अस्तित्व में मौजूद हर वस्तु में ऊर्जा है। मनुष्य के भीतर भी ऊर्जा का असीम स्नोत है, लेकिन वह कभी यह विश्वास नहीं कर पाता है कि ऐसी अद्भुत और विलक्षण ऊर्जा उसके भीतर निहित है। मनुष्य अगर ठान ले, तो इस ऊर्जा की बदौलत कुछ भी कर सकता है। मनुष्य अपनी ऊर्जा को हर जगह खोजता है, लेकिन अपने भीतर झांककर नहीं देखता। वह हथेलियों से अपनी आंखें ढककर अंधकार की शिकायत जरूर करता है, लेकिन अपने भीतर नहीं झांकता। मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, लेकिन दुख की बात है कि उसे स्वयं पर ही विश्वास नहीं होता कि उसके भीतर इतनी शक्तियां विद्यमान हैं। यदि मनुष्य अपनी मन की गहराइयों में जाए तो वह अपनी शक्तियों को पहचानकर और उनका इस्तेमाल करके असंभव कार्य को भी संभव कर सकता है। जो व्यक्ति अपनी भीतरी ऊर्जा से आत्मसात हुए वे भविष्य में महापुरुष व युगपुरुष कहलाए। दृढ़ आत्मविश्वासी मनुष्य का हर कार्य सफल होता जाता है। जैसे-जैसे मनुष्य को सफलता मिलती जाती है उसका विश्वास और दृढ़ होता चला जाता है। आत्मविश्वास के कारण ही मनुष्य के चरित्र-बल को शक्ति मिलती है। कुछ लोग अपने आत्मविश्वास को जाग्रत करके कार्य शुरू जरूर कर देते हैं, लेकिन मार्ग में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं से घबराकर वे कार्य को बीच में ही छोड़ देते हैं। इसके विपरीत दृढ़ आत्मविश्वासी लोग आशंका व भय से घबराए बगैर आशा और विश्वास के जरिये पूरे मनोयोग से कार्य को करते हैं और अंतत: सफलता प्राप्त करते हैं।
कार्य के असफल होने का भय मध्यम श्रेणी के व्यक्ति पर इस तरह हावी होने लगता है कि उसका आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वे बीच रास्ते से भाग खड़े होते हैं। इसके विपरीत उत्तम श्रेणी के व्यक्ति कार्य की सिद्धि तक अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बनाए रखते हैं। राह में कितनी ही बाधाएं क्यों न आएं, उनका आत्मविश्वास बिल्कुल नहीं डगमगाता और अंतत: वे कार्य को पूर्ण करके ही दम लेते हैं। आत्मविश्वास से हमें जीवनी-शक्ति मिलती ही है, साथ ही जीने के लिए ऊर्जा भी प्राप्त होती है। जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास दृढ़ होता है, वह कठिन से कठिन काम को भी पूरा कर सकता है। सफलता की पहली शर्त आत्मविश्वास है।
[ आचार्य विनोद कुमार ओझा ]