अभिनव प्रकाश

पिछले 22 वर्षों से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा राज्य की जनता से एक बार फिर जनादेश की गुहार लगा रही है तो इतने लंबे अरसे से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस को वापसी का सुनहरा मौका नजर आ रहा है। दिलचस्प यह है कि अमूमन रक्षात्मक रहने वाली कांग्रेस इस बार खासे आक्रामक तेवर दिखा रही है और भाजपा को उसी के हथियार से मात देने की फिराक में है। यह हथियार और कुछ नहीं विकास का वही ‘गुजरात मॉडल’ है जिसके दम पर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच गए। अब कांग्रेस के निशाने पर यही गुजरात मॉडल है। उसका आरोप है कि गुजरात में कोई विकास हुआ ही नहीं। प्रथमदृष्टया उसका यह आरोप हैरान करता है, क्योंकि हाल तक कांग्रेसी यह कहते नहीं थकते थे, ‘मोदी ने किया ही क्या है? गुजरात तो पहले से ही विकसित था!’ मोदी के गुजरात मॉडल का पहला स्तंभ राज्य और कानून-व्यवस्था से जुड़ा है जिसमें कानून के राज को आदर्श रूप से स्थापित किया गया। कांग्रेसी शासन में दंगा-राज और गुंडा-राज ही गुजरात का यथार्थ था। राजनीतिक सत्ता का सारा खेल जाति और मजहब के गुणा-गणित पर आधारित था। सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पक्ष की जातियों के ‘बाहुबलियों’ को प्रश्रय देने की नीति अपना रखी थी। ये बाहुबली चुनाव के वक्त काम आते थे। इसके विपरीत गुजरात मॉडल के केंद्र में हिंदुत्व के आधार पर एक संयुक्त-हिंदू मतदाता वर्ग का निर्माण किया गया। संगठित हिंदू-वोट ने एक ही झटके में सारा पुराना चुनावी गुणा-गणित खत्म कर दिया।
गुजरात में पहले अन्य राज्यों की तरह से कोई भी पार्टी दो-तीन हिंदू जातियों को साधती थी और मुस्लिम वोटों को उसमें सम्मिलित करके चुनाव जीत जाती थी, परंतु इससे होता यह था कि सरकार हमेशा इन जातियों और समुदायों के नेताओं एवं गुंडों से ब्लैकमेल होती रहती थी। वह गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई का साहस इस भय से नहीं जुटा पाती थी कि कहीं उसकी कीमत अगले चुनाव में न चुकानी पड़ जाए। चूंकि मोदी का गुजरात इस दलदल से मुक्त हो सका इसीलिए वह संगठित अपराध, माफिया और बाहुबलियों के वर्चस्व को तोड़ने में सफल हुआ। जहां देश की राजधानी दिल्ली तक में बाजार 8-9 बजते-बजते बंद हो जाते हैं और थोड़ी बहुत नाइट्लाइफ पब-डिस्को और होटलों तक सिमट जाती है वहीं गुजरात के शहरों में आधी-रात तक सड़कों पर बाजार की रौनक रहती है और लोग सपरिवार घूमते दिखते हैं। इनमें लड़कियां और महिलाएं भी होती हैैं। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार गुजरात महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित राज्यों में से है। जहां पहले शहरों के चुनिंदा इलाकों में ‘भाई कल्चर’ चलता था और महीनों तक कफ्र्यू लगा रहता था वहां अब बाजार फल-फूल रहे हैैं। जाहिर है कि कानून एवं व्यवस्था अच्छी होगी, स्थायित्व और शांति होगी तो अर्थव्यवस्था भी बेहतर होगी ही। 2001-2013 से गुजरात की जीडीपी 10 फीसद की दर से बढ़ी है। यही नहीं 2012-2017 के कालखंड में भी जब हर जगह विकास दर गिरी है तब भी गुजरात ने 10 प्रतिशत की दर बरकरार रखी है, जो देश में सबसे अधिक है। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत का 22 प्रतिशत निर्यात गुजरात से होता है। 2013-2017 में गुजरात की अर्थव्यवस्था में औद्योगिक और उत्पादन क्षेत्र का हिस्सा 28.4 फीसद से बढ़ कर 34.4 फीसद हो गया है जो कि चीन के समकक्ष है। 1999-2000 में गुजरात अगर भारत का पांचवां सबसे समृद्ध राज्य था तो आज यह देश का तीसरा सबसे समृद्ध राज्य है।
