पिछले तीन वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना ध्यान विकास के मुद्दे पर केंद्रित करने के लिए हर संभव जतन कर रहे हैं, परंतु विरोधी लोग उनका ध्यान भटकाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। विकास का विषय विमर्श के केंद्र में न रहे, इसके लिए कभी वे संघ परिवार के महत्वहीन तत्वों की हरकतों को मुद्दा बनाते हैं तो कभी अदालती आदेशों और सतही मसलों को आधार बनाकर सरकार के दैनिक कामकाज को पटरी से उतारने का भरसक प्रयास करते हैं। इन दिनों जिस मामले को लेकर खूब शोरगुल मचा है वह है पशु क्रूरता निवारण (पशुधन बाजार का विनियमन) अधिनियम-2017।

इस नए अधिनियम का मकसद जानवरों को क्रूरता से बचाना है, न कि मांस बाजार पर नियंत्रण करना। इसका उद्देश्य पशुओं की अवैध खरीद-ब्रिकी और तस्करी पर भी रोक लगाना है। यह अधिनियम पशु बाजार में जानवरों की खरीद-ब्रिकी के साथ केस प्रॉपर्टी एनिमल (ऐसे जानवर जो कानून लागू करने वाली एजेंसी के कब्जे में हों) पर लागू होता है। अन्य इसके दायरे में नहीं आते। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अधिनियिम गौरी मौलेखी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लागू किया गया है जो मुख्यरूप से नेपाल के लिए पशु तस्करी से संबंधित था। इस मामले में अदालत ने 13 जुलाई, 2015 को आदेश दिया था कि सरकार को नेपाल में गढ़ीमाई त्योहार, जिसमें बड़े पैमाने पर जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है, के लिए भारत से जानवरों की तस्करी रोकने के लिए दिशानिर्देश बनाने चाहिए।

शीर्ष अदालत ने सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के महानिदेशक को मामले के विस्तृत परीक्षण के निर्देश दिए और पशुओं की सीमापार तस्करी पर रोक लगाने के कुछ सुझाव दिए। उसने सरकार से इन सिफारिशों को लागू करने और नियमों को अधिसूचित करने को कहा। 12 जुलाई, 2016 को दिए अपने अंतिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि इस अधिनियम की रूपरेखा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम-1960 की धारा-38 के तहत तीन महीने के अंदर तैयार हो जानी चाहिए। 1सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद ही भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने नियमों का मसौदा तैयार किया और उसे इसी साल 16 जनवरी को सार्वजनिक कर प्रभावित लोगों से तीस दिन के अंदर अपने विरोध और सुझाव दर्ज कराने को कहा। इस संबंध में सरकार को 13 सुझाव मिले जिनका परीक्षण कर पिछले महीने इसे अधिनियम का रूप दे दिया गया।

क्या आपने देश के विभिन्न हिस्सों में इन नियमों पर जारी कर्कश बहस में इन तथ्यों या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में कुछ भी सुना है? क्या यह कहना पूरी तरह गलत नहीं कि इन नियमों का मकसद गोमांस खाने को रोकना है? इसकी पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार है। देहरादून की गौरी मौलेखी ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की कि न्यायालय नेपाल के बरियारपुर में प्रत्येक पांच वर्ष में मनाए जाने वाले गढ़ीमाई त्योहार के दौरान पशुबलि जैसे बर्बर कृत्य के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड से लाखों जानवरों को नेपाल ले जाने पर रोक लगाए। यह दुनिया का सबसे बड़ा पशुओं की बलि चढ़ाने वाला त्योहार है। सिर्फ दो दिनों के अंदर ही भेड़, भैंस, सुअर आदि सहित करीब पांच लाख जानवरों की बलि चढ़ा दी जाती है। इनमें से सत्तर प्रतिशत जानवरों को तस्करी के जरिये भारत से ले जाया जाता है।

