नीति

देश के 66वें गणतंत्र दिवस पर पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का मुख्य अतिथि बनना, मौत की सजा पाए पांच मछुआरों की सजा माफ कर श्रीलंका द्वारा भारत भेजना, इराक में फंसी केरल की नर्सों की सकुशल स्वदेश वापसी और विश्व व्यापार संगठन में खाद्य मामले पर बड़ी जीत जैसे विश्वपटल पर भारतीय जयघोष के मामलों की फेहरिस्त मोदी सरकार की कोशिशों से लंबी हो चली है। परदेस में देश की पहचान को एक नई ऊंचाई पर ले जाने की मंशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में ही स्पष्ट कर दी थी। पाकिस्तान सहित सभी पड़ोसी देशों के राष्ट्र प्रमुखों को उस समारोह में न्योत कर उन्होंने एक नयी परंपरा की नींव डाली थी। देश की बागडोर संभालने के बाद लगातार बिना थके वे दुनिया के मुल्कों का दौरा कर रहे हैं। छोटे और पड़ोसी देशों से अच्छे और सच्चे संबंध विकसित करना जहां उनका लक्ष्य है वहीं महाशक्तियों को भी अपने कद का अहसास कराना उनका मकसद।

नेतृत्व

इन दौरों के दौरान विभिन्न देशों द्वारा दिखाए गए उत्साह और गर्मजोशी ने अंतरराष्ट्रीय फलक पर भारत के एक प्रभावी देश के रूप में उभरने की कहानी गढ़ दी। हर भारतीय के लिए यह गर्व के क्षण हैं। विदेश मामलों के कुछ जानकार इसे मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति के ज्यादा मुखर और आक्रामक होने का असर मान रहे हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि यह गरम लोहे पर जोरदार चोट करने जैसा मामला है। गठबंधन की विवशता के चलते जिन कदमों को उठाने में पहले देश का नेतृत्व संकोच करता था, आज वैसी स्थिति नहीं है।

नियति

वैश्विक मंच पर भारत का सशक्त किंतु धीमा उभार लगातार जारी है। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं संकटग्रस्त हैं। उनकी उम्मीदों का आसरा भारत और चीन हैं। चीन की लोकतंत्र की कमी और श्रमनीतियों की अस्पष्टता कई देशों में हिचक पैदा करती रही है। ऐसे में सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार, युवा आबादी, स्थापित लोकतंत्र, सुधार की ओर बढ़ते कदम जैसी खूबियों के चलते दुनिया की नजरें सिर्फ भारत पर टिकती हैं। लिहाजा भारत के किसी भी कदम का हर देश बेताबी से स्वागत करने को आतुर है। नई सरकार ने इस मनोदशा को भांपते हुए बढऩा शुरू किया और आज भारत का जयघोष चहुंओर गूंज रहा है। देश की विदेश नीति, नेतृत्व और नियति का समावेशी असर दिखने लगा है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय फलक पर भारत के एक प्रभावी राष्ट्र के रूप में उभरने की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

छह महीने में सात अंतरराष्ट्रीय दौरे कर प्रधानमंत्री ने विदेश नीति और विदेश से संबंधों को लेकर अपनी मंशा और एजेंडा स्पष्ट कर दिया है। उनके व्यस्त कार्यक्रकम में ऐसे देशों को वरीयता दी गई है जहां की धरती पर पिछले 17 साल (नेपाल), 28 साल (ऑस्ट्रेलिया) और 33 साल (फिजी) से किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने कदम नहीं रखा। इसी मंशा के साथ इस साल के अंत तक अफ्रीकी संघ के ज्यादातर देशों को छोड़कर दुनिया के अधिकांश राष्ट्र प्रमुखों से मिलने का मोदी का लक्ष्य है।

