जेपी नड्डा

हम सभी जानते हैं कि हमारा स्वास्थ्य हमारे आसपास के वातावरण और हमारी जीवनशैली से प्रभावित होता है। एक समय हमारे पूर्वज संक्रमण जनित बीमारियों जैसे प्लेग, चेचक, कुष्ठ रोग और रेबीज आदि से भयभीत रहते थे। शोधकर्ताओं ने इन संक्रामक बीमारियों का बारीकी से अध्ययन किया और उससे मिले ज्ञान को अपनी आने वाली पीढ़ियों को दिया। अतीत में संक्रमण से मुकाबला करने का मुख्य तरीका यह था कि बीमारियों से पीड़ित लोगों को अक्सर समाज से अलग करके अकेले स्थान पर एक दुखदायी मौत मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। समय के साथ टीकाकरण और औषधीय पौधों का इस्तेमाल शुरू हुआ। इसका व्यापक लाभ मिला और लोगों का नजरिया बदला। जल्द ही संक्रामक रोगों से सुरक्षा और उनकी रोकथाम पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा। आज वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास ने कई घातक रोगों के प्रभाव को कम किया है। पूरी दुनिया में लाखों लोगों की जान बचाने के लिए कुछ सालों में ही टीकों को दुनिया के सबसे सफल और प्रभावी स्वास्थ्य उपायों में से एक के रूप में मान्यता मिली है। विश्व स्वास्थ्य संसद ने मई, 2012 की एक बैठक के दौरान विश्व प्रतिरक्षण सप्ताह यानी वल्र्ड इम्यूनाइजेशन वीक का समर्थन किया। तब से अब तक पूरी तरह से प्रतिरक्षण यानी टीकाकरण के महत्व और बाल स्वास्थ्य में इसकी भूमिका के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से अप्रैल के अंतिम सप्ताह को दुनिया भर में विश्व प्रतिरक्षण सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।
पिछली शताब्दी में टीकाकरण से होने वाले स्वास्थ्य लाभ सार्वजनिक रूप से कई बार उपयोगी सिद्ध हुए हैं। जन टीकाकरण के कारण स्माल पॉक्स यानी चेचक अब एक अतीत की बीमारी हो गई है। जब भी महामारियां फैलती हैं तो वैज्ञानिकों को उनके लिए टीके की खोज करने का काम सौंपा जाता है, चाहे वह सार्स, ईबोला या एच1एन1 हो। उच्च टीकाकरण कवरेज ने कई संक्रामक रोगों को मिटा दिया है। हालांकि कुछ विकसित देशों में टीकाकरण के कम कवरेज की वजह से संक्रामक बीमारियों का फिर से उभार देखा जा रहा है। टीके की सफलता के हाल के उदाहरणों में से एक भारत है जो अब सफल टीकाकरण अभियानों और एक मजबूत निगरानी नेटवर्क के बाद पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया गया है।
टीकाकरण तभी प्रभावी होता है जब वहां कुछ बुनियादी शर्तें पूरी हों। जैसे-एक सुरक्षित, प्रभावी और सस्ता उत्पाद, बड़े पैमाने पर समाज को एकजुट करके सूचित करना, माता-पिता को शिक्षित और उनसे संवाद करना और अंत में सावधानीपूर्वक योजना बनाना और उसे अंजाम देना। यह सर्वोत्तम अभ्यास भारत के यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम का अभिन्न अंग हैं। लाभार्थियों की संख्या के अनुसार वैक्सीन की मात्रा के उपयोग, टीकाकरण सत्रों की संख्या, भौगोलिक प्रसार और क्षेत्रों की विविधता को कवर करने के आधार पर यह दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। यह टीकाकरण कार्यक्रम जो छह टीकों से शुरू किया गया था, 11 घातक बीमारियों से बचाव करता है। इसमें अब रोटावायरस डायरिया, हेमोफिलस इनफ्लुएंजा टाइप बी (एचआइबी) निमोनिया के खिलाफ नए टीकों को भी जोड़ा जा रहा है। निमोनिया और मेनिंजाइटिस के खिलाफ एक नया टीका शीघ्र ही शुरू होने वाला है। मिशन इंद्रधनुष को