घोर संकट के दौर में 25 साल पहले आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई, पर अब नोटबंदी के नाम पर सरकार ने कई मोर्चों पर संकट को ही दावत दे दी है। डिजिटल इंडिया के सुहाने नारे से तस्वीर कब और कैसे बदलेगी, किसी को नहीं मालूम, लेकिन फिलहाल कैशलेस एटीएम की लाइनों में पूरा इंडिया स्टैंडअप है। अखिल भारतीय व्यापारी संघ के अनुसार 10 फीसद जनता ही डिजिटल पेमेंट करती है और उद्योग संघ एसोचैम की मानें तो देश को कैशलेस सोसाइटी होने में कम से कम पांच साल लगेंगे। देश के डिजिटल ढांचे का बसेरा अभी हुआ नहीं कि लुटेरे पहले ही आ गए। लीजन नाम के ग्र्रुप ने राहुल गांधी और कांग्रेस का ट्वीटर अकाउंट हैक कर लिया। ग्र्रुप ने संसद और 50 हजार कॉरपोरेट समूहों-अधिकारियों की ईमेल, बैंक अकाउंट, फोन नंबर समेत अनेक गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक करने की धमकी दी है। हैकर्स ने अखबारों को दिए बेखौफ इंटरव्यू में कैशलेस इकोनामी को भारत के लिए असुरक्षित बताया है। कुछ महीने पहले 32 लाख भारतीयों के डेबिट कार्ड का डाटा विदेशों से हैक कर लिया गया था। इन सबसे जनता में डिजिटल पेमेंट व्यवस्था में रकम की सुरक्षा पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
डिजिटल भुगतान के अखाड़े में जनता को धकेलने के पहले सुरक्षा को चौकस करने का काम तो सरकार को पहले करना ही चाहिए। डिजिटल पेमेंट के लिए इंफ्रा, डिजिटल साक्षरता, कानून, आर्थिक मोर्चे के अलावा डिजिटल सुरक्षा को मजबूत करने की चुनौती सरकार के सामने है। पर कैशलेस के लिए नए ढांचे को रातों-रात तो दुरुस्त नहीं किया जा सकता। मिसाल के तौर पर 50 लाख अधिकारियों को सरकारी ईमेल की सुविधा देने के लिए एनआइसी नेटवर्क का केंद्र सरकार अभी तक विकास नहीं कर पाई। शहरों में ही जब डिजिटल नेटवर्क का सही विकास नहीं हो पा रहा तो सुदूर गांवों में बैंकिंग, इंटरनेट, एटीएम, बिजली, मोबाइल नेटवर्क इतनी जल्दी कैसे दुरुस्त होगा? सुविधाओं के बावजूद लोगों को तकनीक के सुरक्षित इस्तेमाल की आदत डालने में वक्त लगता है। तभी तो शिक्षित वर्ग द्वारा 70 करोड़ डेबिट कार्ड में 45 करोड़ का इस्तेमाल सिर्फ पैसे निकालने यानी नगदी के लिए ही होता है। इन जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करके 30 करोड़ अनपढ़ और गरीब लोगों को यदि डिजिटल भुगतान के सरकारी लाभ से वंचित किया गया तो देश में आर्थिक विषमता ही बढ़ेगी। चीन में सख्ती होने की वजह से इंटरनेट कंपनियों के लिए भारत सबसे बड़ा मुक्त बाजार है। भारत में ग्राहकों की जवाबदेही के झमेले से बचने के लिए इन कंपनियों ने अपने हेडऑफिस और सर्वर विदेशों में रखे हैं। डिजिटल पेमेंट के लिए सरकार द्वारा प्रचारित जैम के तहत जन-धन खाता, आधार और मोबाइल कनेक्शन जरूरी है, पर डाटा की सुरक्षा और प्राइवेसी के लिए सख्त कानून अभी तक नहीं बने। निशुल्क मोबाइल सुविधा के नाम पर करोड़ों लोगों की निजी जानकारी और डाटा का भविष्य में दुरुपयोग न हो, इसके लिए जुर्माने और हर्जाने के नियम तो बनने ही चाहिए।