भूटान

15-16 जून: बतौर प्रधानमंत्री पहला दौरा पड़ोसी देश भूटान का लगाया।

ब्राजील

15-17 जुलाई: ब्राजील के फोर्तलीजा में ब्रिक्स सम्मेलन (ब्राजील की डिल्मा रौसेफ, रूस के व्लादीमीर पुतिन, चीन के शी चिनफिंग, दक्षिण अफ्रीका के जैकब जुमा से मुलाकात। इस सम्मेलन के इतर लैटिन अमेरिका के 11 देशों (अर्जेंटीना, बोलीविया, चिली, कोलंबिया, इक्वाडोर, गुयाना, पैराग्वे, पेरू, सूरीनाम, उरुग्वे और वेनेजुएला) के नेताओं से भी की मुलाकात।

नेपाल

3-4 अगस्त: नेपाल दौरा। पिछले 17 साल में किसी प्रधानमंत्री की पहली यात्रा।

जापान

30 अगस्त-3 सितंबर: जापान के पांच दिवसीय दौरे पर।

अमेरिका

26-30 सितंबर: पांच दिवसीय अमेरिका दौरा (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भाषण देने के अलावा इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू से की मुलाकात)।

म्यांमार

12-13 नवंबर: म्यांमार दौरे के तहत दस सदस्यीय दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों (ब्रूनेई दारेसलाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस और वियतनाम) के प्रमुखों से मुलाकात।

12-13 नवंबर: म्यांमार में ही आयोजित ईस्ट एशिया समिट में शिरकत। यहां दस सदस्यीय दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, रूस और अमेरिकी नेताओं से मुलाकात की।

ऑस्ट्रेलिया

15-16 नवंबर: ब्रिस्बेन में आयोजित जी-20 सम्मेलन में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मेक्सिको, रूस, सउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूके और अमेरिका और 28 सदस्यीय यूरोपीय संघ के नेताओं से बातचीत।

फिजी

19 नवंबर: ब्रिस्बेन से ही फिजी की राजधानी सुवा का दौरा। यहां के पीएम से द्विपक्षीय रिश्तों पर बात की।

नेपाल

25-27: 18वें सार्क सम्मेलन में शिरकत। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से भेंट करेंगे।

जनमत

क्या अंतरराष्ट्रीय फलक पर भारत वाकई एक प्रभावी देश के रूप में उभर रहा है?

हां 98 फीसद

नहीं 2 फीसद

क्या मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति ज्यादा मुखर और आक्रामक हुई है?

हां 94 फीसद

नहीं 6 फीसद

आपकी आवाज

वर्तमान सरकार ने विश्व पटल पर भारत की उपस्थिति बहुत ही मजबूत स्थापित की है। दुनिया के तमाम देशों में रहने वाले लोगों में ऊर्जा का संचार हुआ है। -विष्णु कांत शुक्ला

मोदी जी को अच्छी तरह मालूम है, जिस तरह राष्ट्र के विकास में विदेश नीति का योगदान जरूरी है, उसी तरह देश नीति का योगदान भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसीलिए वह अब तक के सबसे सफल पीएम में से एक हैं। -विकास कुमार

राष्ट्र का हित आंतरिक और बाहरी दोनों जगह से है, मोदी जी ने इसे विदेश नीति के माध्यम से बखूबी निभाया है। अब यह चुनाव का भी अहम मुद्दा बन गया है। -जगत

मोदी की भूटान, नेपाल, अमेरिका, जापान, म्यांमार आदि के देशों के दौरान अभूतपूर्व स्वागत और अनेक हित के समझौते यह स्पष्ट संकेत देते हैं कि भारत अंतरराष्ट्रीय फलक पर प्रभावी रूप से उभर रहा है। -मनीषा श्रीवास्तव

भारत को प्रभावी देशों में शुमार करने के लिए स्वदेशवासियों को अपनी जनजागृति व राजनीति को और प्रौढ़ करने की जरूरत है। -गौरीशंकरअंतज@जीमेल.कॉम

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