विद्या ग्रहण करना हर काल में महत्वपूर्ण रहा है। आज हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं, जिसे विज्ञान का युग कहा जाता है। वर्तमान में मनुष्य ने अंतरिक्ष की ऊंचाई और समुद्र की गहराई तक नाप डाली है। वह चांद पर पहुंच गया है। अपनी इन वैज्ञानिक उपलब्धियों पर मनुष्य काफी गौरवान्वित महसूस कर रहा है। यह सब उपलब्धियां मनुष्य ने शिक्षा के कारण ही हासिल की हैं। इसलिए प्रत्येक मनुष्य के जीवन में शिक्षा का बहुत महत्व होता है। शिक्षित होकर ही मनुष्य अपना और अपने समाज का विकास करता है। शिक्षित होने की वजह से ही हम मनुष्य इस पृथ्वी के सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।
विद्या, विनय देती है। विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है। कोई भी व्यक्ति वह चाहे किसी कुल में पैदा क्यों न हुआ हो, लेकिन विद्या सभी के लिए अनिवार्य है। अशिक्षित मनुष्य का जीवन पशु के समान माना गया है। वह सही निर्णय लेने में समर्थ नहीं होता, लेकिन जब वह शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो उसके ज्ञानचक्षु खुल जाते हैं। जो माता-पिता अपने बच्चे को पढ़ाते नहीं हैं, वे अपने पुत्र के सबसे बड़े शत्रु हैं। गीता में कहा गया है कि इस संसार में ज्ञान के समान और कुछ पवित्र नहीं है। कहा गया है कि ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ‘यानी अंधकार से मुझे प्रकाश की ओर ले जाओ। यहां प्रकाश का मतलब ज्ञान है। जहां ज्ञान होता है, वहां लक्ष्मीजी भी वास करती हैं। किताबी ज्ञान से ज्यादा मनुष्य को व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिए। एक पंडित नाव में सवार हुए। कुछ दूरी की यात्रा करने के बाद उन्होंने नाविक से पूछा कि क्या तुमने वेद पढ़े हैं। नाविक ने जब इसका जवाब नहीं में दिया तो पंडित जी बोले कि तुम्हारा आधा जीवन व्यर्थ चला गया। जब नाव नदी के बीचों-बीच पहुंची तो नाविक ने कहा कि पंडितजी क्या आपको तैरना आता है। जब पंडितजी ने इसका जवाब नहीं में दिया, तो नाव में हो चुके छेद की ओर इशारा करते हुए नाविक ने कहा कि तब आपका पूरा जीवन व्यर्थ हो चुका है। कहने का तात्पर्य यही हुआ कि नाविक को वेदों की जानकारी हो या न हो, इससे उसके जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन तैरना नहीं जानने की वजह से पंडितजी अपनी जान नहीं बचा पाए। इंसान को अपनी शिक्षा का कभी घमंड नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे हमेशा यही मानना चाहिए कि वह जितना जानता है वह तो कुछ भी नहीं है।
[ महर्षि ओम ]