रजाक रहमान

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का समाधान आपसी समझौते द्वारा निकालना भले ही आज उतना मुश्किल दिखता हो जितना भारत के लिए फिलहाल फीफा वर्ल्ड कप जीतना, फिर भी देश को न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा ही नहीं करते रहना चाहिए, क्योंकि उसके फैसले से यह राष्ट्र दो पक्षों में बंट जाएगा। इससे देश के नाजुक सांप्रदायिक सामंजस्य पर खतरा मंडरा सकता है। आपसी बातचीत से अयोध्या मसले के हल की दिशा में पहले भी कई दिग्गजों ने पहल की है। एक बार फिर कोशिश हो रही है। यह कोशिश सफल होनी चाहिए, क्योंकि यह सद्भाव और आपसी भरोसे का निर्माण करेगी। अयोध्या मसले का समाधान शांति और सौहार्द के साथ निकलने से धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण भी रुकेगा। शायद इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यह मामला देश की भावनाओं और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है जो सामान्य मुकदमेबाजी द्वारा हल नहीं किया जा सकता। पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर का कहना था, ‘न्यायालय को तो तभी इसमें आना चाहिए जब मसला बातचीत से हल नहीं हो पा रहा हो।’ इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय यह मानता है कि न्यायालय का फैसला सांप्रदायिक सद्भाव पर असर डाल सकता है। यदि न्यायालय मुस्लिम समाज के पक्ष में फैसला देता है तो हिंदू स्वयं को उपेक्षित महसूस करेंगे। यदि इसका उल्टा होता है यानी हिंदू समाज के पक्ष में फैसला देता है तो भी आपसी मतभेद बढ़ेंगे, क्योंकि मुस्लिम उपेक्षित महसूस करेंगे। इस स्थिति से तभी बचा जा सकता है जब मसले का बातचीत से निकले। जस्टिस खेहर का यह भी कहना था, ‘कुछ दीजिए और कुछ लीजिए, लेकिन इस मसले का हल निकालिए।’ इससे यह बात समझ में आती है कि सर्वोच्च न्यायालय भी इस मुद्दे का कानूनी हल निकालने के पक्ष में नहीं, लेकिन इस मुद्दे को लंबा खींचना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इस स्थिति में यह ध्रुवीकरण को बढ़ाता रहेगा।


आज कुछ ऐसा करने की जरूरत है जिससे विभिन्न पक्षों और व्यक्तियों के बीच सद्भावपूर्ण बातचीत का माहौल पैदा हो सके और बातचीत द्वारा मामले का निपटारा करने के लिए जन मानस की राय को भी प्रभावित कर सके। आर्ट ऑफ लिविंग के गुरु श्री श्री रविशंकर द्वारा बातचीत की प्रक्रिया पर एक बार फिर से जोर देना उत्साहजनक है। इस पहल पर विभिन्न पक्षों की ओर से आ रही सकारात्मक प्रतिक्रियाओं से ऐसा लगता है कि एक संभावना जगी है। इस संभावना को बल देने की जरूरत है, क्योंकि शायद अब बातचीत से हल निकालने के लिए ज्यादा समय नहीं रह गया है। इस मौके को गंवाना नहीं चाहिए। अयोध्या विवाद दशकों से चला आ रहा है। चूंकि दोनों पक्षों की ओर से बयानबाजी जारी रहती है इसलिए उन्हें बातचीत के लिए तैयार कर पाना भी एक बड़ी उपलब्धि है।
