गत सोमवार को विमुद्रीकरण के विरोध में जहां बंटे हुए विपक्ष का भारत बंद लगभग पूरी तरह असफल रहा वहीं केंद्र सरकार ने संसद में आयकर कानून संशोधन बिल पेश कर काला धन धारकों को एक अवसर दिया है। इस बिल के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति अपनी अघोषित आय पर 50 फीसद कर चुकाकर उसे सफेद कर सकता है। यदि आयकर की छापेमारी में अघोषित आय का पता चलता है तो संबंधित व्यक्ति को 60 प्रतिशत कर, 15 प्रतिशत सरचार्ज और 10 प्रतिशत दंड स्वरूप कुल 85 प्रतिशत पैसा सरकार को देना होगा। विपक्ष द्वारा बुलाए राष्ट्रव्यापी बंद का असर इसलिए भी सीमित रहा, क्योंकि एक तो असुविधा होते हुए भी अधिकांश देशवासी काले धन के खिलाफ छेड़े गए युद्ध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हैं। दूसरा, किसी भी प्रायोजित आक्रोश आधारित बंद को सफल बनाने के लिए नकदी ईंधन का काम करती है। लेकिन नोटबंदी के कारण नकदी का भयंकर अकाल है और कई राजनीतिक दलों द्वारा एकत्रित करोड़ों-अरबों की नकदी अब रद्दी हो चुकी है। क्या नोटबंदी पर जनता को हो रही परेशानी बताकर कुछ विपक्षी दलों के नेता अपना ही विलाप नहीं कर रहे है?
वास्तव में काला धन पिछले 70 वर्षों में सत्ता अधिष्ठानों की छत्रछाया में उस चतुर चौकड़ी की उपज है जिसमें भ्रष्ट राजनेता, घूसखोर अधिकारी, बेईमान व्यापारी-उद्योगपति और पाकिस्तान-चीन के भारत विरोधी एजेंडे के समर्थक शामिल हैं। विपक्षी नेताओं द्वारा नोटबंदी के विरोध में जो भी वक्तव्य सामने आ रहे हैं, वे या तो भ्रामक हैं, तथ्यात्मक रूप से असत्य है या फिर विरोधाभासी। एक तरफ तो प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने भाजपा नेताओं को नोटबंदी की जानकारी पहले दे दी थी। तो दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री के इस निर्णय की जानकारी वित्त मंत्री को भी नहीं थी। ज्यों-च्यों बैंकों और एटीएम के बाहर लोगों की कतार छोटी होती जा रही है, विपक्षी दलों की कुंठा भी चरम सीमा पर पहुंच रही है। अधिकतर विरोधी दल पर्याप्त समय न देने का आरोप लगा रहे हैं। क्या प्रधानमंत्री मोदी ने यह ठीक नहीं कहा कि विरोधी दलों की वास्तविक शिकायत यह है कि उनको नोटबंदी से पड़ने वाली मार से बचने का पर्याप्त समय नहीं मिला?