न्यायालय ने अक्टूबर 2014 में पहली ही सुनवाई में यह निर्देश जारी किया कि एक भी जिंदा पशु अवैध रूप से भारत से नेपाल नहीं जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एसएसबी के महानिदेशक को राज्यों के प्रतिनिधियों से बैठक कर और याचिकाकर्ता से बातचीत कर एक व्यापक योजना बनाने और उसकी रिपोर्ट अदालत को सौंपने का आदेश दिया। कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप महानिदेशक ने योजना बनाई। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि त्योहार के दौरान भारत से लाखों लोग सीमापार आते-जाते हैं। भारत-नेपाल की सीमा खुली और निर्बाध प्रकृति की होने के कारण जब तक मवेशियों के सीमा तक परिवहन पर रोक लगाने के लिए देश के आंतरिक क्षेत्र में प्रभावी कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक सीमापार उनकी तस्करी पर रोक लगाना कठिन होगा। लिहाजा पशुओं की तस्करी पर रोकथाम और उन्हें बलि चढ़ने से बचाने के लिए सभी राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा सख्त प्रयास किए जाने जरूरी हैं।

उन्होंने न्यायालय को बताया कि इन जानवरों के परिवहन के दौरान संविधान के प्रावधानों सहित 17 तरह के नियमों-कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। इसके अतिरिक्त बड़े पैमाने पर उत्पादक जानवरों के खत्म हो जाने से अर्थव्यवस्था पर असर होता है। वहीं कृषि और पशुपालन की प्रक्रिया प्रभावित होने के साथ-साथ मवेशियों की खरीद-बिक्री की आड़ में अवैध गतिविधियां और सीमापार उनकी तस्करी की घटनाएं भी होती हैं।1एसएसबी महानिदेशक ने अपनी रिपोर्ट में जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम के लिए प्रत्येक जिले में सोसाइटी का गठन करने, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुरूप प्रत्येक राज्य में राज्य पशु कल्याण बोर्ड स्थापित करने, कानून लागू करने वाली एजेंसियों के लिए पशु कल्याण पर प्रशिक्षण मॉड्यूल बनाने और किसी भी धार्मिक या सार्वजनिक स्थान पर पशुवध पर प्रतिबंध लगाने और एक निगरानी एवं मूल्यांकन समिति गठित करने की सिफारिश की।

उनकी रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पशु बाजार को नियंत्रित करने के लिए नए नियम बनाए जाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वस्थ मवेशी कानूनी रूप से वैध उद्देश्य के लिए ही बेचे जाएं। जानवरों का परिवहन विभिन्न प्रचलित नियमों और अधिनियमों के तहत ही होना चाहिए। साथ ही जब्त मवेशियों की बिक्री के लिए ऐसे नियम अवश्य बनाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे दोबारा तस्करों के हाथों में न जा सकें। न्यायालय ने केंद्र सरकार को इन सिफारिशों को लागू करने और एसएसबी के महानिदेशक द्वारा पेश रिपोर्ट में व्यक्त सुझावों के अनुरूप नए नियम बनाने के निर्देश दिए। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए अतिरिक्त समय लिया और अंतत: इस संबंध में नियम-कायदे लेकर आई, जिन पर अब कुछ लोगों द्वारा सवाल उठाया जा रहा है। सवाल है कि इससे गोमांस के उपभोग या फिर गाय की सुरक्षा से कुछ लेना-देना कैसे है? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करना पाप है?

यह पूरी तरह से फर्जी विवाद है जिसे छद्म सेक्युलर ब्रिगेड ने खड़ा किया है जो गाय को पवित्र मानने के लिए हिंदुओं का मजाक उड़ाना अपना धंधा समझती है। न्यायालय के निर्देशानुरूप अधिनियम बनाने के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए केरल में हिंदुओं से घृणा करने वाले कम्युनिस्टों ने सड़क किनारे से गोमांस पकाया और खाया। अफसोस की बात है कि कांग्रेस पार्टी भी इन दिनों उन्हीं के नक्शेकदम पर चल रही है। यूथ कांग्रेस ने इस अवसर पर हिंदुओं का उपहास उड़ाया। तिरुवनंतपुरम में सड़क किनारे उसके कार्यकर्ताओं ने भी गोवंश काटा और उसका मांस बांटा। कांग्रेस को एक बात याद रखनी चाहिए कि देश की जनता उसका आचरण देख रही है। एक दिन उसे सबक जरूर सिखाएगी।

(लेखक ए. सूर्यप्रकाश प्रसार भारती के अध्यक्ष और जाने-माने स्तंभकार हैं)