हर व्यक्ति समस्याग्रस्त है। कुछ समस्याएं बाहर की हैं और कुछ भीतर की। समाधान सभी चाहते हैं। एक मनीषी ने लिखा है ‘यह शरीर नौका है। यह डूबने भी लगता है और तैरने भी लगता है, क्योंकि हमारे कर्म सभी तरह के होने से यह स्थिति बनती है। इसीलिए बार-बार अच्छे कर्म करने की प्रेरणा दी जाती है। हमें यह समझ लेना चाहिए कि जिस प्रकार एक डाल पर बैठा व्यक्ति उसी डाल को काटता है तो उसका नीचे गिर जाना अवश्यंभावी है, उसी प्रकार गलत काम करने वाला व्यक्ति अंततोगत्वा गलत फल पाता है।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि आज जो बड़े कहलाने वाले लोग हैं, उनकी जीवन-शैली संयम प्रधान हो जाए तो हिंदुस्तान का कायाकल्प हो सकता है। इस संदर्भ में जब भी सोचता हूं महामात्य चाणक्य का चरित्र अनायास ही याद आ जाता है। गुप्त साम्राज्य के संस्थापक महामात्य चाणक्य बुद्धिमान, न्यायी और कूटनीतिज्ञ थे। अकेले अपने दम पर उन्होंने अन्यायी सत्ता को उखाड़ फेंका और चंद्रगुप्त को राज्य सिंहासन पर बैठाकर ऐसी सत्ता कायम की, जो आज भी स्वर्णयुग के रूप में याद की जाती है। इतने विशाल राज्य का प्रधानमंत्री होकर भी चाणक्य झोंपड़ी में रहते थे। संपत्ति के नाम पर झोंपड़ी में कुछ उपले, कुछ साधारण पात्र, साधारण बिछौना, अध्ययन के लिए कुछ ग्रंथ ही थे। एक दीया निजी कार्र्यों कोे लिए था, दूसरा राज्यकार्य में काम आने वाला। अपना कार्य करते समय चाणक्य राज्य द्वारा प्रदत्त दीपक को बुझा देते और अपना व्यक्तिगत दिया जला लेता। नैतिकता और प्रामाणिकता का यह जीवंत उदाहरण भारतीय संस्कृति में अन्यत्र तलाशने पर भी नहीं मिल सकता। आज के मंत्रियों और राज्यकमिर्यों के लिए तो यह स्वप्नवत् है। व्यक्तिगत जीवन की यह उत्कृष्ट शुचिता इस दुनिया में अपना उदाहरण छोड़कर शायद चाणक्य के साथ ही चली गई। सामाजिक परिवर्तन का एक अच्छा रास्ता यह है कि बड़े कहे जाने वाले लोग अपनी जीवनशैली को संयम प्रधान बनाएं। बड़े लोगों में बड़े व्यापारी उद्योगपति, सांसद, विधायक मंत्री और सामाजिक नेता-ये सभी आ जाते हैं। अगर इन लोगों के जीवन में संयम आ जाए तो नीचे तबके के लोग स्वयं प्रेरित होंगे। जिनके पास जरूरत भर के लिए भी नहीं है, उन्हें संयम का उपदेश कोई किस मुंह से दे?
[ गणि राजेन्द्र विजय ]