नई दिल्ली [ संतोष त्रिवेदी ]। कभी प्रिय रहे तुम! यह खत हम दुबई के बुर्ज खलीफा की एक सौ आठवीं मंजिल से लिख रहे हैं। जिस स्याही से लिख रहे हैं, पढ़ लेने के बाद वह भी हमारी तरह उड़ जाएगी इसलिए तुम इसे सबूत मानने की गलती मत करना। यहां आने की तुम्हारी कोई कोशिश भी बेकार जाएगी, क्योंकि एक तो इससे घोटाले की रकम और बढ़ेगी और दूसरे, यह पता नहीं कि मैं यहां रहूं या न रहूं? दुनिया में ऊंची इमारतों की कमी नहीं और मैैं खलीफा से कम नहीं। तुम्हें खाते के बजाय खत मिल रहा है, यह कम नहीं है। सब जानते हैं कि विशुद्ध व्यापारी लेता है, देता कुछ नहीं पर मैं अपने देश से प्यार भी करता हूं। उसी की खातिर अपने सिद्धांत तोड़कर तुम्हें यह जवाब दे रहा हूं। तुमने हमें निराश किया है। हम पर घोटाले का आरोप लगाते तुम्हारी आत्मा नहीं कांपी? आत्मीय रिश्तों के बीच अर्थ कब घुस गया, जान ही नहीं पाया, फिर देश मेरा, देशवासी मेरे, उनका पैसा मेरा पैसा। इसमें घोटाला बीच में कहां से आ गया! घोटाला तो तब होता जब हमारे खातों में न्यूनतम बैलेंस होता और हम उसका चार्ज न भर पाते पर हमारे सभी खाते तो अधिकतम बैलेंस से भरे हुए थे। तुम्हीं संभाल नहीं पाए। अब करोड़ों की भीख हमसे मांग रहे हो, जबकि उलटे तुम्हें इसका हर्जाना हमें देना चाहिए।

बैंक घोटाला ने देशवासियों के विश्वास और भरम को तोड़ा

तुम्हें नहीं पता, तुमने देश का कितना नुकसान कर दिया है! टेलीविजन से लेकर अखबार तक तुमने घोटाले का रायता फैला दिया। यहां तक कि कल लंच के समय जब अखबार पढ़ रहा था तो उसमें भी फैला हुआ था। बैरा लगातार हमें घूर रहा था। बेचारा बिना टिप लिए ही चला गया पर मैं तुम्हें टिप जरूर दूंगा। तुम्हारी इन हरकतों से हमारी साख पर बट्टा लगा है। हम देश के हैं, इसलिए हमारी साख भी देश के बट्टे-खाते में। तुमने देशवासियों के विश्वास और भरम को तोड़ा है। उनके गले में पड़े लाखों के हार पलक झपकते हजारों में बदल गए। लोगों ने उनकी जांच करवा ली। अब पछता रहे हैं। गहने वही, गला वही पर कीमत दो कौड़ी की रह गई। असली घोटाला तो यह है। इसके जिम्मेदार तुम और तुम्हारा तंत्र है। यह केवल पैसे भर का मामला नहीं है। एक अच्छे-भले ब्रांड की हत्या है। जिसे तुम घोटाला कह रहे हो, वही असल कारोबार है। इसमें और ग्रोथ होता पर तुम्हारी नादानी की वजह से बर्बाद हो गया। शेयर बाजार टूट गया। आम आदमी का भरोसा टूटा। हमारी भावनाएं आहत हुईं, साख गई सो अलग। इस सबके जिम्मेदार तुम्हीं तो हो। तुम्हें नोटिस नहीं भेज रहा हूं, यह हमारी सहृदयता है।

आर्थिक-पाप होली में जला डालें

तुमने हम पर जो छापेमारी की उसको हम नोटिस नहीं लेते। हां, इसके पहले अगर तुम हमें नोटिस भेज देते तो तुम्हारा ही भला होता। फागुन का महीना चल रहा है। खातों में थोड़ा अबीर-गुलाल धरवा देते ताकि वे भरे-भरे दिखते। इससे कुछ बरामदगी दर्ज होती और तुम कुछ अपने मुंह की कालिख रंगीन कर लेते। हम पर चूना लगाने का जो आरोप लगा रहे हो वह महज त्योहारी-सफाई है। चूना पोतने के अलावा अगर कुछ और करते तो जवाबदेह होते! हम फिर भी जवाब दे रहे हैं। तुम्हारी ढिठाई के बावजूद हम तुम्हें होलिका-दहन की बधाई दे रहे हैं। आओ, हम मिल-जुलकर सारे आर्थिक-पाप इस होली में जला डालें।

बैंक स्कैम है पिछली सरकार के समय का खुलासा हुआ मोदी सरकार के समय

तुमने भी पढ़ा होगा-आत्मा अमर होती है, पाप नहीं। उन्हें एक दिन नष्ट होना ही है। तुम्हें हो न हो, हमें इस मान्यता पर पूरी आस्था है। इसलिए हमारे सभी वादा-पत्रों को होली की पवित्र अग्नि में समर्पित कर दो। संबंध पुन: मधुर हो जाएंगे। और हां, तुम्हारे कुछ लोग हमारे धंधे को फ्रॉड कह रहे हैं, कुछ स्कैम। खातों की तरह इसे भी मैं साफ करता हूं। यह न तो फ्रॉड है, न ही स्कैम। इसे उदाहरण देकर समझाता हूं, क्योंकि तुम्हारी समझदारी पर संदेह है। इतने सालों से यह तुम सबकी नाक के नीचे हुआ। नाक खुली भी थी। इसका सबूत यह कि सभी अब तक जीवित हैं। फ्रॉड तो चोरी-चोरी अंधेरे में किया जाता है। सो यह फ्रॉड कतई नहीं है। है। रही बात स्कैम की, वे तो पिछली सरकार के समय होते थे। यह खुलासा चूंकि इस सरकार के समय हुआ है, इसलिए स्कैम नहीं है। किसी का इस्तीफा भी नहीं आया इसलिए भी यह स्कैम नहीं हो सकता। दरअसल यह आंकड़ों की गलतफहमी भर है। तुम पर हमारी कोई देनदारी नहीं बनती। हमने अपने वकील से भी पूछ लिया है। तुम चाहो तो मेरे पुराने फॉर्म हाऊस से पुदीना उखाड़ सकते हो! हम नोटिस भी नहीं भेजेंगे।

मैं तो इंटरनेशनल हीरा व्यापारी हूं साख में पुती कालिख होली के रंगों में धुल जाएगी

हम तो इंटरनेशनल व्यापारी ठहरे। धंधा बदल जाएगा, पर ठहरेगा नहीं। हीरा है सदा के लिए यूं ही नहीं कहा गया है। हम इसका ईमानदारी से पालन भी करते हैं। हीरा कभी कोयला बनकर राख नहीं होता। कटकर और कीमती हो जाता है। तुम हमारी साख में जितनी भी कालिख पोत रहे हो, हम उसे फागुन-इफेक्ट मानकर माफ करते हैं। होली के रंगों के साथ यह भी उतर जाएगा। रही बात देश आने की तो तुमने इतनी चरस बो दी है कि हम उसकी फसल देश के बाहर से ही काट रहे हैं।

तुम्हारा अब नहीं

[ हीरा लाल ]