शैलेश मणि त्रिपाठी

सार्वजनिक विमर्श में चप्पल ने बड़ी सफलतापूर्वक वापसी की है। चप्पल की इस पुनर्प्रतिष्ठा का पूरा श्रेय एक सांसद महोदय को जाता है। असल में हवाई यात्रा के दौरान अपनी ‘खातिरदारी’ से सांसद जी इतने ‘प्रसन्न’ हो गए कि उन्होंने विमानन कंपनी एयर इंडिया के कर्मचारी को चप्पलों से ‘ईनाम’ देने का फैसला किया। उनकी चप्पलबाजी को देखकर उन्हें चप्पलमार और चप्पलबाज जैसे विशेषणों से नवाजा जा रहा है। उन्होंने एक बार नहीं, बल्कि गिनकर पूरे पच्चीस बार उस कर्मचारी को चप्पल से मारा। जाहिर है कि इसके बाद चहुंओर चप्पल क्रांति का सूत्रपात होना स्वाभाविक ही था। एकाएक बड़े-बड़े चप्पल विमर्श होने लगे। चप्पलों के आकार-प्रकार और व्यवहार पर बातें होने लगीं। रातोरात चप्पल विशेषज्ञ पैदा हो गए। विशेष प्रकार की चप्पलों के हिमायती अलग-अलग किस्म की चप्पलों की वकालत करने लगे। पुरा पाषाण काल से आधुनिक काल तक चप्पलों की विकास यात्रा पर शोध सामने आने लगे। मानव जीवन में चप्पल की उपादेयता पर ललित निबंध लिखे जाने लगे। चप्पल विनिर्माण में शोध एवं विकास यानी आरएंडडी के नए फॉर्मूले बनने शुरू हो गए। तमाम आंदोलनों में चप्पलों के योगदान का उल्लेख किया जाने लगा। विशेषज्ञ चप्पलों को सामाजिक क्षेत्र से उठाकर सामरिक क्षेत्र का अंग बनाने के फायदे गिनाने लगे।
वे बता रहे हैं कि जल्द ही चप्पलें-आयुध कारखानों में बनने लगेंगी और अस्त्र-शस्त्र की दुकानों में हथियारों के तौर पर बेची जाएंगी। चप्पल धारक को उसके लिए लाइसेंस लेना पड़ेगा। लाइसेंस बनवाते समय आवेदक को चरित्र प्रमाण पत्र भी पेश करना होगा। जिस चप्पल को हाथ में लेकर प्रतिद्वंद्वी पर प्रहार किए जाएंगे उसे अस्त्र की श्रेणी में रखा जाएगा और फेंककर मारी जाने वाली चप्पल शस्त्र मानी जाएगी। इसी आधार पर उनके लाइसेंस जारी किए जाएंगे। आम जनता और वीवीआइपी के लिए भी अलग-अलग नंबरों की चप्पलों के लाइसेंस निर्धारित होंगे। जनता के लिए केवल सात, आठ और नौ नंबर की चप्पलों के लाइसेंस जारी होंगे। इसमें ‘छह’ नंबर का लाइसेंस नागरिकों की एक विशेष श्रेणी के लिए आरक्षित होगा। भविष्य में उन्नत किस्म की चप्पलें विकसित करने के लिए राष्ट्रीय चप्पल अनुसंधान केंद्र की स्थापना का भी सुझाव है जिसमें जीपीआरएस और रिमोट सेंसिंग से लैस चप्पलें डिजाइन की जाएंगी जो अपने लक्ष्य को केंद्र बनाकर उसे मारेंगी। ऐसी चप्पलों का उपयोग पाकिस्तान से लगी सीमा पर जरूर किया जाएगा, क्योंकि देश में व्यापक स्तर पर सहमति है कि पाकिस्तान ही इकलौता ऐसा देश है जो चप्पलों का सुपात्र है। एक राष्ट्रीय चप्पल आयोग बनाने की भी बात हो रही है। इसी तरह चप्पलों से जुड़े मामले सुलझाने के लिए कुछ विशेष अदालतें गठित करने के लिए भी दबाव बनाया जा रहा है। मंदिर-मस्जिद या किसी अन्य धार्मिक स्थल से चप्पल चुराने