मनुष्य इस दुनिया में आया है कुछ करने के लिए। अगर हम कर्म करना नहीं चाहेंगे, दुनिया की सेवा करना नहीं चाहेंगे तो हम दुनिया पर महज एक बोझ बनकर ही रह जाएंगे। तब हमारे लिए दुनिया में अधिक दिनों रहना उचित नहीं होगा। ऐसी स्थिति में दुनिया से जल्द से जल्द चले जाना अच्छा है। मैंने एक बार कहा था कि काम करते-करते मरो और मरते-मरते भी काम करते रहो। इसलिए इस बात को मन में हमेशा रखना चाहिए कि मैं इस संसार में अपने मिशन को पूरा करने के लिए ही जीवित हूं। इसी कारण से मैं खा रहा हूं, मैं पोशाक पहन रहा हूं, मैं सो रहा हूं। इसको छोड़कर मेरे लिए सब व्यर्थ है। यदि किसी लक्ष्य के बिना, मिशन के बगैर, कोई जीवन जीता है तो उस अवस्था में कोई भी प्रयास मानसिक क्षेत्र में सफलता नहीं ला सकता। यदि हम काम करना नहीं चाहते हैं, यदि हम संसार की सेवा करना नहीं चाहते हैं तब हम संसार के लिए एक भार हो जाएंगे। संसार का एक बोझ बनकर रहने से बेहतर है संसार को छोड़ देना। मानसिक क्षेत्र के ऊपर आध्यात्मिक क्षेत्र है। आध्यात्मिक जगत में केवल अपने मिशन के विषय में चिंतन करना ही पर्याप्त नहीं है, क्योंकि मिशन का उद्देश्य है बाहरी जगत में सेवा करना। वस्तु जगत में, बाह्य जगत में किसी का कोई भी मिशन क्यों न हो, मूल रूप से उसके मिशन का उद्देश्य है जगत के कल्याण को बढ़ा देना। किंतु गति जब भीतर की ओर होती है। अर्थात गति जब मन से आत्मा की ओर होती है। तब मिशन का कोई महत्व नहीं है। ऐसा इसलिए, क्योंकि तब हम अपने संपूर्ण अस्तित्व को परमपूर्णता में विसर्जित करने जा रहे हैं।
मनुष्य जीवन क्यों है? किस वास्ते है? मोक्ष प्राप्त करने के लिए और जगत के हित या कल्याण के लिए। आत्ममोक्षार्थ के लिए जो प्रयास नहीं करते हैं, साधना नहीं करते हैं, उनसे जगत का कल्याण नहीं होता है, उनसे दुनिया का कल्याण हो नहीं सकता है। यदि आप अपने मिशन का कार्य करने के लिए शपथ लेते हैं तो याद रखें कि शपथ आपकी मुक्ति की आकांक्षा को संभव नहीं बनाएगी। यद्यपि उस संकल्प के द्वारा आप जगत की सेवा कर सकते हैं। इसलिए आध्यात्मिक क्षेत्र में आपकी प्रगति केवल आपके मिशन पर निर्भर नहीं है। मानव अस्तित्व का महत्व इसमें है कि उसे संसार की सेवा करनी है और स्वयं के लिए साधना करनी है।
[ श्री श्री आनंदमूर्ति ]