भाव का ब्रह्मकमल अभाव की दुर्गम पहाड़ियों पर खिलता है। प्रभु की अनुकंपा व साधना से गंतव्य की प्राप्ति, भक्त व भक्ति की कठिन परीक्षा के उपरांत ही होती है। जो वस्तु व गंतव्य जितना महत्वपूर्ण और जितना दूर होगा, उसकी प्राप्ति में उतने ही अधिक समय, परिश्रम, धैर्य और साधना की आवश्यकता होगी। दयासिंधु भगवान जिसको जिस योग्य समझते हैं, उन्हें उनकी योग्यताओं के अनुरूप दायित्वपूर्ण भूमिकाएं सौंपते चले जाते हैं। ईश्वर कभी भी अपने भक्त को कुछ भी अनिष्टकारी वस्तु उपहार में नहीं देते, अज्ञानतावश हम उसे बुरा व अनिष्टकारी समझ बैठते हैं। जीवन में निर्मलता, मन, कर्म व सोच की पवित्रता हमें ईश्वर की दया व कृपा के निकट लाती है, जबकि मन की चालाकी, विचार की अपवित्रता और दूसरों के प्रति रचे गए षड्यंत्रों का मकड़जाल हमें अपने मार्र्गो में मिलने वाली असफलताओं से वंचित करता है।

यदि पर्याप्त प्रयासों के बावजूद सफलता नहीं मिल रही है तो निश्चित जानिए कहीं न कहीं आपके विचार, कर्म व सोच में अपवित्रता है। हम जितना प्रयास दूसरों के असफल होने के लिए करते हैं, हमारी सफलताएं हमसे दूर होती जाती हैं। मनुष्य केपास जो आज उसका वर्तमान उपस्थित है, वह उसके अतीत के कर्र्मो की पूंजी है। आज का कर्म भविष्य की पूंजी होगी। हम आने वाले कल में सुखी रहना चाहते हैं या दुखी, यह सोच कर अगर हम अपने कार्र्यो, सोच व वाणी की दिशा का निर्धारण करें तो जीवन में कभी भी पश्चाताप, दुख और पीड़ा का अनुभव न करना पड़े। जिसकेजीवन के कर्म और लक्ष्य की नींव झूठ पर आधारित हो तो उसकी जीवन-झोली में ईश्वर असफलता, दुख, आपदा व कष्ट के अलावा भला डाल ही क्या सकते हैं?

ईश्वर हमेशा हमें हमारे कर्मो की बोई हुई फसल का ही पारिश्रमिक अवसर व जीवन के उपहार के रूप में लौटाते हैं। आखिर मन, कर्म व वाणी से हमने जीवन के प्लॉट में जो कुछ बोया होगा, काटने के लिए भी तो हमें वही फसल मिलेगी। आज आपके पास जो भी सफलता व असफलता है, उसके जिम्मेदार केवल और केवल आप ही हो। इसलिए ऐसे कर्म बीज बोएं, जिनकी उपज की प्राप्ति से हमे भावी जीवन में आनंद, गर्व और असली सुख की अनुभूति हो। यह तभी संभव है जब हम ईश्वर द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन पूरी ईमानदारी, पवित्र भावना व शुभ-कर्म से करें।

(डॉ. दिनेश चमोला ‘शैलेश’)