अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच झगड़े में शिवपाल का पक्ष लेते नजर आ रहे मुलायम सिंह यादव ने अपनी इस टिप्पणी से समाजवादी पार्टी के लिए रही-सही आस भी समाप्त कर दी है कि अगले चुनाव के बाद पार्टी के विधायक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का चयन करेंगे। यह माना जा रहा था कि सपा अगले चुनाव में अखिलेश यादव का कम से कम एक मुखौटे के रूप में तो इस्तेमाल करेगी ही, लेकिन सपा प्रमुख का ताजा बयान यह बताता है कि पार्टी चुनाव में अखिलेश यादव के चेहरे को आगे कर नहीं उतरेगी।

क्या यह महज एक संयोग है कि अखिलेश यादव ने पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में अपने लिए आवंटित भवन में गृहप्रवेश भी कर लिया है? गृह प्रवेश के तीन दिन पूर्व मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए नवनिर्मित भवन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने तीन बातें कही थीं-मैंने सब अधिकार छोड़ दिया है, इस भवन में कोई समाजवादी ही बैठेगा और ट्रंपकार्ड अभी भी उनके पास है। इसी अवसर पर उन्होंने चुनाव के बाद गठबंधन की सरकार बनने की संभावना भी व्यक्त की थी। पिछले चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों के लिए सबसे व्यापक अभियान अखिलेश द्वारा ही किया गया था और सपा को इसका लाभ भी मिला था।

मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी छवि साढ़े तीन मुख्यमंत्रियों में आधे की बनी रही और आगामी चुनाव के पूर्व जैसे ही उन्होंने संपूर्ण मुख्यमंत्री बनने का संकेत दिया, उनके पिता मुलायम सिंह ने उन पर ऐसा दांव चलाया कि अब छवि चौथाई की भी नहीं रह गई है। यह आश्चर्यजनक है कि जो मुलायम सिंह 2012 में सरकार बनने के कुछ ही महीने बाद से सरकार को भ्रष्टाचार, कानून एवं व्यवस्था, बढ़ती दबंगई और जमीन पर अवैध कब्जों के प्रति सचेत करते रहे, आज वही अखिलेश की ऐसे तत्वों के खिलाफ सीमित कार्रवाई को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। अखिलेश यादव द्वारा आपराधिक छवि वाले मुख्तार अंसारी की पार्टी के सपा में विलय के खिलाफ खड़े होना उनसे अध्यक्ष पद को छीने जाने का कारण बना और इससे क्षुब्ध अखिलेश ने जब भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मंत्री को बाहर का रास्ता दिखाया तो मुलायम सिंह ने उस मंत्री और पूर्व में भी निकाले गए मंत्रियों को पुन: मंत्री बनवाकर यह साबित कर दिया कि असली ‘बॉस’ कौन है।

जो रही-सही कसर थी वह अध्यक्ष बने उनके अनुज शिवपाल सिंह ने मुख्यमंत्री के चहेतों और महामंत्री रामगोपाल के रिश्तेदारों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर पूरी कर दी। शिवपाल के इस दावे पर संदेह नहीं किया जा सकता कि वे जो कुछ कर रहे हैं वह सब कुछ मुलायम सिंह यादव के आदेश से हो रहा है। यह सब इस तथ्य से भी प्रमाणित होता है कि जिस बाहरी व्यक्ति (अमर सिंह) को अखिलेश ने घर में आग लगाने वाला बताया था उसे मुलायम सिंह ने महामंत्री बनाकर अखिलेश को हतप्रभ कर दिया। शिवपाल ने यह घोषणा की है कि मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का सपा में विलय हो चुका है। इतना ही नहीं, उन्होंने जो कार्यकारिणी बनाई है उसमें से अखिलेश समर्थकों को बाहर कर दिया गया है।

