नैतिक जीवन का आशय नीति के अनुसार जीवनयापन करना है। ऐसा तभी संभव है जब मनुष्य अपने अहंकार, स्वार्थ और अनावश्यक भय से मुक्त होकर अपने जीवन की साधना करे। मनुष्य का नैतिक गुण ही संपूर्ण मानवता का शृंगार है। किसी भी व्यक्ति को सही-गलत के मापदंड पर परखा जाता है। ये मापदंड ही मूल्य कहलाते हैं और ये मूल्य उसका धर्म कहलाता है। यानी धर्म का अभिप्राय मनुष्य के अपने मन के मुताबिक आचरण करना है। यह आचरण उसके नैतिक मूल्य हैं और इसी मापदंड पर उसे जांचा-परखा जाता है। मनुष्य के नैतिक गुणों का प्रभाव उसके समस्त क्रिया-कलापों पर पड़ता है और उसका संपूर्ण व्यक्तित्व इससे प्रभावित होता है। व्यक्ति की शिक्षा और उसके आसपास का परिवेश उसके जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। व्यक्ति को ऐसी शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए जो न केवल उसका बौद्धिक विकास करे, बल्कि उसमें जिज्ञासा भी उत्पन्न करे। जिज्ञासा व्यक्ति को सत्य की खोज के लिए प्रेरित करती है और उसे आत्मज्ञान की ओर ले जाती है। अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार ही वह अपने कर्तव्यों का पालन करता है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि मनुष्य की अंतरात्मा जिस कार्य के लिए मना करे उसे कभी नहीं करना चाहिए। नैतिकतापूर्ण जीवन जीने वाला मनुष्य ही दूसरों के लिए आदर्श बन सकता है और ऐसे व्यक्ति सफलता को प्राप्त नहीं करते, बल्कि सफलता इन्हें प्राप्त करती है। नैतिकता से समाज और राष्ट्र की भी प्रगति होती है और जो मनुष्य नैतिकता से विमुख हो जाता है उसकी और उसके समाज की दुर्गति निश्चित है। नैतिक मूल्यों के अभाव में ही समाज में असंतोष फैलता है और अपराध होते हैं। इसके विपरीत जिस मनुष्य के जीवन में शिष्टाचार, सदाचार, अनुशासन, मर्यादा है उसके परिवार और देश में शांति रहेगी। महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस का कहना है कि यदि आपका चरित्र अच्छा है तो आपके परिवार में शांति रहेगी। यदि आपके परिवार में शांति रहेगी तो समाज में शांति रहेगी। यदि समाज में शांति रहेगी तो राष्ट्र में शांति रहेगी। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने अहंकार व स्वार्थ को त्यागकर ईमानदारी, विनम्रता, त्याग, परोपकार जैसे गुणों को अपने जीवन में स्थान दे। तभी हम एक आदर्श परिवार का सृजन कर सकते हैं और एक आदर्श और खुशहाल राष्ट्र का सपना साकार कर सकते हैं।
[ महर्षि ओम ]