ईश्वर की अनुभूति के लिए दो आधारभूत मार्ग हैं। बाह्य मार्ग और आंतरिक अथवा इंद्रियातीत मार्ग। बाह्य मार्ग के अंतर्गत उचित कर्म कर ईश्वर पर चेतना को केंद्रित करना है और मानव जाति से प्रेम कर उसकी सेवा करना है। इंद्रियातीत मार्ग गहन अंतरंग ध्यान का है। इंद्रियातीत पथ के द्वारा आप उन सब के बारे में जान लेते हैं जो आप नहीं हैं और उसे अनुभव कर लेते हैं जो आप हैं। मैं सांस नहीं हूं, मैं शरीर नहीं हूं, न ही अस्थियां हूं, और न ही मैं मांस हूं। मैं मन या संवेदना भी नहीं हूं। मैं वह हूं, जो सांस, शरीर, मन और संवेदना के पीछे है। जब आप यह जानते हैं कि आप शरीर या मन नहीं हैं तब आप इस संसार की चेतना के परे चले जाते हैं और फिर भी अपने अस्तित्व का बोध पहले से कहीं अधिक रखते हैं। वही दिव्य चेतना आप हैं। आप वह हैं, जिसका आधार पाकर विश्व की प्रत्येक वस्तु टिकी है। जब आप अपनी आंखें बंद करते हैं तो उसके पीछे के अंधकार की जांच क्यों नहीं करते? वही स्थान है, जिसकी खोज करनी है और अंधकार में प्रकाश चमकता है; और अंधकार इसे समझ नहीं पाता। प्रचंड प्रकाश और महान ब्रह्मांडीय शक्तियां वहां घूम रही हैं। समाधि एक आनंददायक अनुभव है, एक भव्य प्रकाश जिसमें आप आनंद और प्रसन्नता के विशाल धरातल में तैरते हुए असंख्य संसार देखते हैं। उस आध्यात्मिक अज्ञान को हटाएं, जो आपको यह सोचने पर विवश कर देता है कि यह नश्वर-जीवन वास्तविक है। इन सुंदर अनुभवों को शाश्वत समाधि में और ईश्वर में स्वयं प्राप्त करें। सभी महान गुरुजन बताते हैं कि इस शरीर के भीतर अमर आत्मा है, उस ईश्वर की एक चिंगारी जो सबका पोषण करती है, जो अपनी आत्मा को जान लेता है। वह इस सत्य को जानता है। मैं प्रत्येक सीमित वस्तु के परे हूं; मैं अब देखता हूं कि नित्य, नवीन आनंद स्वरूप परब्रह्म, जो अंतरिक्ष में अकेले थे, उन्होंने ही स्वयं को प्रकृति के इस विशाल स्वरूप में प्रकट किया है। मैं नक्षत्र हूं, मैं सभी हृदयों का उल्लास हूं, मैं पुष्पों के मुखड़ों की और प्रत्येक आत्मा की मुस्कुराहट हूं। मैं वही प्रज्ञा और शक्ति हूं, जो समस्त सृष्टि का पोषण करती है। यह जान लें, मेरे शब्द आपके अंतस में स्पन्दित होते रह सकते हैं, किंतु यदि आप माया में सोते रहेंगे तो आप इसे नहीं जान सकेंगे। यदि आप जाग्रत रहेंगे तो आपको इस बात का बोध रहेगा कि जो सत्य मैंने कहा है वह आपकी आत्मा में सदा स्पंदित हो रहा है।
[ श्रीश्री परमहंस योगानंद ]