अब सवाल यह है कि अखिलेश के पास वह कौन सा ट्रंपकार्ड है और उसका प्रयोग वह कब करेंगे? अखिलेश और शिवपाल में बीच जब सार्वजनिक रूप से जंग चल रही थी उस समय उन्होंने कहा था कि वह पांच साल से मुख्यमंत्री हैं अतएव अगला चुनाव उनके कार्य पर ही जनमत संग्रह होगा इसलिए टिकट बांटने का अंतिम अधिकार उनके पास होना चाहिए। मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए निर्मित लोकभवन के लोकार्पण के समय ट्रंप कार्ड अपने पास होने की टिप्पणी कर युवा मुख्यमंत्री ने पुरानी पीढ़ी को सांसत में डाल दिया है। यदि अखिलेश यादव वाकई अपनी आदत के पक्के हैं तो उनके सामने दो ही विकल्प बचते हैं-या तो वे दागी मंत्रियों को फिर से निकालकर कड़ी कार्रवाई करें या फिर त्यागपत्र दे दें।

इससे ज्यादा किसी मुख्यमंत्री की और क्या अवमानना हो सकती है कि जिस व्यक्ति के अपराधों की जांच सीबीआइ से कराने की उन्होंने केंद्र को संस्तुति भेजी हो उसे पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए? यदि अखिलेश मुखौटा भर नहीं रहना चाहते तो उन्हें चेहरा बनने के लिए ‘सब अधिकार’ छोड़ देने के बजाय उस रूप में प्रगट होना पड़ेगा जिसको लोगों ने सराहा है। सपा के हाथ से उप्र की सत्ता का जाना तो एक तरह से तय नजर आ रहा है, लेकिन यदि वह अपनी प्रभावशाली उपस्थिति बनाए रखना चाहती है या गठबंधन की सरकार बनने की सूरत में एक मजबूत दल के रूप में उभरना चाहती है तो यह अखिलेश यादव की छवि के सहारे ही संभव है। शिवपाल यादव ने तो कई बार यह कहा है कि 2012 के चुनाव के बाद उन्होंने मुलायम सिंह से मुख्यमंत्री बनने का आग्रह किया था। तो क्या यह समझा जाए कि मुलायम सिंह ने 2012 में मुख्यमंत्री पद न स्वीकार करने की जो भूल की थी, उसको सुधारने की दिशा में बढ़ रहे हैं? यह भूल सुधार किस मुकाम तक पहुंचेगी?

सपा जिस तरह से एक परिवार में सिमटती गई उसका परिणाम गृहकलह के रूप में सामने आना स्वाभाविक ही है। अखिलेश को मुख्यमंत्री के आसन पर बैठाने की भूल का सुधार मुलायम सिंह चुनाव के कुछ समय बाद से ही उनकी सरकार को कोसने और तानों की सार्वजनिक अभिव्यक्ति से करते रहे हैं। पारिवारिक कलह के उजागर होने के पूर्व तक यह अनुमान भी लगाए जा रहे थे कि अखिलेश के सहारे समाजवादी नौका 2017 की चुनाव वैतरणी पार लेगी, लेकिन अब शायद ही कोई ऐसी अभिव्यक्ति का साहस दिखाए। मुलायम सिंह किस आकलन के सहारे ऐसे कदम उठा रहे हैं जो अखिलेश को क्षुब्ध कर रहे हैं।

पूर्व में जब वह स्वयं मुख्यमंत्री बने तो दागी तत्वों को संरक्षण देने के कारण ही सत्ता से बाहर हुए। इसलिए जब उन्होंने अखिलेश के मुख्यमंत्रित्वकाल में भ्रष्टाचार, दबंगई और कानून एवं व्यवस्था की खराब स्थिति पर बार-बार चिंता जताई तो यह समझ में आने लगा था कि अब वह ऐसे तत्वों से दूर रहना चाहते हैं, लेकिन मुख्तार अंसारी की पार्टी का साथ लेने के संदर्भ में उनकी मानसिकता और संदिग्ध छवि वाले नेताओं को उम्मीदवार घोषित कराकर मुलायम सिंह ने यही संकेत दिया है कि स्वच्छ छवि नहीं, बल्कि दबंग छवि वालों को साथी बनाए रखने की उनकी प्राथमिकता यथावत बनी हुई है।

(लेखक राजनाथ सिंह 'सूर्य', राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं)