सामान्यत: अध्यात्म का अर्थ आस्तिकता होता है। आस्तिकता का अर्थ है, ईश्वर पर विश्वास और ईश्वर पर विश्वास का अर्थ है परमसत्ता का अस्तित्व मानना। यह परमसत्ता न्याय करने वाली, सर्वव्यापक और कर्मफल के अनुसार व्यक्ति को उत्थान-पतन के प्रति भी प्रेरित करती है। वहीं अध्यात्म का शाब्दिक अर्थ है-आत्मा से संबंध, आत्मा-परमात्मा संबंधी विचार, आत्मबोध आदि। ईश्वर-तत्व की प्राप्ति होने पर व्यक्ति चेतन व सहज हो जाता है, क्योंकि वह अविनाशी, सनातन और परमसत्ता का ही अंश है। व्यक्ति का अध्यात्म से संपर्क होते ही चित्ता की चंचलता समाप्त हो जाती है, बुद्धि पूर्णरूप से नियंत्रित हो जाती है और काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि मनोविकारों से मुक्ति मिल जाती है। आध्यात्मिक ऊर्जा अर्जित होते ही व्यक्ति का अन्त:करण निर्मल, दृढ़ संकल्प से युक्त, सात्विक और देवत्व के गुणों से परिपूर्ण हो जाता है। भारत वह दिव्य-भूमि है, जहां धन से अधिक धर्म, भोग से अधिक योग और संस्कारयुक्त सदाचार को महत्व दिया जाता है। मानव-जीवन प्रभु की करुणा से समस्त जीवधारियों में श्रेष्ठतम उपलब्धि है। अध्यात्म मानव जीवन को व्यवस्थित रूप से जीने की वह वैज्ञानिक पद्धति है, जो व्यक्ति को आनंद, संपन्नता, समृद्धि, सुख और शांति प्रदान करता है, लेकिन भ्रमवश 'अध्यात्म' का सही अर्थ न जानने वाले कुछ लोगों का कहना है कि लौकिक जीवन में अध्यात्म का कोई महत्व नहीं है और यह विषय तो योगियों और ऋषियों से ही संबंधित है।

ऋषि-महर्षिगण भी पूर्व में अपने अंत:करण को निर्मल बनाने के बाद अपनी आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करते हुए उच्च साधना में संलग्न रह कर ही मंत्रदृष्टा कहलाए। अध्यात्म ही उन महान तपस्वियों के जीवन की आधारशिला बनी। अध्यात्म-विज्ञान ही व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्रेरणा देता है। परमात्मा कभी किसी प्राणी का अमंगल नहीं चाहता, बल्कि उसकी सभी पर समान दृष्टि रहती है। यदि व्यक्ति गंभीरता से विचार करते हुए स्वयं को जानने का प्रयास करे तो उसे परमात्मा की कृपा की अनुभूति होने लगेगी।

[डॉ. राजेंद्र दीक्षित]

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