अनुराग दीक्षित

मोदी सरकार के तीन साल काकार्यकाल पूरे होने के साथ 16वीं लोकसभा भी तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। यह नई लोकसभा 18 मई को गठित हुई और उसके पहले सत्र की शुरुआत चार जून से हुई थी। भारतीय राजनीति और साथ ही लोकसभा के लिए 16 मई का दिन बेहद अहम था। इसी दिन नौ चरणों में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे। 16वीं लोकसभा के चुनाव के लिए रिकार्ड मतदान हुआ और नतीजों ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी। 543 लोकसभा सीटों में से 282 सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गईं और उसने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 330 से अधिक सीटें हासिल कीं। नई लोकसभा में कुल छह राष्ट्रीय और 39 राज्य स्तरीय दलों समेत 464 राजनीतिक दलों की हिस्सेदारी तय हुई थी। 30 साल बाद केंद्र में किसी राजनीतिक दल को स्पष्ट जनादेश मिला था। कई राज्यों में विपक्ष का खाता तक नहीं खुल सका था और कुछ दल तो ऐसे रहे जिनका एक भी सदस्य निचले सदन नहीं पहुंच सका। चुनावी मैदान में कूदे 8251 उम्मीदवारों में से 7000 की जमानत जब्त हुई। चुनाव नतीजे आने के ठीक दो दिन बाद लोकसभा का विधिवत गठन हुआ। इस बार की लोकसभा पिछली कई लोकसभा के मुकाबले काफी अलग थी। चुने गए 543 लोकसभा सदस्यों में से 315 सदस्य पहली बार चुनकर लोकसभा पंहुचे थे। इनमें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे। कुल चुने गए 481 पुरुष सदस्यों में से 57 फीसद यानी 275 पहली बार सांसद बने। इसी तरह कुल चुनी गईं 62 महिला सदस्यों में से 64 फीसद यानी 40 पहली बार सांसद के रूप में निचले सदन की सदस्य बनीं। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव के बाद बीते 62 सालों के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था। नई लोकसभा में एक और रिकार्ड यह बना था कि सर्वाधिक 62 महिलाएं चुनकर आई थीं। 16वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरूआत के अगले ही दिन यानी पांच जून को भी एक नया कीर्तिमान बना। सदन में चुनकर आए 543 सदस्यों में से 510 सदस्यों ने एक ही दिन में शपथ ली। ऐसा संभवत पहली बार हुआ। इसी पहले सत्र में वरिष्ठ संसद सदस्य सुमित्रा महाजन को निर्विरोध लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। वह इंदौर से ही आठ बार से सांसद चुनी जा चुकी हैं। भले ही वह दूसरी महिला अध्यक्ष चुनी गई हों, लेकिन इतना लंबा संसदीय अनुभव रखने वाली वह पहली महिला स्पीकर बनीं। इसके पहले के लोकसभाध्यक्षों में से वह तीसरी सर्वाधिक अनुभवी स्पीकर हैं। चूंकि अमूमन संसद में चर्चा के स्तर के लगातार गिरने पर चिंता जताई जा रही थी इसलिए यह जरूरी था कि संसद की गरिमा को बनाए रखा जाए। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास हुए और उनका लाभ भी मिला। लोकसभा अध्यक्ष ने एक नई पहल अध्यक्षीय शोध कदम के रूप में की। इसका मकसद संसद सदस्यों को अलग-अलग विषयों पर विषय विशेषज्ञों द्वारा सटीक जानकारी मुहैया कराना था। बदले वैश्विक परिदृश्य में जटिल होते मुद्दों के बीच संसद सदस्यों के लिए इस पहल के काफी मायने थे। खासकर तब जबकि लोकसभा में मौजूद 36 राजनीतिक दलों में से 29 दलों के अधिकांश उम्मीदवार पहली बार निर्वाचित हुए थे। 