विमुद्रीकरण अपने भीतर अल्पकालिक और दूरगामी परिणाम संजोए हुए है। फिलहाल तो नोटों के अभाव से जनता को परेशानी हो रही है। परिणामस्वरूप, आर्थिक गतिविधि धीमी हो रही है। संभावना है कि वर्ष 2017 की पहली और दूसरी तिमाही में देश की विकास दर डेढ़ से दो प्रतिशत तक गिर सकती है, परंतु इससे आगे का रास्ता अवश्य सुगम होगा। ब्याज दरों में कमी आएगी, मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग को सस्ती दरों पर घर बनाने के लिए कर्ज मिल सकेगा। जहां इससे रियल एस्टेट को काले धन से मुक्ति मिलेगी वही इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को बढ़ावा भी मिलेगा। इसके अतिरिक्त कर संग्रहण को बल मिलेगा, जिससे सरकार पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी कर तीव्रता के साथ वित्तीय समावेशन का लक्ष्य भी पूरा कर सकेगी। समानांतर अर्थव्यवस्था के रूप में प्रचलित काली मुद्रा, जो भ्रष्टाचार का ही मूलरूप है, उस पर अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी। इसके अलावा सोने व जेवरात में परिवर्तित काले धन में या तो कमी आएगी या फिर वह पूरी तरह खत्म हो जाएगा। चुनावों में अनाप-शनाप खर्चों पर रोक लगेगी, जिससे राजनीति में धन पशुओं के प्रवेश पर लगाम लग सकेगी। देश में आतंकी-नक्सली घटनाओं और हवाला कारोबार में कमी आएगी। नोटबंदी के बाद घाटी में बंद हुआ पथराव, लगभग 500 नक्सलियों का आत्मसमर्पण और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अवैध उगाही व जबरन वसूली में कमी इसकी तार्किक परिणति है।
आठ नवंबर से पूर्व भारतीय बाजार में 16 लाख करोड़ रुपये की कुल करेंसी थी, जिसमें 500-1000 रुपये के पुराने नोटों की हिस्सेदारी 86.4 प्रतिशत यानी लगभग 14 लाख करोड़ रुपये थी। बैंकों के अनुसार 10 नवंबर से अभी तक उन्होंने लगभग 8.50 लाख करोड़ रुपये के पुराने नोट या तो बदले हैं या फिर जमा किए गए हैं। संभवत: संसद में पेश नए संशोधन बिल के बाद 30 दिसंबर तक पुराने 500-1000 नोटों की लगभग पूरी करेंसी बैंकों में जमा हो सकती है। इससे सरकार को करीब तीन लाख करोड़ या इससे अधिक का अतिरिक्त कर या यह कहें कि अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो सकता है। इस राशि से सरकार धीमी पड़ी अर्थव्यवस्था को तेज गति दे सकती है। सरकार के पास कुछ विकल्प बचते हैं। पहला, सरकार उक्त राशि से देश के पिछड़े क्षेत्रों में आधारभूत संरचनाओं का समेकित विकास कर सकती है। दूसरा, इस राशि से सार्वजनिक चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर भी विकास संभव है, जिससे देश की प्रतिभा राष्ट्र के ही काम आए और प्रतिभाशाली युवाओं के विदेशों में पलायन में कमी लाई जा सके। तीसरा, सरकार चाहे तो विकास परियोजना के अतिरिक्त हर जन-धन खाताधारक के खाते में 10-15 हजार या इससे अधिक रुपये भी जमा कर सकती है।
नोटबंदी से देश की स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे भयंकर बीमारी से ग्रस्त किसी व्यक्ति की बड़ी सर्जरी हुई है और उसे पूर्ण रूप से स्वस्थ होने में थोड़ा समय लग रहा है। यह साफ है कि नोटबंदी भारत में रहस्यमयी ढंग से दबे काले धन को बाहर निकालने में असरदार सिद्ध हो रही है, लेकिन देश के बाहर जमा हुए काले धन को प्राप्त करने की चुनौती अभी शेष है। जहां कई टैक्स हेवेन देशों में यह धन डॉलर, पाउंड या अन्य मुद्राओं के रूप में जमा है। वहीं भारत से घनिष्ठ संबंध और अर्थव्यवस्था में भारतीय मुद्राओं के चलन के कारण नेपाल और भूटान भी गत कुछ दशकों से काला धन धारकों के लिए सुरक्षित ठिकाने बन चुके है। भारतीय विदेश मंत्रालय, नेपाल राष्ट्र बैंक और रॉयल मोनेटरी अथॉरिटी ऑफ भूटान वर्तमान प्रावधानों के अंतर्गत 500-1000 रुपये के पुराने नोटों के संग्रहण और जमा करने के लिए आरबीआइ के संपर्क में हैं। वास्तव में काले धन के माध्यम से चुनाव जीतने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों के लिए नोटबंदी का निर्णय किसी दैवीय आपदा से कम नहीं है। नोटबंदी पर जनता के अपार समर्थन ने न केवल देश के कुछ विरोधी दलों का चेहरा बेनकाब कर दिया है, बल्कि देश में स्वच्छ राजनीति का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया है।
[ लेखक बलबीर पुंज, भाजपा के राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं ]