संसार में होकर संसार के न होने की बात भगवान महावीर ने नहीं की। महात्मा गौतम बुद्ध, ईसा, मुहम्मद, नानक, आचार्य तुलसी आदि उन सब धर्म-पुरुषों और मुनियों ने भी यही कहा, क्योंकि उन्होंने जीवन की अतुल गहराइयों में प्रवेश करके उसकी वास्तविकताओं को देखा, समझा और परखा। संसार का मायाजाल मकड़ी के जाल की भांति है। जो जीव उसमें एक बार फंस जाता है, वह निकल नहीं पाता। यही दुख का कारण भी है और केंद्र भी है। पूरे विश्व की स्थिति का आकलन करें, तो पाएंगे कि लोग बहुत दुखी हैं। सबके सामने समस्याएं हैं। समाज में गरीबी, अपराध, हिंसा, लूट, अपहरण, तनाव आदि की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। दूसरी ओर देखेंगे तो पाएंगे कि सुविधा और साधनसंपन्न लोग भी हैं, जो ऐशोआराम का जीवन जी रहे हैं। जीवन के प्रति जैसा हमारा नजरिया होता है, जीवन वैसा ही बनता चला जाता है।
विचारक फ्रांकोइस गॉटर ने कहा था-‘फूल अपने आप खिलते हैं-हम बस उसमें थोड़ा पानी डाल सकते हैं।’ इसी तरह, हर व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ नया करने, सपने बुनने और उन्हें साकार करने की तत्परता दिखानी होगी। तभी दुख को सुख में बदला जा सकेगा। जब दुख के कारणों पर विचार करते हैं, तो अजीब-सी स्थिति सामने आती है। कोई परिवार बड़ा होने के कारण दुखी है, तो कोई परिवार न होने के कारण दुखी है। फ्रांस के दार्शनिक रेने देकार्त के अनुसार भुलावे की खुशी हमारे जीवन में कई दफा ज्यादा मायने रखती है, बजाय दुख के। दूसरों पर आरोप लगाना आदमी की सहज वृत्ति होती है। इस बात पर कोई विचार करना नहीं चाहता कि अपने दुख का कारण कहीं मैं स्वयं तो नहीं हूं। ‘योर बेस्ट लाइफ नाउ’ में जोएल ओस्टीन कहते हैं-‘आपको अपने दिमाग में यह बात रखनी चाहिए कि आप परम परमात्मा की संतान हैं और महान चीजों के लिए बनाए गए हैं। ईश्वर ने आपको उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए बनाया है और उसने आपको काबिलियत, अंतर्दृष्टि, प्रतिभा, बुद्धि और ऐसा करने के लिए अपनी अलौकिक शक्तियां दी हैं।’ इन गुणों से जीवन संवारें।
[ ललित गर्ग ]