16वीं लोकसभा में ही सतत विकास लक्ष्य को लेकर एक और नई पहल हुई। भारत को साल 2015 से 2030 तक सतत विकास लक्ष्य के जरूरी 17 लक्ष्यों पर काम करना है। इसकी जरूरत समझी गई कि यह काम तभी होगा जबकि बेहतर नीतियां बनेंगी और बेहतर नीतियां तब बनेंगी जबकि जनप्रतिनिधि इसे लेकर गंभीर होंगे। इसे ध्यान में रखकर संसद के हर सत्र में सतत विकास लक्ष्य यानी एसडीजी पर विशेष जोर देने की शुरुआत हुई। इसका उद्देश्य है सांसदों में संवेदनशीलता और जागरूकता बढ़ाना, बेहतर नीतियां बनाना और ईमानदार क्रियान्वयन सुनिश्चित कराना।
यह श्रेय भी 16वीं लोकसभा को जाएगा कि 1924 से चली आ रही बजट प्रक्रिया बदल दी गई। इस वर्ष रेल बजट और आम बजट भी एक साथ पेश किए गए। इसके अलावा बजट पेश करने की तारीख में भी बदलाव किया गया। मकसद था बजटीय आवंटन का समय रहते बेहतर इस्तेमाल। वैसे कामकाज को आंकड़ों के हिसाब से समझें तो 14वीं लोकसभा में 242 और 15वीं लोकसभा में 243 दिन बैठकें हुई थीं, जबकि 16वीं में कुल 226 बैठकें हो सकी हैं। यकीनन प्रत्येक साल सौ बैठकों के संकल्प से 16वीं लोकसभा भी पीछे है, लेकिन इस दौरान काफी कुछ उल्लेखनीय हुआ है। 14वीं लोक सभा में 1138 घंटे और 15वीं लोकसभा में कुल 1070 घंटे बैठकें हुई थीं, जबकि 16वीं लोकसभा में 1246 घंटे। इसी तरह 14वीं लोकसभा में 307 घंटे हंगामे की भेंट चढ़े और 15वीं लोकसभा में 496 घंटे, लेकिन 16वीं लोकसभा में सिर्फ 178 घंटे ही व्यवधान में बर्बाद हुए हैं। ऐसा तब हुआ जब संसद के कई सत्र खासे हंगामेदार रहे। आंकड़ा बताता है कि पिछली लोकसभा के मुकाबले करीब 300 घंटे कम व्यवधान हुआ है। विधायी व्यवस्था के महत्वपूर्ण हिस्से प्रश्नकाल को समझें तो 14वीं लोक सभा में 4421 सवालों में से 671 का जवाब दिया जा सका। पिछली लोकसभा में 4360 सवालों में से केवल 522 के जबाव ही मिल सके, जबकि मौजूदा लोकसभा में कुल पूछे गए 4260 सवालों में से 921 के जबाव दिए गए। प्रश्नकाल की सफलता दर 14वीं लोकसभा में 15 फीसद थी और 15वीं लोकसभा में 12फीसद थी, जबकि मौजूदा लोकसभा में 21फीसद दर्ज की गई है। स्पष्ट है कि यह लोकसभा कई मामलों में उल्लेखनीय साबित हो रही है।
आम धारणा कुछ भी हो, इस लोकसभा में बीते तीन सालों में हंगामा कम हुआ है, जबकि काम ज्यादा। प्रश्नकाल भी बेहतर तरीके से चल सका है। व्यापक प्रभाव डालते ढेरों विधेयक पारित हुए हैं। सदन की छवि बेहतर करने की सफल कोशिश हुई है। आंकड़ें यह भी बता रहे हैं कि कामकाज के लिहाज से वर्तमान लोकसभा बीते 13 सालों का रिकार्ड तोड़ चुकी है। लोकसभा की इस सुधरती तस्वीर में पक्ष-विपक्ष के सांसदों के साथ लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की भूमिका सबसे अहम है, जिन्होंने लोकसभा की गरिमा बनाए रखने के लिए कई पहल की हैं। जनप्रतिनिधि अपनी भूमिका के साथ न्याय करते रह सकें, इसके लिए यह आवश्यक है कि सदन सही तरह से चले और ऐसा दोनों पक्षों के सहयोग से ही होता है।
[ लेखक लोकसभा टीवी से संबद्ध हैं ]