एक जमाना वह भी था जब काम-काज के आधार पर इमेज यानी छवि बना करती थी। यह दौर जरा अलग है। इस दौर में खुद की ब्रांडिंग करनी पड़ती है और ब्रांडिंग का सबसे बड़ा हथियार है सोशल मीडिया। फिलहाल
हालात ऐसे हो गए हैं सोशल मीडिया से अनभिज्ञ व्यक्ति अनपढ़ माना जाता है। वहीं जो सोशल मीडिया के मठाधीश हैं वे जानते हैं कि अपने काम से नाम कैसे कमाते हैं और शोहरत कैसे बनाते हैं। मसलन हिट होने का नुस्खा क्या है और आदमी कैसे लाइट में आता है। यहां लाइट का मतलब फोकस यानी सबकी नजरों में चढ़ने से है। ‘अजगर करे न चाकरी’ जैसी कहावतें अब अपना अर्थ खो बैठी हैं। इस युग में ‘नेता करे न चाकरी, चमचा करे न काम’ सरीखी बात समझने की दरकार है। आज वही असली ज्ञानी भी है और महान भी जो फेसबुक पर
दनादन पोस्ट डालता रहे और ट्विटर पर चिड़िया उड़ाता रहे। आज आदमी की औकात बैंक खाते से नहीं, बल्कि फेसबुक और ट्विटर पर उसकी फॉलोइंग से होती है। कौन कितना बड़ा सितारा है और किसमें भीड़ जुटाने की कितनी बढ़िया कला है?
किसी का लोकप्रिय होना इस पर भी निर्भर करने लगा है कि वह विवाद खड़ा करने की कितनी क्षमता रखता है। आज महानता स्वजनित सामाजिक श्रद्धा या स्वीकृति नहीं है, बल्कि वह समाज पर बनाई अपनी पहचान का प्रतिफल ही है। इस किस्म की महानता भी अब मार्केटिंग के दायरे में आ चुकी है। आपको अपनी इमेज की ब्रांडिंग से पहले ही तय करना होगा कि आप अपने लिए कौन सी महानता चाहते हैं। आपको सामाजिक सेवा वाली महानता चाहिए या फिर आध्यात्म और योग वाली महानता? अगर कला-साहित्य या फिल्मी दुनिया वाली महानता चाहते हैं तो उसके लिए अलग तरह की तिकड़म भिड़ानी होगी। इसी तरह सियासी मोर्चे की महानता अलग तरह की अर्हता की मांग करती है। क्या आप खेल जगत की बड़ी शख्सियत बनने को लालायित हैं या फिर प्रशासन में सुधार की महानता वाला कीड़ा आपको फायदा पहुंचाएगा? क्या आप महिला कल्याण से जुड़ी महानता के इच्छुक हैं या फिर फुटपाथ पर संघर्ष कर रहे लोगों के रहनुमा बनने वाली महानता अर्जित करना चाहते हैं या फिर आप वैसे शख्स हैं जिसे बेस्टसेलर किताब या रियलिटी शो वाली महानता भाती है? हर किस्म की महानता की अपनी अलग कीमत है। इस पर जितना गुड़ डालोगे, मिठास उतनी ही बढ़ेगी वाली कहावत मुफीद बैठती है। जुदा किस्म की महानता अपने-अपने तरीके से फायदा दिलाती है।
कृपया महानता को मानसिक संतुष्टि से जोड़कर मत देखिए, क्योंकि आज अध्यात्म के शिखर पर बैठा योगी भी सोशल मीडिया के रंग में किसी भोगी के जैसा ही नजर आ रहा है। भौतिक जीवन में भले ही वह सब कुछ त्यागने का उपदेश दे रहा हो, लेकिन अंदर की बात यह है कि वह सब कुछ समेटने पर आमादा है। इस दौर में अगर कुटिया, टेंट और आश्रम शब्द से सादे जीवन का अनुमान लगाएंगे तो धोखा खा जाएंगे। इन दिनों आश्रम पांच सितारा होटलों को मात दे रहे हैं। स्वीमिंग पूल से लेकर विदेशी पकवान बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं। बस आपकी श्रद्धा क्षमता और भोग की इच्छा पर निर्भर करता है कि आप किस किस्म के आश्रम का चुनाव करते हैं। मैं पहले ही कह चुका हैं कि पूरा खेल ही इमेज की ब्रांडिंग का है। एक बार तय कर लीजिए कि खुद के लिए आप कौनसी छवि चुनना चाहते हैं और फिर उसके मुताबिक अपनी प्रोफाइल बनवा लीजिए। फिर आइटी में महारत रखने वाले दो-चार चेले-चपाटे ले आइए और फिर दुनिया में अपने नाम की चमक देखने के लिए तैयार हो जाइए। आज किसी के बारे में भी मालूमात करने का सबसे आसान तरीका है गूगल। बस गूगल करिए और जानकारी के नाम पर वह जो भी आपको परोसकर दे दे वही आपके लिए प्रमाणिक जानकारी हो गई। बस इंटरनेट रूपी सागर में अपने नाम की पुड़िया घोल दीजिए फिर डेटा प्रवाह के इस दौर में चहुंओर आपके नाम का प्रताप नजर आने लगेगा। अगर कोई विकास की बात करे तो फौरन ही गूगल पर आपका नाम आ जाए या किसी संत का जिक्र करने पर ही गूगल आपकी तस्वीर पेश कर दे। अगर कुछ खर्चा-पानी करके आप इसमें पारंगत हो गए तो यकीन मानिए कि महानता को आपके कदम चूमने से कोई ताकत नहीं रोक सकती। आपका कद आसमान को छूने लगेगा। तमाम भौतिक सुख-सुविधाएं आपके पास खिंची चली आएंगी। आप न जाने कितनी उम्मीदों के चिराग और तमाम दीन-दुखियों के तारणहार बन जाएंगे। आप भगवान बन जाएंगे और अपने सामने भक्तोंं का तांता पाएंगे। आपकी गर्दन को पुष्पमालाओं की आदत लग जाएगी और अपने दर्शन देकर आप सोसायटी को धन्य करेंगे। इस तरह आप महानता के हैंगओवर में जीने लगेंगे। आज किसी भी क्षेत्र में हाथ आजमाना उस पर छाप छोड़ना और बनाए नाम को भुनाना मुश्किल नहीं रह गया है।
आज महानता का हैंगओवर सोशल मीडिया और मार्केट के हाथ की कठपुतली है। हालांकि कालजयी और किंवदंती बनने का रास्ता यहां से गुजरता है या नहीं, अभी यह कह पाना मुश्किल है। एक बात और ब्रांडिग की हिंदी कलई और हैंगओवर के सत्य को देखें तो इसी जीवन में कलई और हैंगओवर का उतर जाना सच्चा अध्यात्म है। सो इमेज की ब्रांडिग और महानता के हैंगओवर के बीच जो आम आदमी जीवन के सत्य को समझ लेता है वह बाजार से गुजरते हुए कबीरवादी चिंतक हो जाता है और खरीदार नहीं होता। उसे ओढ़ी हुई महानता के हैंगओवर का अहसास मीडिया से दूर खड़े होकर ही हो जाता है।

[ लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव हैं ]