नई दिल्ली [ राजनाथ सिंह ‘सूर्य’]। तत्काल तीन तलाक के मुद्दे पर लोकसभा में समर्थन करने के बाद राज्यसभा में उसका विरोध कर कांग्रेस ने यही साबित किया कि विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर उसकी दुविधापूर्ण स्थिति बनी हुई है। गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद उसने जो रुख अख्तियार किया है उससे भी यह स्पष्ट है कि 2014 में सत्ता से बाहर होने के कारणों को समझने में वह अभी भी असमर्थ है। माना कि अल्पकालिक सामाजिक असंतोष और पृथकतावाद या बिखराव को हवा देने से उसे कुछ हद तक चुनावी सफलता मिली है, लेकिन इससे वह संविधान निर्देशित लोकतांत्रिक व्यवस्था और एकता को तोड़ने के लिए जिम्मेदार मानी जाएगी।

बिखराववादियों और मुखौटावादियों को प्रश्रय देने के कारण लोगों ने कांग्रेस को रिजेक्ट किया

दुख की बात है कि जो संस्था महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश की सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप वैमनस्यता के बजाय सर्वधर्म समभाव के आचरण को आधार बनाकर चल रही थी वह राहुल गांधी के नेतृत्व संभालने तक बिखराववादी और मुखौटावादी हो गई है। जो व्यक्ति, संस्था अथवा प्रसंग देश में बिखराववाद को प्रोत्साहन दे रहा है कांग्रेस उसका समर्थन करने में जरा भी संकोच नहीं कर रही है। 2014 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय की समीक्षा करते हुए एके एंटनी ने एक तरह से यही निष्कर्ष निकाला था कि बिखराववादियों और मुखौटावादियों को प्रश्रय देने के कारण आम देशवासी कांग्रेस से विमुख हो गए, फिर भी आज वह उससे बाज नहीं आ रही है। वह बिखराववादियों को कंधे पर उठाए घूम रही है।

कांग्रेस ने मुस्लिम महिलाओं के संघर्ष को नजरअंदाज किया

इस क्रम में वह राष्ट्रीय स्वाभिमान की प्रत्येक घटना पर उसकी प्रमाणिकता को संदिग्ध साबित करने की भरसक कोशिश करती देखी जा सकती है। आर्थिक सुधार के कदमों की भर्त्सना करने के कारण चुनावी दुष्परिणाम भुगतने के बावजूद कांग्रेस ने सामाजिक सुधार के मामले में शाहबानो से लेकर सायराबानो तक मुस्लिम महिलाओं के संघर्ष को नजरअंदाज कर जिन मठाधीशों का साथ देते रहने का रुख अख्तियार किया है उसे गांव की कहावत के अनुसार ‘ऊंट की चोरी निहुरे निहुरे’ की संज्ञा दी जा सकती है।

कांग्रेस ने तत्काल तीन तलाक बिल का विरोध किया

जैसे ऊंट चुराने वाला विशालकाय ऊंट की स्थिति भूलकर यह समझकर झुककर चलता है कि उसे कोई देख नहीं पाएगा वैसे ही कांग्रेस ने तत्काल तीन तलाक बिल का विरोध कर और बिखराववादियों को प्रोत्साहन देकर किया है। इन दिनों गुजरात के बिखराववादी जिग्नेश मेवाणी को राहुल गांधी ने खास तौर पर कंधे पर उठा रखा है। दिल्ली में जिग्नेश मेवाणी की प्रेस कांफ्रेंस के वक्त राहुल गांधी के निकट सहयोगी अलंकार सवाई पत्रकारों की निगाह में आने के बाद जिस तरह छिप-छिपाकर चलते बने उससे ऊंट की चोरी...वाली कहावत ही चरितार्थ हुई।

कांग्रेस बिखराववादी शक्तियों को बढ़ावा दे रही है

सेक्युलरिज्म के मुखौटे में अपने असली स्वरूप को छिपाकर विदेशी धन और मन के सहारे जिन लोगों ने राष्ट्रीय स्वाभिमान और अस्मिता के लिए सतत प्रयत्नशील राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाकर कुछ वर्षों तक समाज को भ्रमित करने में कांग्रेस की सत्ता का भरपूर दोहन किया, 2014 के लोकसभा के चुनाव परिणाम के बाद उनकी हताशा और भी बढ़ गई है। कांग्रेस इसी हताशायुक्त व्याकुल उग्रता को सहारा बनाकर जहां-जहां भाजपा सत्ता में है सिर्फ वहीं ही नहीं, बल्कि जहां नहीं भी है वहां भी बिखराववादी शक्तियों को बढ़ावा दे रही है।

