हम सभी जीव कर्म पथ के यात्री हैं। कई जन्मों से हम यात्रा करते आए हैं, आज भी कर रहे हैं, परंतु अफसोस कि सब पुराना विस्मृत हो जाता है। हम भूल सकते हैं। हमारा मन इस यात्रा को भुला सकता है; परंतु सूक्ष्मतम तत्व इसे नहीं भुला सकता है। वह सब कुछ किसी भी जन्म में याद रखता है। यह जगत माया का बगीचा है। महामाया का स्वरूप मोहिनी का है। ज्ञानी ऋषि-मुनि इसकी झूठी चकाचौंध को तुरंत समझ जाते हैं और सजग हो जाते हैं। वे जानते हैं कि यह जो भौतिक और विलासतापूर्ण वस्तुएं हैं या माहौल है, यह स्थायी रूप से आनंद-प्रदान नहीं कर सकता। वास्तविक आनंद तो परमात्मा की अनुभूति में है। वह परमात्मा ही शाश्वत है और आनंद का स्थायी स्रोत है। परमात्मा ने चेतना प्रदान की है। यह चेतना ही है, जो शरीर रूपी मंदिर में जान फूंकती है। हमारे शरीर में एक अद्भुत व्यवस्था है। इस देव शरीर में सारा विराट समाया है। यह जितना भौतिक है, उससे कहीं अधिक गहरा इसका सूक्ष्म जगत है। सूक्ष्म जगत से भी गहरा कारण जगत है। न जाने कितने केंद्र, कितने चौराहे, कितनी नदियां सूक्ष्म रूप में इसमें बने हैं। इस शरीर के अंतर्जगत में अनेक ऐसी नदियां हैं और अनेक ऐसे कुंड हैं, जो अमृत छिपाए बैठे हैं पर फिर भी यह जीवन-जीवन नहीं है। यदि इसे परमात्मा की कृपा न मिली हो। अगर हम चैतन्य हैं, जाग्रत हैं, तो महसूस कर सकते हैं कि हममें एक दिव्यता है।
अंतर्मुखी होकर हम जान सकते हैं कि अंतस का एक मार्ग है, एक विश्वास है, एक नया अध्याय खुल सकता है। इसलिए हमें अभी इसी पल जगना होगा और अपने अंदर छिपी संभावित शक्तियों को जगाना होगा। हमारे अंदर प्रवाह है। ऊर्जा धारा का प्रवाह जो उस केंद्र तक पहुंच ही नहीं रहा है। हमने उसे रोक रखा है। प्रकाश बिंदु कब से प्रकाशित होना चाहता है, परंतु हमने उसे रोक रखा है। याद रखना, बल्ब सिर्फ एक तार के जुड़ने से नहीं जलता। आप अपने अंतस की जीवनधारा को गति देकर जगाएं और बाहरी व्यक्तित्व को सशक्त करें। बाहर और भीतर दोनों जीवन ऊर्जा को वहां तक ले जाएं। तीसरी आंख खुल जाएगी। जब तक दोनों तारों को नहीं जोड़ेंगे, तब तक बल्ब नहीं जलेगा। जब एक बार आपकी आंतरिक चेतना बल्ब की तरह प्रकाशित हो गई, तो समझें कि आपके जीवन का कायाकल्प हो गया। इस कायाकल्प के बाद आप नकारात्मक विकारों से मुक्त हो जाएंगे।
[ महायोगी पायलट बाबा ]