को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा। इसमें सजा और हर्जाने दोनों का प्रावधान होगा। सजा के तौर पर प्रतिदिन न्यूनतम दो दर्जन यानी चौबीस चप्पल मारने संबंधी कानून बन सकता है। इससे ऊपर पच्चीस चप्पल मारने का विशेषाधिकार सिर्फ माननीय विधायकों एवं सांसदों के पास सुरक्षित होगा। एक कानून के जरिये इसका प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाएगा।
चूंकि चप्पल का एक धर्मनिरपेक्ष स्वरूप भी है, क्योंकि हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेदभाव के चप्पल धारण करते हैं। ऐसे में जैसे कि मधुशाला में लिखा गया है कि ‘मंदिर-मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला’ जैसी कोई काव्यात्मक प्रस्तुति चप्पलों के लिए भी समर्पित की जा सकती है। भविष्य में चप्पलों के नाम पर तमाम राजनीतिक दल भी गठित हो सकते हैं जिनके राष्ट्रीय चप्पल पार्टी या चप्पल विकास मंच जैसे नाम हो सकते हैं। उनके बीच चप्पल चुनाव चिन्ह हासिल करने के लिए तगड़ी मारामारी होगी। ये सभी पार्टियां चप्पल के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगी। महिला सशक्तीकरण में अहम योगदान देने वाली महिलाओं को भी डिजाइनर चप्पल दी जाएंगी। हालांकि संसद में चप्पल के साथ प्रवेश पूर्णतया वर्जित किया जाएगा। भविष्य में सरकार चप्पल खरीद के केंद्र स्थापित कर सकती है। ऑनलाइन विज्ञापनों के जरिये भी उनकी बिक्री को अंजाम दिया जा सकता है। पुरानी गाड़ियों के शौकीनों की तर्ज पर पुरानी चप्पलों के संग्रहकर्ता भी सामने आएंगे। ‘फलां आदमी ने फलां चप्पल फलां टाइप पर पहनी थी’ सरीखी पेशकशों के साथ चप्पलें बेहद ऊंची कीमतों पर बेची जाएंगी। ऑटोग्राफ वाली चप्पलों का आकर्षण अलग होगा।
कुछ चप्पल बाबाओं का भी प्रादुर्भाव हो सकता है जो बताएंगे कि अमुक रंग की चप्पल पहनने से कृपा आने लगेगी। वे ऐसे निदान बताकर अपने भक्तों का कल्याण करेंगे। बाबाजी अपने चप्पलाकार सिंहासन पर बैठकर ही उनके सभी कष्टों को दूर करेंगे। उनके उत्साहित भक्त उन्हें विभिन्न आकारों वाली सोने की चप्पलें अर्पित करेंगे। इसमें बॉलीवुड भी पीछे नहीं रहेगा। वहां ‘हम चप्पल दे चुके सनम’ और ‘हमारी चप्पल आपके पास है’ जैसी फिल्में बनेंगी। इन फिल्मों में बचपन में कुंभ के मेले में बिछड़े हुए दो भाइयों को उनकी निरुपा रॉय टाइप मां उनकी चप्पलों के आधार पर ही पहचान लेंगी। उनमें ‘आपकी चप्पलें बहुत खूबसूरत हैं, उन्हें जमीन पर मत उतारिए, वरना मैली हो जाएंगी’ जैसे कालजयी संवाद होंगे तो ‘एक परदेसी मेरी चप्पल ले गया, जाते-जाते अपनी टूटी चप्पल दे गया’ जैसे मधुर एवं कर्णप्रिय गीत होंगे। कोई ‘चप्पल-मैन’ जैसा सुपरहीरो किरदार भी जन्म ले सकता है जिसकी समूची शक्ति भी उसकी चप्पल में ही समाहित होगी। कुल मिलाकर मामला बड़ा चप्पलमय हो गया है।

[ हास्य-व्यंग्य ]