यदि दो महत्वपूर्ण पक्ष ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यानी एआइएमपीएलबी और निर्मोही अखाड़ा सार्वजनिक रूप से मध्यस्थता को लेकर बात कर रहे हैं तो यह सोच में परिवर्तन का प्रतीक है। अयोध्या एक बेहद संवेदनशील मसला है। आगे के रास्ते को बड़ी ही सावधानी के साथ एक कुशल चालक द्वारा तय करना होगा। दोनों पक्षों को मध्यस्थ पर विश्वास होना आवश्यक है। किसी भी पक्ष के मन में यह आशंका नहीं होनी चाहिए उन्हें पहले से ही तय किए गए किसी एजेंडे की तरफ धकेला जाएगा। मध्यस्थ को न केवल निष्पक्ष रहना होगा, बल्कि निष्पक्ष दिखना भी होगा। श्रीश्री रविशंकर अयोध्या मसले के हल के लिए सक्रिय हैैं, यह अब किसी से छिपा नहीं है। यह उत्साहजनक है कि वह दोनों पक्षों के कुछ महत्वपूर्ण लोगों को एक स्तर पर ले आए हैं। एआइएमपीएलबी के अलावा सुन्नी वक्फ बोर्ड और शिया वक्फ बोर्ड ने सार्वजनिक तौर पर श्रीश्री रविशंकर की पहल का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि उन्हें एक संतुलित हल मिल सकेगा। यहां तक कि जफरयाब जिलानी भी ने भी यह कहा कि श्रीश्री ने जरूर कोई न कोई संतुलित हल सोचा होगा। ध्यान रहे कि जिलानी को कट्टरवादी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी आशा व्यक्त की है कि श्रीश्री इस मसले का ऐसा हल निकाल पाएंगे जो पूरे देश को स्वीकार्य होगा।
श्री श्री के प्रति मुस्लिम समुदाय के भरोसे के पीछे एक इतिहास है। उनमें ‘सभी के मतों के अनुसार’ चलने की सोच है। इस मुद्दे को हल करने के लिए 2003 में उनके द्वारा दिए गए फार्मूले में भी दोनों पक्षों का हित साधने की कोशिश की गई थी। शायद इस वजह से भी इस मसले पर दोनों पक्षों के बुद्धिजीवियों द्वारा किसी राजनीतिक शख्स या धार्मिक नेता की अपेक्षा श्री श्री को प्रधानता दी जा रही है। उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के प्रमुख वसीम रिजवी ने श्री श्री से मिलने के बाद कहा है कि पूरा देश श्री श्री का सम्मान करता है और मुझे विश्वास है कि वह इस मुद्दे का हल निकालने में सक्षम होंगे। समाज भी यही चाहता है कि कोई ऐसा व्यक्ति आए जो निष्पक्ष हो और सामाजिक हितों को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे का हल निकाले। श्री श्री दिल से दिल जोड़ने के लिए जाने जाते हैं। वह तमाम मतभेद, भय, दृढ़ता, अविश्वास, संघर्ष और विवाद को दूर रख कर एक सेतु बनाने का कार्य सहजता से करते आए हैं। उन्हें विश्वास है कि संवाद से सभी समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। वह समस्या समाधान के लिए बातचीत को सबसे उत्तम माध्यम मानते हैं। संवाद के महत्व के बारे में उनका कहना है कि आप विध्वंस रातोंरात कर सकते हैं, लेकिन निर्माण कार्य में समय लगता है। किसी भी विवाद को निपटाने के लिए उससे संबंधित समस्त पक्षों को खुले दिमाग से एक साथ बैठकर बातचीत करना आवश्यक है। रचनात्मक कार्य के लिए हमें माहौल भी वैसा बनाना होता है जहां मतभेद, अहंकार और मांगों को किनारे रखकर सामान्य मानवीय मूल्यों के आधार पर आपस में वार्तालाप हो सके।
अयोध्या विवाद एक पेचीदा मसला है। दोनोे पक्षों के अपने-अपने आग्रह भी हैैं और मान्यताएं भी। ऐसा लगता है कि श्री श्री की यह कोशिश है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी हो सके और मुस्लिम समुदाय भी संतुष्ट हो सके। हालांकि बातचीत से इस विवाद का हल निकालने की पहले की कई कोशिशें नाकाम रही हैैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हर कोशिश नाकाम ही साबित होगी। कोशिश करने से ही सफलता मिलती है। कई बार सफलता बार-बार की कोशिश के बाद मिलती है।