बजट में मोदी सरकार ने की भरोसा कायम रखने की कोशिश
सरकार ने बजट में जिस तरह गांव से लेकर शहर तक नई घोषणाएं की हैं, उससे विकास का समावेशी रूप दिखेगा
प्रेम प्रकाश। बजट से पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बजट के किसानोन्मुख होने की बात कही थी। उनकी बात भी सही निकली। जहां कृषि कर्ज को 1 लाख करोड़ बढ़ाकर 11 लाख करोड़ किया गया है तो वहीं सरकार ने किसानों को लागत का डेढ़ फीसद न्यूनतम समर्थन मूल्य देने को लेकर प्रतिबद्धता दिखाई है। इस बात में कहीं दो मत नहीं कि इस बार बजट में सरकार कृषि क्षेत्र में आय बढ़ाने को लेकर ज्यादा फिक्रमंद दिखी है। 22 हजार हाट कृषि बाजार में बदले जाने की बात बजट में तो कही ही गई है, साथ ही खाद्य प्रसंस्करण के लिए 1,400 करोड़ रुपये सरकार देने जा रही है।
सामने आएंगे भारतीय मैकडोनाल्ड और डोमिनोज
उम्मीद है कि इससे मैकडोनाल्ड और डोमिनोज के भारतीय संस्करण सामने आएंगे और अगर ऐसा हुआ तो वाकई कृषि सेक्टर का चेहरा बदल जाएगा। साथ ही जिन कुछ घोषणाओं पर कृषक समाज प्रसन्न होगा, उनमें 42 मेगा फूड पार्क का निर्माण, कृषि उपज के लिए जिला स्तर पर औद्योगिक कलस्टर जैसा सिस्टम बनाने और ऑपरेशन फ्लड की तर्ज पर आलू और टमाटर के दामों में उतार-चढ़ाव के नुकसान को रोकने के लिए खास इंतजाम की बात अहम है। सरकार ने मत्स्यपालन और पशुपालन पर भी ध्यान दिया है। जहां मत्स्यपालन को बढ़ावा देने के लिए विशेष कोष बनेगा, वहीं वित्तमंत्री ने पशुपालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड देने की बात कही है।
इसी तरह वित्तीय प्रबंधन के लिहाज से राजकोषीय घाटे को 3.5 से 3.2 फीसद करने का एलान कर सरकार ने उन आशंकाओं को समाप्त कर दिया है, जिसमें कहा जा रहा था कि सरकार पर जिस तरह के दबाव हैं उसमें उसके खर्च और नए बजट प्रावधानों से राजकोषीय घाटा बढ़ना तय है।
लोकलुभावन बजट की उम्मीद पहले ही नहीं थी
यह भी कि 2018 के आम बजट का इंतजार देश को महज इसलिए इंतजार नहीं था कि यह नरेंद्र मोदी सरकार का अंतिम पूर्णकालिक बजट होगा। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद देश में वित्तीय अनुशासन की जो नई कवायद चली है, उसे लेकर आर्थिक सलाहकारों से लेकर कारोबारियों तक की राय एक नहीं है। पर वित्तमंत्री ने यह बताकर कि कर के दायरे में जहां ज्यादा लोग आए हैं और कर राजस्व की वसूली भी बढ़ी है, सरकार की आलोचना के तर्क को बेमानी कर दिया है। यही वजह है कि जिस प्रधानमंत्री ने बजट से पहले यह कहा था कि इस बार का बजट लोक-लुभावन नहीं होगा, उसने बजट के बाद इसकी तारीफ में गदगद भाव से कई बातें कहीं। उन्होंने इसे जहां इसे संतुलित बताया, वहीं इसे विकास को गति देने वाला बजट भी बताया। दरअसल, ब्रांडिंग और टाइमिंग के लिहाज से अपने प्रदर्शन को हमेशा अचूक बनाने वाली इस सरकार का यह बजट पैकेजिंग और ब्रांडिंग दोनों का बेहतरीन मेल था।
आयकर में छूट के लिए और करना होगा इंतजार
सरकार ने एक तरफ जहां सुधार की धार को विनिवेश के दरवाजे को खोलकर और बढ़ाया, वहीं बीमा कंपनियों के आपसी विलय को हरी झंडी देकर इस दिशा में वह और आगे बढ़ी। स्वास्थ्य, शिक्षा से लेकर गांव और गरीब तक वित्तमंत्री की पोटली में सबके लिए इस बार कुछ न कुछ था। अलबत्ता यह बजट नौकरीपेशा लोगों के लिए जरूर थोड़ा निराशाजनक रहा, क्योंकि इनकम टैक्स छूट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। पहले यह कहा जा रहा था कि इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ाई जा सकती है, लेकिन इनकम टैक्स छूट की सीमा तो नहीं बढ़ाई गई 40 हजार का स्टैंडर्ड डिडक्शन मिला है। यानी हर तरह के सैलरी वालों को वेतन से 40 हजार घटाकर टैक्स देना होगा। वैसे यह भी एक तरह से नौकरीपेशा लोगों के लिए राहत देने वाली खबर ही है। पर यह राहत तब शायद ज्यादा सुकून भरी होती, अगर वित्तमंत्री यह न बताते कि इनकम टैक्स पर 1 फीसद सेस बढ़ाया गया है। सेस 3 फीसद से बढ़ाकर 4 फीसद किया गया, यानी अब नौकरीपेशा लोगों को ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा।
स्वास्थ्य बीमा है मोदी केयर
सबसे खनकदार बात निकलकर सामने आई है, वह है 10 करोड़ गरीब परिवारों यानी करीब 50 करोड़ लोगों के लिए 5 लाख के स्वास्थ्य बीमा का एलान। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के नाम पर घोषित ओबामा केयर की तर्ज पर इस मेगा बीमा योजना को अभी से मोदी केयर कहा जा रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत शुरू हो रही है इस योजना को वित्त मंत्री जेटली ने दुनिया का सबसे बड़ा हेल्थ केयर प्रोग्राम बताया है। इस लिहाज से देखें तो देश की करीब 1.30 अरब आबादी में करीब-करीब 40 प्रतिशत के लिए बड़े स्वास्थ्य सुरक्षा योजना का एलान इस बजट में किया गया है। अगर यह कोशिश इस लिहाज से किसी चुनावी फायदे के लिए भी की गई है तो इसकी सराहना करनी होगी।
विकास दर पर सरकार होगी सवार
बजट के मूल्यांकन का एक आधार विकास दर का अनुमान भी है। बजट से पहले वित्त मंत्री ने जो आर्थिक सर्वे संसद में पेश किया, उसमें अगले वित्तीय साल देश का आर्थिक विकास 6.75 के मुकाबले 7 से 7.5 फीसद रहने का अनुमान जताया गया था। वैसे इस अनुमान की जमीन कितनी मजबूत है इसे समझने की जरूरत है। केंद्रीय सांख्यायिक कार्यालय (सीएसओ) के अनुसार, इस वित्त वर्ष में विकास दर में कमी देखने को मिलेगी। इसी माह पेश हुए सीएसओ के अनुमान के बाद विश्व बैंक का भी एक आकलन आया जो सरकार के लिए थोड़ी राहत भरी रही। उसने 2018 के लिए भारत की विकास दर के 7.3 फीसद पर रहने का तो अनुमान जताया ही है, साथ ही यह भी कहा है कि विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक भारत अगले दो सालों में 7.5 फीसद की दर से आगे बढ़ सकता है।
विश्व बैंक को भी भारत से उम्मीदें
विश्व बैंक ने कहा है कि इस महत्वाकांक्षी सरकार में हो रहे व्यापक सुधार उपायों के साथ भारत में दुनिया की दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में विकास की कहीं अधिक क्षमता है। इस लिहाज से मूल्यांकन करें तो सरकार ने बजटीय प्रावधानों में जिस तरह गांव से लेकर शहर तक और स्वास्थ्य से लेकर विनिर्माण क्षेत्र तक कई नई घोषणाएं की हैं, उससे यह उम्मीद तो है ही देश में विकास की समावेशी चरित्र उभरेगा। सेंसेक्स ने भी जिस तरह एक संतुलित रवैया अपनाया है, उससे जाहिर है कि कारोबारी सेक्टर को भी कहीं न कहीं लग रहा है कि 35,000 अंकों की छलांग के बाद बाजार अब पीछे का मुंह तो नहीं देखेगा।
(लेखक डेवेल्पमेंट ऑप्शन्स फॉर सोशल ट्रांसफार्मेशन के संस्थापक सदस्य हैं)