बैंक अकाउंट से गलत ट्रांसफर, डेबिट कार्ड का दुरुपयोग या ई-वालेट से रिफंड के मामले में पर्याप्त कानून न होने से लोग रिफंड के लिए पुलिस और बैंकों के बीच भटकते रहते हैं। इंटरनेट कंपनियां भारतीयों की निजी जानकारी वाले डाटा को बड़े लाभ पर बेचने के साथ हमारे देश की सामरिक सूचनाओं को विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ साझा करती हैं। नेटवर्क की कमी से डिजिटल पेमेंट में समस्या और ज्यादा बिलिंग होती है। इसके बावजूद कॉल ड्राप और खराब सर्विस पर मोबाइल कंपनियों को दंडित करने के लिए सरकार ने अभी तक कानून नहीं बनाया। पूंजी की कमी और एनपीए से बैंकिंग प्रणाली लड़खड़ा रही है। फिर साइबर सिक्योरिटी के लिए बैंक संसाधन कैसे जुटा पाएंगे? एटीएम का अधिकांश तंत्र आउटसोर्स होने और माइक्रोसॉफ्ट के आउटडेटेड सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल की वजह से असुरक्षित है। विदेशों में बैठे हैकर्स और गुनहगारों का पुलिस और खुफिया एजेंसी पता ही नहीं लगा पातीं। फिर ग्राहकों को हर्जाना मिलना तो दूर की कौड़ी है। भ्रष्टाचार और काले धन के लिए नगदी अर्थव्यस्था के बजाय गलत टैक्स ढांचा, विसंगत कानून और सामंती नौकरशाही की व्यवस्था जिम्मेदार है। 15 लाख करोड़ के बड़े नोटों के बैंक खातों में जमा होने की संभावना से न सिर्फ नोटबंदी का मकसद विफल हुआ है, बल्कि यह भी साफ हो गया कि काले धन के मैनेजमेंट के लिए बैंकिंग का भी बखूबी इस्तेमाल हो सकता है। काले धन तथा हवाला कारोबार को नोटबंदी से रोकने के साथ इंटरनेट पर सहज उपलब्ध बिट-क्वाइंस करेंसी की जब्ती के लिए नियम भी सरकार को बनाने चाहिए।
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने तथा ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने से भूमंडलीकरण की चमक फीकी हुई है, पर भारत में चीनी और अमेरिकी कंपनियां निर्बाध गति से नवसाम्राज्यवाद स्थापित कर रही हैं। इंटरनेट कंपनियों द्वारा खरबों की आमदनी अवैध रूप से टैक्स हैवन में ले जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था खोखली हो रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत में 500 अरब डॉलर की डिजिटल पेमेंट अर्थव्यवस्था हो जाएगी, जो जीडीपी का 15 फीसद है। इंटरनेट की सबसे बड़ी कंपनी द्वारा भारत में 4.29 लाख करोड़ के व्यापार की रिपोर्ट के बावजूद सिर्फ छह हजार करोड़ की आमदनी पर टैक्स देने के बावजूद सरकार चुप है। पेटीएम के कारोबार में 700 फीसद का इजाफा हुआ है। नोटबंदी के बाद सिर्फ एक फीसद शेयर बेचकर पेटीएम के मालिक ने 325 करोड़ रुपये कमाए हैं। एसोचैम द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार कैशलेस अभियान से जीडीपी में 1.5 फीसद से अधिक की गिरावट से लाखों लोग बेरोजगार हो सकते हैं। इंटरनेट कंपनियों को व्यापार करने के लिए भारत में ऑफिस और सर्वर स्थापित करने की बाध्यता का कानून यदि बन जाए तो मेक इन इंडिया अभियान को वास्तविक सफलता मिल सकती है। कैशलेस या लेसकैश की व्यवस्था के प्रसार से छोटे कारोबारी जीएसटी के दायरे में आ जाएंगे, पर नोटबंदी से अगर मंदी आ गई तो फिर अर्थव्यवस्था कैसे उबरेगी? उम्मीद है कि सोने की चिड़िया वाला ठोस और मजबूत भारत प्लास्टिक मनी के पंखों से भी विकास की ऊंची उड़ान भर पाएगा।
[ लेखक विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं ]