एक ऐसे दौर में जब लगभग हर जगह नकारात्मक और निराशा का वातावरण है, तब जीने के लिए सिर्फ एक ही राह बचती है और वह है सकारात्मक सोच की। बड़े-बुजुर्ग भी सकारात्मक सोच रखने की सलाह देते हैं और मनोचिकित्सकों का भी कहना है कि सकारात्मक सोच रखने वालों को सफलता मिलने की संभावना नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों की तुलना में ज्यादा होती है। ब्रिटेन के मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल कहते थे कि एक निराशावादी व्यक्ति को हर अवसर में कठिनाई दिखती है, वहीं एक आशावादी व्यक्ति को हर कठिनाई में अवसर दिखता है। सकारात्मक सोच, तन और मन दोनों को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सोच आपको न केवल जीवन को संतुलित रखने में मदद करती है, बल्कि आपके रोजमर्रा के अनुभवों को भी कहींज्यादा सुखद बना देती है। इससे जीवन के किसी भी बदलाव के साथ खुद को बदलने में भी मदद मिलती है। मन में अपने आप आने वाले नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में बदलने के लिए आपको जागरूक होने की जरूरत होती है। जब आप अपने सकारात्मक विचारों को पहचान पाएंगे, तो आप नकारात्मक विचारों को चुनौती दे सकते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि नकारात्मक विचारों को हम कैसे सकारात्मक बनाएं। विचार सबके मन में आते हैं, लेकिन विचार उसी के मान्य होते हैं या महान होते हैं जो अर्थपूर्ण हों और जिनका कोई अपना अस्तित्व हो। इसलिए अर्थपूर्ण विचारों के लिए जरूरी है-नई पुस्तकें पढ़ें और लोगों से मिलें-जुलें, अपने इष्टदेव के प्रति निष्ठा रखें, व्यस्त जीवन में से थोड़ा-सा समय ध्यान-योग के लिए निकालें। बस ये सारे प्रयास नए विचारों के रूप में टॉनिक का काम करते हैं। ऐसे नए विचारों से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, जो जीवन में नई तरंग और उमंग भरती है। हमेशा हर काम खुश रहकर करें। तनावरहित वातावरण में काम करने से हमें भारी काम भी रुचिकर लगते हैं। मानव स्वभाव ही ऐसा है कि जरा भी गड़बड़ी होने पर वह नकारात्मक ही सोचता है। इसलिए अपने दिमाग को रुचिकर कामों में लगाना चाहिए। जो लोग अपने जीवन में खुश रहते हैं वह अपने जीवन में खुश और सकारात्मक रहते हैं। ‘हॉवर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ के अनुसार आशावादी लोग चिंता और बेचैनी का सामना बेहतर ढंग से करते हैं। इससे वे हृदय रोग, मोटापा, मधुमेह जैसी बीमारियों में कम ही फंसते हैं।
[ रेणु जैन ]