‘अंबानी-अडानी की सरकार’ और कॉरपोरेट मॉडल के फर्जी प्रवचन के विपरीत गुजरात की अर्थव्यवस्था का 37 फीसद हिस्सा लघु और मध्यम उद्योगों का है और पिछले 5 वर्षों में सबसे अधिक बढ़त श्रम प्रधान क्षेत्रों में हुई है। देश में सबसे अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग गुजरात में हैं। गुजरात सबसे कम बेरोजगारी वाले क्षेत्रों में से है। दरअसल गुजरात आज पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर-प्रदेश और अन्य इलाकों के मजदूरों के पलायन का मुख्य केंद्र है। रोजी-रोटी की तलाश में गुजरात जाने वालों में अमेठी और रायबरेली के लोग भी शामिल हैैं। यहां के कई परिवार तो स्थाई रूप से वहीं बस गए हैैं। सोशल सेक्टर में भी गुजरात की प्रगति सराहनीय है। आंकड़ों को गलत तरीके से पेश कर गुजरात की गलत तस्वीर खींची जा रही है। केरल में शिशु मृत्यु दर (12/1000) की गुजरात (33/1000) से तुलना करकेयह बताया जा रहा है कि गुजरात में विकास के दावे झूठे है। जो नहीं बताया जा रहा वह यह कि 2001 में केरल में यह दर 11/1000 थी और गुजरात में 60/1000। केरल में यह 11 से बढ़ कर 12 हुई है तो गुजरात में 60 से घट कर 2015 में 33 हुई और 2017 में कुछ और कम।
गुजरात कम पानी वाला क्षेत्र है। यहां की बहुत सी जमीन बंजर है या फिर कम उपजाऊ है, फिर भी गुजरात कृषि क्षेत्र में 11 प्रतिशत तक की विकास दर हासिल करने में सक्षम रहा है। इजरायल की सिंचाई की आधुनिक तकनीक-ड्रिप-सिंचाई को अपनाने, 1,00,000 चेक-डैम बनाने, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, कृषि-बाजार में सुधार, किसानों को सूचना के साधनों और तकनीक से जोड़ने के जो काम किए गए उनके चलते हालात पहले से बेहतर हुए हैं। गुजरात मॉडल में आधारभूत संरचना में निवेश पर भी खासा जोर दिया गया है। बिजली-क्षेत्र में सुधार का गुजरात सफल उदाहरण है। इसके अलावा वह अक्षय ऊर्जा जैसे वायु और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी देश के अग्रणी राज्यों में से है। गुजरात सौ फीसद गांवों में बिजली पहुंचाने वाला पहला राज्य है। वह घरेलू उपभोक्ताओं को 24 घंटे और खेती-सिंचाई जैसे कार्यों के लिए प्रतिदिन 8-10 घंटे बिजली देने में सफल रहा है। सड़कों, बंदरगाहों इत्यादि में अप्रत्याशित सुधार की कहानी तो जगजाहिर है।
गुजरात मॉडल का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ प्रशासनिक सुधार है। मोदी ने गुजरात में न केवल पेशेवर लोगों की नियुक्ति पर जोर दिया, बल्कि नियुक्तियों और प्रोन्नति में कार्य-प्रदर्शन को अहमियत देना शुरू किया। इसके अलावा नई तकनीक खासतौर पर डिजिटल तकनीक को बड़े पैमाने पर सरकारी ढांचे में एकीकृत करना शुरू किया। इससे एक ओर जहां सरकार की कार्य-क्षमता बढ़ी वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगी। सीएमएस के 2017 के एक शोध के अनुसार कांग्रेस शासित कर्नाटक देश का सबसे भ्रष्ट राज्य है वहीं गुजरात में 2005-17 के बीच भ्रष्टाचार में गिरावट आई है। गुजरात मॉडल अच्छी कानून एवं व्यवस्था, कुशल प्रशासन, बेहतरीन आधारभूत ढांचे और उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अधिक से अधिक आर्थिक स्वतंत्रता देने पर आधारित है और इसी कारण वह लगातार दो दशकों तक 10 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर देने में सफल रहा है। यह सही है कि सोशल सेक्टर में कई क्षेत्रों में बेहतर काम हो सकता था, लेकिन कांग्रेस का यह कहना कि ‘विकास पागल हो गया है’ नकारात्मक राजनीति का चरम है। बजाय इसके कि बेहतर काम करने का अपना मसौदा रखकर विपक्ष चुनाव लड़ता, वह जाति-समुदाय की राजनीति के आधार पर चुनाव लड़ रहा है। यह एक तरह से गुजरात को 80 और 90 के दशक में लौटाने वाली राजनीति है।
[ लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैैं ]