राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए नौकरशाहों व राजनेताओं में जबरदस्त सामंजस्य जितना जरूरी है, उतना ही आवश्यक है राजनीति से इतर तरक्की की ओर तवज्जो देना। लेकिन हिमाचल में कुछ अर्से से जिस तरह प्रशासनिक अफसर, पार्टी या यूं कहें नेताओं के 'ब्रांडÓ हो रहे हैं उससे कहीं न कहीं राज्य की सेहत पर उस दौर में असर पड़ रहा है जब प्रदेश के युवा को समझने की जरूरत है, सड़क हादसों की चीखोपुखार पर ध्यान देना अनिवार्य है। लेकिन जब उम्र दराज नेताओं को ऐसी ब्यूरोक्रेटिक लाठी की जरूरत पडऩे लगे जिससे राजकाज सुगमता से चलता रहे, तो मामला सहज ही समझा जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि हिमाचल में अफसर अपने-अपने समय के मंत्रियों या मुख्यमंत्रियों के राजदार अभी से बने हैं बल्कि यह परंपरा बरसों से चली आ रही है और अपनी निष्ठाओं का फल शासन चलाने वाले सेवानिवृत्ति के बाद भी बखूबी खाते आएं हैं। ऐसे में अब ताजा पसंद या नापसंद की कहानी कोई नई नहीं है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि बड़ी कुर्सी यानी मुख्य सचिव के पद के लिए अफसरों में भीतर ही भीतर जो कसमसाहट है वह धीरे-धीरे खुलकर सार्वजनिक हो रही है। यही कारण है कि किसी के गुण तो किसी के दोष का आकलन होने लगा है। यह प्रक्रिया तब तक चलने की संभावना है जब तक वर्तमान मुख्य सचिव 1978 बैच के आइएएस पार्था सारथी मित्रा सेवानिवृत्त होंगे।
दरअसल हिमाचल प्रदेश में ऐसा बहुत ही कम बार हुआ है जब वरिष्ठता को नजरअंदाज करके जूनियर अफसर को मुख्य सचिव लगाया गया हो। लेकिन दूसरे राज्यों के देखा देखी यहां भी इस पद के लिए तर्क या कुतर्क बन रहे हैं। 31 मई को पश्चिम बंगाल काडर के मुख्य सचिव रिटायर होंगे और तब किसे यह कुर्सी मिलेगी, इस पर मंथन ब्यूरोक्रेसी में खूब रंग ले रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं परंतु इशारों में कई संकेत दे चुके हैं कि कौन अगला मुख्य सचिव होगा। इसीलिए अफसरों में बेचैनी भी बढ़ गई है।
राज्य में पी. मित्रा के अलावा करीब दस अतिरिक्त मुख्य सचिव है। इनमें वरिष्ठता में दीपक सानन सबसे ऊपर हैं, जबकि 1982 बैच के दो और नौकरशाह हैं। इनमें अजय मित्तल, विनीत चौधरी हैं। जिनका कार्यकाल क्रमश: 31 जनवरी 2017, 28 फरवरी 2018 और 30 अप्रैल 2018 तक का है। इसके बाद 1983 बैच के एसीएस में उपमा चौधरी, आसाराम सिहाग व विद्या सागर फारका हैं। यह भी क्रमश: 30 सितंबर 2018, 31 दिसंबर 2019 व 31 अक्तूबर 2019 को सेवानिवृत्त होंगे। इसके बाद तरुण श्रीधर, पीसी धीमान, नरेंद्र चौहान, श्रीकांत बाल्दी, संजीव गुप्ता व मनीषा नंदा भी अतिरिक्त मुख्य सचिव बन चुके हैं। हालांकि बताया जाता है कि नियमों में यह जरूरी नहीं कि वरिष्ठ को ही सर्वोच्च पद मिले। लेकिन कई दशक पहले आइएएस आरके आनंद ने अतर सिंह नौकरशाह से आगे बढ़कर मुख्य सचिव पद पाया था। लेकिन परंपरा मूलत: वरिष्ठता की बनी रही। यहां तक कि इस बार जब वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने बंगाल काडर के सुदृप्त रॉय मुख्य सचिव को ही रखा हालांकि वह पूर्व में भाजपा सरकार के दौरान मुख्य सचिव बने थे। परंतु अब की बार हालांकि आधिकारिक निर्णय आना बाकी है पर राजनीति की कड़वाहट का असर नौकरशाहों तक पर पड़ा है। वरिष्ठता में दीपक सानन पर राज्य सरकार का एचपीसीए भूमि मामले में डला फंदा उनके रास्ते का रोड़ा बना है या बनाया गया है, परंतु इस गतिरोध को दूर किया नहीं गया है तब इसके मतलब बिलकुल साफ हैं। हालांकि शानन छुट्टी पर जा चुके हैं और अपनी चार्जशीट पर आरटीआई की जंग जारी है। मित्तल दिल्ली में सचिव सूचना एवं प्रसारण बन गए हैं लिहाजा उनकी ओर से कोई कठिनाई नहीं। गलियारों में इसके बाद वरिष्ठता में कानूनी डिग्री धारक विनीत चौधरी है। सीधे-सीधे वह किसी के निशाने पर नहीं है परंतु दिल्ली में तैनाती के दौरान विरोधी मीन-मेख निकाल अपनी दलीलें सत्ता के गलियारों में पहुंचाने में कोर-कसर नहीं रख रहे। सिहाग चूंकि रक्षा मंत्रालय में बेहतर पद पर है लिहाजा विनीत चौधरी की पत्नी उपमा चौधरी व वीसी फारका एक बैच के बचते हैं। फारका वर्तमान में वीरभद्र सिंह के प्रधान निजी सचिव है और पूरे प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण कार्य भी वही देख रहे हैं। केंद्रीय केसों का शिकंजा व सीबीआई का प्रभाव जब-जब वीरभद्र सिंह पर पड़ा, तब सरकारी प्रशासनिक कार्यों में फारका सबसे भरोसेमंद रहे।
वीरभद्र की कार्यप्रणाली में न सिर्फ राजनीति में बल्कि शासन में भी निष्ठाओं को तवज्जो मिलती रही, इसी फार्मूले पर फारका बिलकुल फिट बैठते हैं। हालांकि मुख्यमंत्री सभी खास कर नौकरशाहों को विश्वास में लेकर चलते ही हैं लेकिन अपनी टीम की ग्रोथ पर भी वह खासा ध्यान देते हैं। इसीलिए भी पूर्व में प्रधान सचिव एसके बीएस नेगी की सेवानिवृत्ति से पहले बहुतेरे एसीएस की फौज खड़ी हो गई और फिर यही सुशील कुमार, भीमसेन नेगी विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्ति के बाद तैनात कर दिए गए। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भी अपने प्रधान निजी सचिव रहे भीम सेन को सेवानिवृत्ति में आते आते मुख्य सूचना आयुक्त का पद दे दिया था। फिलहाल सीआइसी व निजी विवि रेगूलेटरी कमीशन की कुर्सियां भी खाली हैं। कहां कौन सा नौकरशाह जमेगा यह चंद दिन बाद स्पष्ट हो जाएगा लेकिन प्रशासनिक सियासत ठीक वैसे हिचकोले खा रही है जैसे चुनाव नतीजे आने से पहले की पीड़ा।
हरियाणा, पंजाब या पश्चिम बंगाल की तरह जूनियर सीएस बनेगा या नहीं यह कम से कम मुख्यमंत्री के दिलो दिमाग में तय हो चुका है लेकिन देखना यह होगा कि हिमाचल को बार-बार अलविदा कहते आए नौकरशाह कितनी शिद्दत से सरकार का कामकाज में साथ देते हैं या फिर नाराजगी की ओढऩी में सिमटे रहेंगे या नौकरशाहों की भावनाओं का सम्मान करके वरिष्ठता को जगह मिलेगी? जो भी हो परंतु विकास की पैरवी नए मुख्य सचिव को चुनावी साल में करनी होगी वर्ना अफसरी खिट-पिट में सुदृप्त रॉय या पी. मित्रा की भांति अपनी सेहत ही नहीं प्रदेश की सेहत पर भी असर न पड़े।
(लेखिका डॉ, रचना गुप्ता दैनिक जागरण की हिमाचल की राज्य संपादक हैं।)