राजीव रंजन चतुर्वेदी

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की ताजा भारत यात्रा को दोनों देशों के संबंधों को एक नई दिशा और गति देने के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है- न केवल बांग्लादेश में, बल्कि भारत में भी। दिल्ली-ढाका के बीच संबंधों के संचालन के लिए पचास से अधिक संस्थागत व्यवस्थाएं बहाल हैं। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के नेतृत्व में एक संयुक्त परामर्श आयोग दोनों देशों की ओर से शुरू की गई विभिन्न पहलों के कार्यान्वयन का समन्वय और निगरानी करता है। यह सहयोग के लिए नए अवसरों की तलाश भी करता है। शेख हसीना के नेतृत्व में भारत-बांग्लादेश संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। व्यापार के क्षेत्र में दोनों देशों में उत्तरोत्तर वृद्धि दर्ज हो रही है और पिछले पांच वर्षों में भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय व्यापार में 24.3 फीसद का इजाफा दर्ज हुआ है। बांग्लादेश में भारतीय निवेश में भी लगातार वृद्धि हो रही है। बांग्लादेश ने भारतीय निवेश को आकर्षित करने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना की है। व्यापार असंतुलन पर बांग्लादेश की चिंता को दूर करने एवं अतिरिक्त रोजगार सृजन के उद्देश्य से मोदी सरकार को वहां भारतीय सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना चाहिए। भारत द्वारा उपलब्ध कराई गई ऋण व्यवस्था से बांग्लादेश को विभिन्न विकास परियोजनाओं विशेषकर सार्वजनिक यातायात, सड़क, रेलवे, अंतरदेशीय जलमार्गों, आतंरिक सुरक्षा, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्र में कार्य करने में सहायता मिलेगी। शेख हसीना की इस यात्रा के दौरान इसमें और भी बढ़ोतरी होने की संभावना है।
सुरक्षा सहयोग के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच अद्वितीय संबंध हैं। शेख हसीना ने भारत से किए गए वादों को पूरा किया है। दोनों देशों की सुरक्षा संस्थाओं के बीच विभिन्न स्तरों पर संतोषजनक तालमेल है। माना जा रहा है कि रक्षा सहयोग में और सहमति कायम होगी। बांग्लादेश और चीन के मध्य बढ़ते रक्षा सहयोग खासकर चीन द्वारा पनडुब्बियों की आपूर्ति ने भारत को चौकन्ना कर दिया है। कुछ बांग्लादेशी विशेषज्ञों की राय है कि अतीत में म्यांमार से बांग्लादेश के विवादों के मद्देनजर वहां की नौसेना को पनडुब्बियों की जरूरत थी और इस लिहाज से ढाका-बीजिंग के बीच रक्षा संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन भारत के साथ रक्षा समझौता को राजनीतिक कारणों से अतिसंवेदनशील बताया जा रहा है। इन सबके बावजूद माना जा रहा है कि दोनों देशों के प्रधानमंत्री आपसी सुरक्षा एवं रक्षा सहयोग को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
गैर पारंपरिक सुरक्षा के कुछ मुद्दे जैसे-तेजी से बढ़ते आतंकवाद की समस्या का निराकरण, तमाम तरह की तस्करी और गैर कानूनी गतिविधियों पर पर लगाम, सक्रिय खुफिया सहयोग, ऊर्जा और खाद्य समस्या का निराकरण, नागरिक विमानों के लिए संचार और हवाई क्षेत्र की समुद्र लाइन खुली रखना, साइबर, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष और उपग्रह के क्षेत्र में सहयोग, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना, जैव विविधता को संरक्षित करना, हाइड्रोकार्बन, समुद्री संसाधनों, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने और समुद्री पारिस्थितिकी के संरक्षण में सहयोग आदि विषयों पर सहयोग को और भी पुष्ट करना आवश्यक है। मुमकिन है कि इस यात्रा के दौरान बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए भारत बंगाल की खाड़ी में सहयोग के लिए किसी रोडमैप की रूपरेखा पर सहमति बनाए। मोदी सरकार ट्रांस-रीजनल सहयोग जैसे बीबीआइएन (बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल) और बिम्सटेक (बहु क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी वाले देशों की पहल) के माध्यम से सार्क को पुनर्जीवित करने की कोशिश करती दिख रही है। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र बीबीआइएन का प्रमुख घटक है। ग्रिड कनेक्टिविटी के माध्यम से बीबीआइएन के देश विद्युत क्षेत्र में संतोषजनक सहयोग कर रहे हैं। हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत द्वारा बांग्लादेश को त्रिपुरा के माध्यम से अतिरिक्त 100 मेगावाट बिजली देने की प्रतिबद्धता जताई गई है। इसके बदले बांग्लादेश भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए 10 जीबीपीएस इंटरनेट बैंडविथ प्रदान करेगा। ध्यान रहे कि भारत पहले से ही बांग्लादेश को 500 मेगावाट बिजली प्रदान कर रहा है और इतनी ही और मेगावाट बिजली प्रदान करने पर विचार किया जा रहा है। इसी तरह ये सभी देश सड़क और रेल संपर्क के नेटवर्क को भी स्थापित करने में जुटे हैं। यदि सड़क और रेल संपर्क की पहुंच पूर्वोत्तर क्षेत्र में बढ़ती है तो इस क्षेत्र के विकास को गति मिलेगी। नौवहन के विकास के माध्यम से इन देशों को पुन: जोड़ने की योजना पर काम चल रहा है। बांग्लादेश से मजबूत हो रहे रिश्तों की बदौलत भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को चटगांव बंदरगाह एक बार फिर सुलभ हो सकता है। दोनों देशों के मध्य घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध और बहुत सारी समानताएं हैं। आर्थिक गतिविधियों में सहयोग की तमाम संभावनाएं हैं, लेकिन इन सबके बावजूद कई मुद्दों पर सामंजस्य की कमी है। नतीजतन दोनों देशों के बीच रिश्तों में मनचाही प्रगति नहीं हुई है।
जहां शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग पार्टी को भारत के लिए सहयोगी माना जाता है और वर्तमान सरकार का भारत के प्रति रवैया भी बहुत सकारात्मक रहा है वहीं बेगम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी और बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी जैसी राजनीतिक शक्तियों को भारत के प्रति कड़ा रुख रखने वाला माना जाता है। ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री को बांग्लादेश के साथ संबंध मजबूत करने और उसकी तरक्की में भागीदार बनने के लिए वहां की राजनीतिक संवेदनशीलता को भी ध्यान में रखना होगा। महत्वपूर्ण समझौतों पर विपक्षी दलों के साथ भी विमर्श और उनका सहयोग दोनों देशों के संबंधों को दीर्घकालिक मजबूती प्रदान करेगा। ऐसी अपेक्षा है कि मोदी अपने ‘एक्ट ईस्ट’ की नीति पर अमल करते हुए बांग्लादेश से किए अपने वादों को पूरा कर दोनों देशों के संबंधों में नई जान फूंकने की पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता तभी मिलेगी जब पश्चिम बंगाल की ममता सरकार सहयोगपूर्ण रवैया अपनाएगी। यदि तीस्ता नदी जल के बंटवारे पर ममता सरकार ने सकारात्मक रुख नहीं अपनाया तोे बांग्लादेश की उम्मीदों को पूरा करना मुश्किल हो सकता है।
[ लेखक नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज में रिसर्च एसोसिएट हैं ]