कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में युद्धारंभ के पूर्व जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, उपासना और ज्ञान का उपदेश दिया था तब अंत में अर्जुन ने पूछा था, प्रभु! इस संसार में सत्य क्या है? इसके उत्तर में श्रीकृष्ण ने कहा था, मित्र! इस संसार में एक ही तथ्य सत्य है और वह है इस धरती पर जन्म लेने वाले की अनिवार्यत: मृत्यु होना। यानी जो जन्मा है, वह मरेगा अवश्य। इसमें पशु, पक्षी कीट, पतंग, अनुरक्त और विरक्त का किसी प्रकार का कोई भेद नहीं है। प्राणी की मृत्यु पर किसी एक विचारक ने मृत्यु की अनिवार्यत: के संबंध में यह भी कहा है कि मृत्यु के लिए तीन स्थितियां ऐसी होती हैं जो किसी की भी मृत्यु के पूर्व विद्यमान रहती हैं। उन स्थितियों में से एक है प्रत्येक प्राणी की मृत्यु के स्थान का पूर्ण निश्चित होना।
दूसरी स्थिति है प्रत्येक मरणशील प्राणी की मृत्यु का पूर्व से ही समय निश्चित होना और तीसरी स्थिति है मरणधर्मा जीव की मृत्यु का कोई न कोई कारण होना। किसी भी प्राणी की मृत्यु के पूर्व इन तीनों स्थितियों का होना जहां अपरिहार्य है, वहीं इन तीनों स्थितियों पर मरने वाले जीव का कोई वश नहीं है। प्राय: कभी-कभी हम यह देखते हैं कि कोई जीव अपने मरण स्थान से बहुत दूर होता है, किंतु किसी न किसी कारण से वह अचानक ही वहां पहुंच जाता है जहां उसका मरण निश्चित होता।
इस स्थिति को न तो मृत्यु प्राप्त होने वाला जीव जानता है और न उसके सगे-संबंधी ही जान पाते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रत्येक प्राणी के मरण का स्थान निश्चित होता है। यही स्थिति समय और मरण के कारण की भी होती है इसीलिए यह कहा जाता है कि विद्या, कर्म, धन, आयु और निधन का स्वरूप जीव की मां के गर्भ में आते ही निश्चित हो जाता है जिसमें परिवर्तन कर पाना किसी के वश में नहीं होता है। इसलिए यही सिद्धांत है कि मनुष्य को अपना कर्म करते हुए निश्चिंत मन से जीवन जीना चाहिए। जो तथ्य अनिवार्य है, उससे डरना कैसा? आन, बान और शान से जीवन जिएं। स्वयं को असुरक्षित महसूस न करें। ईश्वर पर विश्वास रखने से व्यक्ति का असुरक्षा बोध खत्म हो जाता है। इस मंत्र को यदि आत्मसात कर लिया जाए तो जीवन के तमाम ऊहापोह दूर हो जाएंगे और व्यक्ति जीवन का पूरी तरह आनंद ले सकेगा।
[ डॉ. गदाधर त्रिपाठी ]