जीवन की सार्थकता कर्तव्य का समुचित रूप से निर्वाह करने में है। जो कर्तव्य हमें मिला है, जो कार्य हमें करने के लिए दिया गया है, उसे ही सहज भाषा में कर्तव्य कहते हैं। कर्तव्य का सही और श्रेष्ठ रूप में निवार्ह करने में ही बुद्धिमत्ता है। वैसे तो जीवन सभी को मिलता है, परंतु जो व्यक्ति जीवन को महान कार्य में समर्पित कर देता है, उसी का जीवन सफल है। जन्म और मृत्यु तो प्राकृतिक नियम है। यह तो होना ही है, परंतु कर्तव्य का समुचित नियोजन धर्म है। कर्तव्य के इस रहस्य को जीवन के मर्मज्ञ बखूबी जानते-समझते हैं और वे इसके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने में पल भर भी देरी नहीं करते। शरीर और इसके भोग कर्तव्य मार्ग पर चलने वालों के लिए रोड़ा नहीं बनते। वे सर्वदा अपने कर्तव्य कर्म को वरीयता प्रदान करते हैं। कर्मक्षेत्र में केवल कर्म ही किए जाते हैं। यहां पर कर्म का ही मूल्य होता है और कर्म से ही जीवन की परिभाषा बनती है। सामान्य व्यक्ति इस रहस्य को नहीं जान पाने के कारण इतने बहुमूल्य जीवन को भोग के रूप में व्यर्थ ही गंवा बैठते हैं। वास्तव में कर्तव्य उससे निभता है, जिसके मन में साहस और हृदय में प्रीति है।
साहसी ही साहस कर सकता है कि जो कार्य उसे दिया गया है, उसे वह कर सके। कर्तव्य को निभा पाना आसान नहीं है। वीर और पराक्रमी अपने जीवन की परवाह किए बगैर अपने लक्ष्य पर मिटते हैैं। लक्ष्य के लिए वही मर मिट सकता है, जिसके भाव सघन होते हैं। ये दोनों बातें अर्थात साहस और शौर्य के साथ हृदय में झलकती भावना भी हो, तो वही कर्तव्य का समुचित निर्वहन होता है। एक की भी कमी हो जाए, तो समग्रता नहीं आ पाती है। जीवन सत्कर्मों के प्रभाव से विकसित और समुन्नत होता है और स्वार्थ-अहंकार के वशीभूत होकर पतन-पराभव के गर्भ में चला जाता है। जीवन उसका सफल है, जो औरों के काम आ सके, प्रेरणा का प्रकाश बन सके। ऐसे जीवन का छोटा-सा खंड (उम्र) भी शतायु पार करने वाले से उत्कृष्ट और महान होता है। वस्तुत: संसार में प्रत्येक मनुष्य का अपना स्वधर्म, कर्तव्य होता है और उस कर्तव्य को शानदार ढंग से निभाने के लिए भगवान कुछ अवसर भी देता है। जो इस अवसर का लाभ उठाकर अपने कार्य में तत्पर हो जाता है, उसी का जीवन सार्थक और प्रसन्न होता है। जीवन का हर पल मूल्यवान है। हर पल अपनी क्षमता के अनुरूप किया गया श्रेष्ठ कर्म व्यक्ति को उस मुकाम की ओर ले जाता है, जहां इस मानव की सफलता की अनुभूति से जीवन धन्य हो उठता है।
[ डॉ. सुरचना त्रिवेदी ]