मानवता को देवत्व में रूपांतरित करने के लिए क्या चाहिए? जाहिर है जो मानव धर्म है, जो मानवता का गुणधर्म है उसी को जगाना और बढ़ाना होगा। पहले सच्चे इंसान बनें, फिर देवता बनने में देर नहीं होगी। यही है मनुष्य का धर्म। धर्म साधना से ही इंसान देवता बनता है। धर्म साधना क्या है? कहा गया है कि जहां मन है वहां जीवात्मा भी है, किंतु मन का विकास जहां कम है वहां जीवात्मा भी अविकसित है। इस स्थिति में वे परमात्मा से सीधे परिचालित होते हैं। समुद्र है वह भी काम करता है, किंतु अपनी बुद्धि से नहीं, क्योंकि उसका मन अविकसित है। मन अविकसित होने के कारण जीवात्मा का भी विकास अधिक नहीं हो सकता है। मनुष्य में जो जीवात्मा है वह क्या है? मनुष्य के मन पर जो परमात्मा का प्रतिफलन है वही मनुष्य की जीवात्मा है। मनुष्य का मन विकसित होने के कारण अर्थात साधना द्वारा किसी ने अगर मन को बड़ा या शुभसंकल्पवान बना लिया है तो उस पर जो परमात्मा का प्रतिफलन होगा वह भी बहुत जबर्दस्त होगा। अधिक जबर्दस्त होगा इसका आशय है जीवात्मा विकसित हो गई है। मन को शुभसंकल्पवान बनाने की साधना सब लोग कर सकते हैं। यह कोई बड़ा काम नहीं हैं। चेष्टा से हर कोई कर सकता है। इसके साथ ही साधना सब लोग कर सकते हैं। साधना करने के अधिकार में भेद नहीं है। जो लोग भेद की बात करते हैं वे साधना के मूलतत्व को नहीं जानते हैं। वे मूढ़ या अतार्किक हैं।
मन के अंदर जो परमात्मा का प्रतिफलन है वह क्या है? प्रतिफलन से मूलवस्तु को कहां तक समझना
संभव है? अगर पानी स्वच्छ और पारदर्शी नहीं है तो उसमें ठीक से देख नहीं सकेंगे। अर्थात पानी में गंदगी हो तो नहीं देख सकेंगे। अगर पानी में गंदगी नहीं है, किंतु चंचलता है तो भी क्या देख सकते हैं? नहीं। मानसपटल मनरूपी आईना है। उसमें परमात्मा का प्रतिफलन, जिसे हम जीवात्मा कहेंगे, आप कब देख सकेंगे? जब मन में चंचलता नहीं रहेगी और गंदगी भी नहीं रहेगी तभी आप परमात्मा का प्रतिफलन देख सकेंगे। परमात्मा की अनुभूति करने के लिए क्या करना होगा? क्या जीवात्मा को देख लेने से ही परमात्मा को देख लेंगे? जीवात्मा को देख पाने के लिए क्या करना होगा? इसका जवाब है-मन को स्थिर करना होगा, मन की गंदगी या मन से नकारात्मक और कलुषित विचारों को हटा लेना होगा।
[ श्री श्री आनंदमूर्ति ]