कांग्रेस सेक्युलरिज्म का मुखौटा लगाकर समाज को भ्रमित कर रही है

गुजरात में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर के जरिये तीन अलग-अलग बिखराववादी अभियान चलाना, महाराष्ट्र में भीमा-कोरेगांव की घटना को मराठा बनाम महार संघर्ष का रूप देना और कर्नाटक में लिंगायतों को पृथक धार्मिक समूह के रूप में हवा देना ही इसके उदाहरण नहीं हैं, बल्कि देश के पूर्वी छोर में अवैध तरीके से रहने वाले बांग्लादेशियों की पहचान करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन को भी सांप्रदायिक बताकर उसने साफ कर दिया कि सेना की सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी कहकर उसने जो अकल्पनीय देश विरोधी स्वरूप जाहिर किया था, वह उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस इस कारण अपने ही बोझ से डूबती जा रही है। यदि उसे तिनके का सहारा न मिला तो वह डूबकर ही रहेगी। आखिर तिनका हैं कौन? दरअसल ये वे नहीं हैं जो सेक्युलरिज्म का मुखौटा लगाकर समाज को भ्रमित करते रहे हैं या वे जो बिखराववादी हैं, बल्कि ये वे लोग हैं जो हिंदू हैं, लेकिन हिंदुत्व का अर्थ नहीं समझते हैं। जो गौ हत्या पर उत्तेजित होकर और उत्तेजना में आकर जवाब देने की कोशिश करते हैैं वे ही बिखराववादी और मुखौटावादी तत्वों के लिए तिनका ही बनते हैैं। यद्यपि तिनके का सहारा डूबने वाले को बचाने में सक्षम नहीं होता, लेकिन डूबने वाले को तिनके का सहारा कुछ समय के लिए भ्रमित जरूर कर देता है, खासकर चुनावों के समय।

आरएसएस सर्वधर्म समभाव के लिए समर्पित

सर्वधर्म समभाव के लिए समर्पित आरएसएस अपने प्रति आजादी के पूर्व से ही उत्पन्न की जा रही घृणात्मक भावना के घेरे को तोड़ने का प्रयास करता रहा है। यहां तक कि महात्मा गांधी की हत्या के मामले में भी उसे जबरन घसीटा गया, लेकिन इसके बावजूद बिखराववादी उसे घेरने में सफल नहीं हो पाए, क्योंकि उसके क्रियाकलाप और सामाजिक समरसता के प्रयास बहुविध प्रकार से समाज के प्रत्येक वर्ग और क्षेत्र में प्रगट हो चुके हैैं। बिखराववादियों और मुखौटावादियों के प्रलाप को धता बताते हुए संघ ने जिस प्रकार अपने काम और विस्तार से 1948 के बाद से ही देश की आम जनता के दिलोदिमाग में स्वयं के प्रति विश्वास पैदा किया उसे उस मार्ग से विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। उसकी राजनीतिक क्षेत्र में सफलता भी उसके इसी आचरण का परिणाम है। हालांकि राजनीतिक सफलता ही उसका अंतिम लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह एक पड़ाव मात्र है। इतने से ही उसे संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि अपने उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। अभी भारतीयता की सार्वभौमिकता का उसका लक्ष्य बहुत दूर है जिससे संपूर्ण मानवता सुखी हो सके। वहां तक पहुंचने के मार्ग भी बहुत हैं, लेकिन बिखराववादियों और मुखौटावादियों द्वारा संघ को बीच में ही उलझाकर रख देने की साजिश रची जा रही है। इसके लिए सामाजिक विद्वेष को उभारा जा रहा है। लोगों में हिंसक उत्तेजना पैदा की जा रही है। आज देखा जाए तो एक प्रकार से भारतीयता और अभारतीयता के बीच संघर्ष चरम पर है। युद्ध में विजय उसी की होती है जो धैर्य एवं शौर्य का परिचय दे। संघ इन दोनों से परिपूर्ण है। इसलिए उसे ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे मुखौटावादियों और बिखराववादियों को तिनके का सहारा मिले। उसे तिनके का सहारा बनने से बचना चाहिए। यह उसे अपने उद्देश्य से भटकाने का कारण बन सकता है।


[ लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं स्तंभकार हैैं ]