रोजगार के नए अवसर पैदा करने और वैश्विक जगत में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए सरकार को खेलों को बढ़ावा देने की सलाह दे रहे हैं बैजयंत जय पांडा

16 वर्षो के लंबे इंतजार के बाद भारतीय हॉकी टीम ने अंतत: एशियाई खेलों में स्वर्ण जीता। हालांकि एशियाई खेलों में हमारी पदक संख्या बहुत ज्यादा नहीं है, फिर भी पिछले दो दशकों में पदकों की संख्या में ढाई गुणा से अधिक की वृद्धि हुई है। राष्ट्रमंडल के साथ-साथ ओलंपिक जैसे प्रमुख खेल आयोजनों में भी हमारी स्थिति में निरंतर सुधार आ रहा है। एशियाई खेलों में जीते गए पदकों की कुल संख्या में भारत का हिस्सा मात्र 3.9 प्रतिशत है, जबकि चीन ने हर चार मेडलों में से लगभग एक मेडल जीता है और स्वर्ण में उसका हिस्सा इससे भी अधिक है। यहां तक कि 2012 के लंदन ओलंपिक में भारत का स्थान 79 देशों में से 55वां था। इस समस्या की जड़ में बहुत सारे कारण दिखाई देते हैं। सबसे प्रमुख कारण है राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी जो विकास के एजेंडे में खेलों को उचित प्राथमिकता नहीं देती। यद्यपि खेलों में सर्वश्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए एक व्यापक नीतिगत ढांचा तैयार किया गया है, लेकिन उसमें लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत कम प्रयास किए गए हैं। राष्ट्रीय खेल नीति, 2007 खेलों में हिस्सा लेने और सर्वश्रेष्ठता के समावेशी ढांचे को प्राप्त करने के लिए व्यापक उद्देश्य तय करती है। इसके लिए स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण व शहरी इलाकों में खेल के बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षण सुविधाओं, सार्वभौमिक पहुंच में निवेश तथा प्रतिभाओं को उचित अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है।

ऐसे बहुत सारे कारण हैं जिनके लिए खेलों को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। एक कारण यह है कि खेल हमारी लगातार बढ़ती जनसंख्या के लिए लाभदायक रोजगार का स्नोत बन सकते हैं। देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम है, जिसके कारण हम दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक हैं। खेल भारत की युवा जनसंख्या के लिए नई संभावनाएं पैदा कर सकते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में, जहां नौकरी का सृजन धीमा है, खेल रोजगार के लिए एक आकर्षक अवसर प्रदान कर सकते हैं और आर्थिक वृद्धि में योगदान कर सकते हैं। खेलों में सफलता पुनर्वास उद्देश्य में भी सहायता करती है। त्वरित व समावेशी राष्ट्रीय विकास के लिए खेलों को युवा विकास की प्रमुख एजेंसी के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। खेलों में सफलता हमारी वैश्विक प्रतिष्ठा व भूराजनीतिक दबदबे में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकती है। इतिहास साक्षी है कि आधुनिक समय में विश्व मंच पर अपनी ताकत को दर्शाने के लिए प्रमुख देशों ने अपने खिलाड़ियों में जमकर निवेश किया है। उदाहरण के लिए, समाजवादी देश जैसे चीन और अपने जमाने में सोवियत संघ ने युवा प्रतिभाओं की खोज व कड़े प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जबकि अमेरिका ने स्कूल तथा विश्वविद्यालय स्तर पर खेलों के आयोजन द्वारा अपनी खेल संस्कृति को बढ़ावा दिया है।

हमारे देश में उच्च शिक्षा तक पहुंच सीमित है और पढ़ाई समय से पहले छोड़ने की दर अधिक रही है। ऐसे में छिपी हुई ग्रामीण प्रतिभाओं का विकास हाशिये पर खड़े हमारे खिलाड़ियों को मुख्यधारा में लाने और उन्हें जीवनयापन प्रदान करने का एक बढि़या तरीका हो सकता है। इस संबंध में अपने निर्वाचन क्षेत्र केंद्रपाड़ा के ग्रामीण इलाकों में छोटे स्टेडियमों के निर्माण के लिए मैंने अपने एमपीएलएडी फंड का उपयोग किया है। इन इलाकों में सीमित शिक्षा व रोजगार के अवसरों के साथ-साथ खेल सुविधाओं तक पहुंच ने रोजगार और नियुक्ति के लिए व्यवहार्य विकल्प में सहायता की है। हमारी ग्रामीण प्रतिभा के विकास के लिए राष्ट्रीय पैमाने पर इसी प्रकार के प्रयासों की आवश्यकता है जो हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभदायक हो सकते हैं। खिलाड़ियों में निवेश करने के लाभ स्पष्ट हैं, इसलिए इस अवसर का लाभ लेने के लिए सुधारात्मक उपायों पर काम किया जाना चाहिए। हमारी नीति को कुछ इस प्रकार से बनाया जाना चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि बुनियादी सुविधाएं व प्रशिक्षण सुविधाएं प्रदान करने के अलावा खिलाड़ी उस नीति के केंद्र में रहें तथा अन्य सभी हितधारक इसमें सहयोग करें। साथ ही, खेल प्राधिकरणों व संघों द्वारा राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंच पर खिलाड़ियों का समर्थन करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। ओलंपिक स्वर्ण विजेता अभिनव बिंद्रा ने सार्वजनिक रूप से उनके खेल के प्रति खेल प्राधिकरणों की ओर से असहयोग के प्रति असंतोष व्यक्त किया था। हाल ही के एशियाई खेलों में सरिता देवी को आयोजन पर साथ गए भारतीय अधिकारियों से बहुत कम समर्थन प्राप्त हुआ। यह घटना उन खिलाड़ियों के प्रति खेल संघों की उदासीनता को दर्शाती है जो हमारे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस रवैये का बदलना जरूरी है। देश में खेल भावना को बढ़ावा देने की दिशा में एक अन्य कदम होगा खिलाड़ियों के लिए उनके खेल के भीतर ही लाभप्रद रोजगार के अवसरों का निर्माण करना। खिलाड़ियों को असंबंधित सरकारी नौकरियों की पेशकश करने के बजाय उनके क्षेत्र में भविष्य के खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए कोच व ट्रेनर के रूप में नियुक्त करना ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

खेलों के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देना एक उत्प्रेरक की भूमिका अदा कर सकता है। इस प्रकार की व्यावसायिक खेल लीग बहुत सारे खिलाड़ियों को सार्वजनिक मान्यता हासिल करने व मुख्यधारा में आने का अवसर देती है। आइपीएल के कारण क्रिकेट की कई प्रतिभाओं को पेशेवर क्रिकेट खेलने का अवसर प्राप्त हुआ। हाल ही में, कबड्डी को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ कम ख्याति प्राप्त कबड्डी खिलाड़ियों को प्रसिद्धि देने में कबड्डी लीग को आश्चर्यजनक रूप से भारी सफलता प्राप्त हुई। इंडियन सुपर लीग भारत में फुटबॉल के लिए वही प्राप्त करना चाहती है। अब समय आ गया है हम खेलों को विकास की प्राथमिकताओं में शीर्ष स्थान दें। देश को ख्याति देने के साथ ही युवा विकास के अवसर के रूप में खेल एक साधन बन सकते हैं। खेलों में बेहतर प्रदर्शन विश्व मंच पर हमारी आर्थिक ताकत का भी सबूत बनेगा। इस समय यह काम बहुत बड़ा दिखाई दे सकता है, किंतु अथक व निरंतर प्रयास परिणाम अवश्य लाएंगे।

(लेखक संसद सदस्य हैं)