राघवेंद्र सिंह

‘मैं कबूल करता हूं कि इससे पहले मैंने चंपारण का कभी नाम भी नहीं सुना था। नील की खेती का भी मुझे कोई अंदाजा नहीं था। मैंने नील के पैकेट जरूर देखे थे, लेकिन कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हजारों किसानों की कड़ी मेहनत के बाद यह तैयार होता है।’ सौ साल पहले गांधी के ये उद्गार चंपारण की गुमनाम पहचान के साथ नील किसानों की दुर्दशा की व्यथा सुनाते हैं। अप्रैल, 1917 में गांधी का चंपारण दौरा न केवल चंपारण के किसानों, बल्कि खुद गांधी के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। गांधी के अनथक अभियान ने उन्हें दक्षिण अफ्रीकी सत्याग्रही से तुरंत ही चंपारण का चैंपियन बना दिया। गांधी को पटना से मुजफ्फरपुर के रास्ते मोतिहारी पहुंचना था। पटना में पहले पड़ाव के कटु अनुभव को उन्होंने कुछ यूं व्यक्त किया, ‘जो सज्जन मुझे यहां लाए उन्हें कुछ अता-पता नहीं। उन्होंने किसी अनजान जगह पर लाकर पटक दिया है। मकान मालिक मौजूद नहीं हैं और सेवक भिखारियों जैसा बर्ताव कर रहे हैं। उन्होंने अपना शौचालय भी इस्तेमाल नहीं करने दिया। अगर ऐसे ही चलता रहा तो लगता नहीं कि मैं चंपारण देख पाऊंगा।’ यहां गांधी को लाने वाले चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ला थे और वह घर राजेंद्र प्रसाद का आवास था जो उस समय पुरी गए हुए थे।
गांधी मुजफ्फरपुर पहुंचे। वहां तिरहुत आयुक्त से मिले और पूछा कि क्या स्थानीय प्रशासन का सहयोग मिल सकता है? वहां वकीलों और जेबी कृपलानी ने उन्हें चंपारण के बिगड़ते हालात से रूबरू कराया। 15 अप्रैल को चंपारण पहुंचते ही उन्हें अहसास हुआ कि उनका यह अभियान लंबा चलेगा। अगले ही दिन उन्होंने किसानों से मुलाकात का फैसला किया। हाथी पर सवार गांधी कुछ दूर ही चले होंगे कि उन्हें पुलिस अधीक्षक से वापस लौटने का फरमान मिला। जवाब में गांधी ने कहा कि वह जिला छोड़कर नहीं जाएंगे और इस आदेश की अवज्ञा के लिए सजा को तैयार हैं। उन्होंने वायसराय को पत्र लिखकर प्लांटर्स एसोसिएशन और तिरहुत प्रभाग के आयुक्त की शिकायत की। वायसराय को उन्होंने यह डर भी दिखाया कि अगर उनकी मंशा पर सवाल किए गए तो वह केसर-ए-हिंद का अपना स्वर्ण पदक लौटा देंगे। 17 अप्रैल को गांधी ने जिला मजिस्ट्रेट के यहां पता लगाया कि उन्हें अभी तक समन क्यों नहीं जारी किया गया। 18 अप्रैल को गांधी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश हुए और अपने लिए सजा मांगी। मजिस्ट्रेट ने हर्जाना लगाने से बचते हुए फैसला तीन बजे तक के लिए टाल दिया। फिर मामला 21 अप्रैल तक मुल्तवी कर दिया गया। गांधी ने कहा कि वह मुश्किल में फंसे नील किसानों की मदद के लिए आए हैं और अंतरात्मा की आवाज पर ही सरकारी आदेश की अवहेलना कर रहे हैं। 21 अप्रैल को गांधी ने बिहार और उड़ीसा के लेफ्टिनेंट गवर्नर का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने उनके खिलाफ कार्यवाही रोकने का आदेश देते हुए स्थानीय अधिकारियों को जांच में सहयोग का निर्देश दिया था। अगले तीन हफ्तों के दौरान किसानों के बयान दर्ज करने का सिलसिला जारी रहा। करीब चार हजार बयान दर्ज किए गए। गांधी को लगा कि बगान मालिक विनम्र तो हैं, लेकिन किसी समझौते के लिए तैयार नहीं। गांधी ने स्थानीय अधिकारियों से भी मुलाकात कीं, लेकिन वे उनके अभियान को सफल बनाने में अनिच्छुक ही थे। दूसरी ओर बगान मालिक गांधी को बदनाम करने की कोशिशों में जुटे थे। उनकी शिकायत थी कि उनकी आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने किसानों और बगान मालिकों के संबंधों की पड़ताल के लिए आयोग बनाने की मांग की। चंपारण में गांधी की मौजूदगी से वहां बन रहे तूफान को भांपने में ब्रिटिश सरकार को देर नहीं लगी। उसने चंपारण जांच समिति गठित कर गांधी को उसमें शामिल होने का न्योता दिया। इन कोशिशों के चलते कुछ ही महीनों में चंपारण कृषि विधेयक, 1917 पारित हुआ। इसने नील किसानों को भारी राहत दिलाई। चंपारण सत्याग्रह ने भारतीय राजनीति की दशा-दिशा ही बदल दी और गांधी को स्वतंत्रता संग्राम के केंद्र में स्थापित कर दिया। भारतीयों ने पहली बार अहिंसा और सहनशील प्रतिरोध की शक्ति का अहसास किया। चंपारण के बाद खेड़ा और अहमदाबाद में भी गांधी ने इसे सफलतापूर्वक सिरे चढ़ाया। उन्हें राजेंद्र प्रसाद, जेबी कृपलानी, अनुग्रह नारायण सिन्हा और मजरुल हक जैसे सहयोगी मिले जो ताउम्र उनके साथ बने रहे।
वर्ष 2019 में गांधी की 150वीं जयंती मनाने की तैयारियों के बीच भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार चंपारण सत्याग्रह के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में नई दिल्ली में 11 अप्रैल से डिजिटल प्रदर्शनी आयोजित करने जा रहा है। इसमें गांधी के सत्याग्रह जैसे मूल सिद्धांतों को स्वच्छाग्रह जैसे समकालीन मुद्दों से जोड़ा जाएगा। युवा पीढ़ी को इसकी अहमियत समझने की दरकार है। प्रदर्शनी का मूल मकसद युवाओं को गांधी के ‘स्वच्छ भारत’ के सपने को पूरा करने में साथ जुटने के लिए प्रेरित करना है, जिसकी अलख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरू कर जगाई थी।
[ लेखक भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार में महानिदेशक हैं ]