पहली बार दिसंबर, 2014 में शुरू किया गया था जिसमें उन बच्चों को पूरी तरह से प्रतिरक्षित करने का लक्ष्य रखा गया जिनका टीकाकरण या तो हुआ ही नहीं या फिर आंशिक रूप से हुआ है और विशेष रूप से उन जिलों में जहां पहुंचना मुश्किल होता है। पहले तीन चरणों में 28.7 लाख मिशन इंद्रधनुष सत्रों में 35 प्रांत और संघशासित प्रदेशों के 497 जिलों में 210 लाख बच्चों को टीका लगाया गया है जिनमें से 55 लाख बच्चों को पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया गया है। इसके अलावा इसी साल फरवरी में सरकार ने मिशन इंद्रधनुष के चौथे चरण को शुरू किया जो पूर्वोत्तर के प्रांतों पर केंद्रित है। मिशन इंद्रधनुष के तहत अब तक भारत भर में कुल 528 जिलों को कवर किया गया है। हालांकि इन उपलब्धियों के बावजूद देश में एक बच्चा हर रोज वैक्सीन से बचाव करने योग्य बीमारी के कारण अपना जीवन खो देता है।
भारत में पिछले छह वर्षों में टीकों और टीकाकरण के माहौल में व्यापक बदलाव देखा गया है। 2009 से पहले 1985 में छह रोगों मसलन टीबी, पोलियो, टेटनस, खसरा आदि के खिलाफ यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम की स्थापना होने के बाद से कोई नई वैक्सीन राष्ट्रीय स्तर पर पेश नहीं की गई थी। 2010-2016 के बीच पेंटावैलेंट वैक्सीन (हेपेटाइटिस बी, हेमोफिलुस इनफ्लुएंजा टाइप-बी, डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस टीकाएं), निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (आइपीवी), रोटावायरस टीके (आरवीवी) और खसरा रूबेला (एमआर) वैक्सीन को पेश किया गया। इनमें पेंटावैलेंट वैक्सीन को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया गया है। जहां रोटावायरस डायरिया 78,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है वहीं निमोनिया 1.8 लाख से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि ये नए टीके बच्चों को स्वस्थ और बेहतर जीवन जीने में मदद करेंगे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि देश के हर बच्चे की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच हो, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति ने इस साल मार्च में देश के स्वास्थ्य लक्ष्यों को आगे बढ़ाना तय किया। इस नीति में बीमारी की रोकथाम और स्वस्थ जीवन पर जोर देने के साथ-साथ बीमारी में देखभाल से कल्याण तक पर जोर दिया गया है। यह नीति स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के प्रयासों को भी ध्यान में रखेगी जो मजबूत निगरानी नेटवर्क के माध्यम से बीमारी के बोझ को कम करेगी। वास्तव में यह एक संवेदनशील सार्वजनिक प्रणाली है जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पूरी तरह सक्षम है। इसका उद्देश्य समाज के वंचित लोगों को सस्ती, गुणवत्तापूर्ण और देखभाल वाली चिकित्सा प्रणाली प्रदान करना है।
नई स्वास्थ्य नीति यह उम्मीद जगाती है कि इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र पर जीडीपी के 2.5 प्रतिशत हिस्से को खर्च करेगी। भारत सरकार महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण को सर्वाधिक प्राथमिकता देती है। बच्चों के स्वस्थ जीवन और उनके उत्थान के लिए एक बेहतर कल के निर्माण की दिशा में सरकार आशा करती है कि प्रत्येक देशवासी इस नीति का समर्थन करेगा।
[ लेखक केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हैं ]