों को इच्छा न होते हुए भी डिजिटाइजेशन की ओर जाना होगा, लेकिन देश हित में कभी-कभी ऐसा करना पड़ता है। ऐसा लगता है कि जीएसटी के विरोध का मुख्य कारण यह है किजो लोग लगभग 30 प्रतिशत कर न अदा करके कच्चे में काम करते थे अब उन्हें पक्के में करना पड़ रहा है। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि जितना ज्यादा पक्के में खरीद और बिक्री खाताबही में दिखाई जाएगी उतना ही व्यापार में इजाफा होगा। बहुत लोग व्यापार करने के लिए पूंजी इसलिए नहीं दिखा पाते हैं, क्योंकि उनके पास कालाधन तो है, लेकिन सफेद नहीं और इसलिए कभी हवाला का सहारा लिया जाता है, कभी दान का और कभी कृषि आय का। दुनिया में जो देश हमारे देखते-देखते हमसे बहुत आगे निकल गए उन्होंने कच्चे में नहीं, बल्कि पक्के में काम किया है। दक्षिण कोरिया की प्रति व्यक्ति आय हमसे 26 गुना अधिक है तो इसीलिए कि इस देश में सारे काम पारदर्शी तरीके से होते हैं।
यह मोदी सरकार की इच्छाशक्ति थी कि उसने जीएसटी लागू कर दिया। सरकार की कोई नीति लागू करने से पहले ही क्यों कुछ लोग यह मान बैठे कि इससे व्यापार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा? जो काम दुनिया के तमाम देशों में हो चुका है और वह भी सफलता से तो उसे हम करने से क्यों डर रहे हैं? स्पष्ट है कि जीएसटी पर हायतौबा की एक वजह तो यह है कि अब कच्चे में काम करना मुश्किल हो जाएगा और दूसरी यह कि हम भारतीय परिवर्तन को अपनाने की प्रवृत्ति नहीं रखते। इस प्रवृत्ति से जितनी जल्दी बाहर निकलें, अच्छा होगा। यह युग तकनीक का है और तकनीक तेजी से बदलती है। यदि हम समय के साथ नहीं चले और परिवर्तन के प्रति लचीले नहीं रहे तो मुश्किलें कम होने का नाम नहीं लेंगी।
[ लेखक भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी एवं लोकसभा के सदस्य हैं ]