आत्मनिवेदन से बड़ा कोई दूसरा बल नहीं है। जब मनुष्य सच्चे मन से आत्मनिवेदन करता है तो उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आत्मनिवेदन में मनुष्य को ईश्वर से कष्टों को सहने की शक्ति मांगनी चाहिए। स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचकर यह शिकायत करने लगे कि यदि पढ़-लिखकर वे भी औरों की तरह पैसा कमाते तो आज अपनी बीमार मां की अच्छे से देखभाल कर पाते, लेकिन इस आध्यात्मिकता से उन्हें क्या मिला? गुरु ने उनसे कहा कि तुम्हें जो चाहिए वह तुम काली मां से मांग सकते हो। विवेकानंद काली मां के पास गए, लेकिन कुछ मांगे ही वापस आ गए। जब गुरु ने उनसे पूछा कि तुमने काली मां से कुछ मांगा क्यों नहीं तो वे बोले कि मैं मांगना भूल गया। गुरु ने उनसे कहा कि वे फिर से काली मां के पास जाएं और इस बार मांगना बिल्कुल न भूलें, लेकिन विवेकानंद ने इस बार भी कुछ नहीं मांगा तो गुरु ने उन्हें फिर से जाने को कहा। तीसरी बार भी विवेकानंद ने कुछ नहीं मांगा और अपने गुरु से बोले कि मैं किसी से क्यों मांगू। तब गुरु ने कहा कि यदि आज तुमने काली मां से कुछ मांग लिया होता तो उसी समय मेरा नाता तुमसे खत्म हो जाता, क्योंकि मांगने वाला नहीं जानता कि यह जीवन क्या है।
मनुष्य को कभी भी स्वयं के लिए ऐसी सोच नहीं बनानी चाहिए कि मैं परेशान, कमजोर, दुखी या शक्तिहीन हूं। जब भी मनुष्य को ऐसा लगे उसे आत्मनिवेदन करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के भीतर ही ईश्वर वास करता है। इसे सच्चे आत्मनिवेदन के बाद ही जाना जा सकता है। आत्मनिवेदन में मनुष्य अपनी समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर सकता है और जिसकी अपनी इंद्रियों पर पकड़ है, वही ईश्वर है। राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने घोषणा की कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा, लेकिन इसमें वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे बुद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता। राजा अपने पुत्र को चक्रवर्ती सम्राट बनते हुए देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने राजकुमार सिद्धार्थ के चारों ओर भोग-विलास के तमाम प्रबंध कर दिए, लेकिन एक दिन वसंत ऋतु में राजकुमार सिद्धार्थ सैर करने निकले। रास्ते में सांसारिक दुखों को देखकर वे इतने विचलित हुए कि उनका पूरा जीवन ही बदल गया। यह आत्मनिवेदन की ही शक्ति है कि राजकुमार सिद्धार्थ बुद्ध को गए।
[ महायोगी पायलट बाबा ]