पहचान
मूल्यांकन करने की इच्छा मानव में निरंतर उपजती रहती है। सामने वाले को तत्काल प्रभाव में लेने की शीघ्रता समस्या बढ़ाती है।
मूल्यांकन करने की इच्छा मानव में निरंतर उपजती रहती है। सामने वाले को तत्काल प्रभाव में लेने की शीघ्रता समस्या बढ़ाती है। किसी से पलक झपकते ही सर्वस्व ज्ञात करने की कोई कला अभी तक ज्ञात नहीं है। जिसे जिस क्षेत्र का कोई ज्ञान नहीं रहता, वह उसी क्षेत्र का यक्ष प्रश्न करता है। परिश्रमी की भीड़ से अलग सफलता का सार्थक मानदंड खोजने वाले नियम परिवर्तन में विश्वास रखते हैं। कहीं पहुंचते ही व्यक्तित्व प्रभा कई हजार गुना दैदीप्यमान हो जाती है। समान योग्यता रखने वालों में किसी को सेवा का अवसर मिलने पर ऊंचाई का शिखर मिलते देर नहीं लगती। डूबते को तिनके का सहारा कम नहीं होता। तुलसीदास जी की भांति गुरु नरहरिदास की खोज करने में पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है। वरदानदाता के लिए पैर पकड़कर पीछे खींचने वाले भस्मासुर बन जाते हैं। अपनी सीमा से अधिक कोई पचाना नहीं जानता। समय की आंच में तपकर निखरना सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं है। पग-पग पर प्रतिकूलता से जूझने वाले लोहा लेते-लेते पारस पत्थर बन जाते हैं।
कोयला अधिक ताप के दबाव में हीरा बनकर गौरवान्वित होता है। पद, धन के संसाधनों में उच्चता का शिखर चूमना सरल रहता है, मगर पद न पाने वाले जब पद वालों से आगे निकल जाते हैं तो खरगोश और कछुए की कथा चरितार्थ होती है। मझधार में लड़खड़ाते हुए व्यक्ति को बचाने वाले भगवान कहलाते हैं। संकट सहते-सहते सामान्य मनुष्य महापुरुष बन जाता है। प्रशंसा का प्रोत्साहन कृतज्ञता बढ़ाता है। कृतज्ञता योग्यता पहचानने का तत्व है। उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं, पर अस्ताचल में जाते सूर्य को छठ पर्व में ही अघ्र्य चढ़ता है। पद का संबंध योग्यता से है। योग्य के स्थान पर अयोग्य को पद थोपकर योग्यता बढ़ाई जाती है। पद को भगवान तुल्य बनाने के कारण निरंतर प्रशंसा और अयोग्यता अहंकार में वृद्धि करती है। प्रयास के बगैर प्राप्त फल अकर्मण्यता का पोषक है। अयोग्यता स्वयं से श्रेष्ठ को नकारती है। हाथी की पग-पग पर पूजा ही श्वान का दुख बढ़ाती है। दुर्जन सज्जनता को कायरता मानते हैं। सज्जन निश्छल परिश्रम में जीते हैं। प्रश्न पर अतार्किक प्रश्न करना मूर्खता का प्रतीक है। हर बात में प्रश्न अर्थ का अनर्थ करता है। त्याग न करने वाले पर त्याग का उद्बोधन त्यागी को अप्रिय लगता है। संसार में किसी से किसी की तुलना और समानता कठिन है।
[ डॉ. हरिप्रसाद दुबे ]