हर्ष वी पंत

ऐसे दौर में जब भारत पाकिस्तान के उन्मादी रवैये से एक बार फिर आहत हुआ है तब देश में हुए दो विदेशी राष्ट्रप्रमुखों के हालिया दौरे भारतीय कूटनीति की धीरे-धीरे विकसित हो रही नई प्राथमिकताओं को रेखांकित कर रहे हैं। दरअसल भारत में इन दिनों नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव का मामला गरमाया हुआ है जिन्हें पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने आनन-फानन में और बचाव के लिए वकील तक उपलब्ध कराए बिना ही मौत की सजा सुनाई है। इस पर उपज रहे आक्रोश की वजह से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की भारत यात्रा के महत्व पर ज्यादा चर्चा नहीं हो सकी। एक तरह से देखा जाए तो ये दोनों दौरे भारत की उभरती वैश्विक ताकत की छवि को न केवल नए सिरे से मजबूत कर रहे हैं, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी बढ़ती भूमिका का भी संकेत दे रहे हैं।
अब वैश्विक स्तर पर भारत से एक नई तरह की अपेक्षा की जा रही है। वह यही कि भारत एक नई किस्म की वैश्विक भूमिका अख्तियार करे। नई दिल्ली भी यह भूमिका निभाने के लिए तैयार नजर आ रही है। सुरक्षा प्रदाता साझेदार के रूप में ही भारत की भूमिका नई दिल्ली-ढाका संयुक्त घोषणापत्र में नजर आती है जिसमें दोनों देशों के बीच अधिक से अधिक सैन्य प्रशिक्षण और आदान-प्रदान पर जोर दिया गया है। साथ ही दोनों देशों के मछुआरों को बचाने के लिए बंगाल की खाड़ी में चलाए जा रहे संयुक्त खोज और बचाव अभियान में प्रदर्शित किए गए पेशेवर अंदाज के लिए सैन्य बलों की प्रशंसा की गई है। हसीना की दिल्ली यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच मुख्य आकर्षण रक्षा संबंध ही था। इस बार इसमें रक्षा ढांचे पर मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग यानी सहमति पत्र और बांग्लादेशी सेना की रक्षा खरीद के लिए 50 करोड़ डॉलर की ऋण व्यवस्था को भी शामिल किया गया जो भारत की सीमा से लगने वाले किसी भी देश के साथ इस मद में अब तक की सबसे बड़ी कर्ज पेशकश है। इस ऋण व्यवस्था की सबसे खास बात यही है कि बांग्लादेश अपनी जरूरत का रक्षा साजोसामान भारतीय कंपनियों से खरीदने के लिए बाध्य नहीं होगा। यह हसीना सरकार में भरोसा बहाल करने का भारतीय तरीका है कि वह नई दिल्ली के हितों को चुनौती नहीं देंगी।
भारत अपनी आर्थिक वृद्धि में भी सहयोगियों को साझेदार बनाने के लिए तैयार दिख रहा है। इसने मोंगला, चटगांव और पीएरा बंदरगाहों के मरम्मत कार्य सहित बुनियादी ढांचे से जुड़ी तकरीबन 17 परियोजनाओं के विकास के लिए मौजूदा 2.8 अरब डॉलर के अतिरिक्त बांग्लादेश के लिए अलग से 4.5 अरब डॉलर के कर्ज की व्यवस्था की है। दक्षिण एशिया में संपर्क बहाली यानी कनेक्टिविटी की महती जरूरतों को देखते हुए भारत बीबीआइएन यानी बांग्लादेश-भूटान-इंडिया-नेपाल मोटर वाहन समझौते को समयपूर्व लागू करने पर जोर दे रहा है जिसका मकसद दक्षिण एशियाई देशों में सड़क माध्यम से निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करना है। इसी कड़ी में कोलकाता और खुलना के बीच बस और टे्रन सेवा भी शुरू की गई है और जल्द ही अंतरदेशीय जलमार्ग चैनल को फिर से बहाल करने की योजना पर काम हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शेख हसीना द्विपक्षीय संबंधों को नया आकार देने में दिलचस्पी ले रहे हैं। इसके लिए मोदी अपनी राजनीतिक पूंजी का बढ़-चढ़कर उपयोग भी कर रहे हैं। 2015 में उन्होंने दशकों पुराने सीमा विवाद को खत्म कराने के लिए भूमि सीमा समझौता संपन्न कराया था और अब तीस्ता नदी जल बंटवारे से जुड़े विवाद के निपटारे के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। हसीना भी भारत की चिंताओं को दूर करने की लगातार कोशिश करती रही हैं। बांग्लादेश अलगाववादी भावना से ग्रस्त भारतीय उग्रवादी संगठनों जैसे उल्फा और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड से निपटने के लिए गंभीर कदम उठा रहा है। यही नहीं हूजी, जमात-उल मुजाहिदीन बांग्लादेश और हरकत-उल अंसार जैसी कट्टरपंथी ताकतों से पार पाने के लिए इन दिनों भारत और बांग्लादेश के बीच गजब का तालमेल दिखाई दे रहा है।
हालांकि दिल्ली-ढाका के बीच मजबूत रिश्ते की अपनी प्रतिबद्धता के लिए हसीना को घरेलू स्तर पर भारी विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। दोनों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में 22 समझौतों पर हस्ताक्षर होने के तुरंत बाद विपक्षी नेता खालिदा जिया ने सत्ता में बने रहने के लिए हसीना पर बांग्लादेश को भारत के हाथों बेचने तक का आरोप लगाया। बहरहाल भारत के आकार और विस्तार को देखते हुए अपने पड़ोसी देशों के साथ हेल-मेल रखना उसके लिए बेहद जरूरी है। हालांकि दक्षिण एशिया में जहां दिल्ली के इरादों को लेकर गहरा संदेह व्याप्त है, ऐसे में उसे हमेशा सतर्कता के साथ फूंक-फूंककर कदम रखने पड़ते हैं। जाहिर है यदि भारत अपने पड़ोसियों की शिकायतों को परस्पर समझ-बूझ के जरिये हल करने की कोशिश करता है तो उनके साथ तनाव और संदेह घटने की संभावना बढ़ जाएगी।
भारत अपनी कूटनीति को धार देने के लिए वृहत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अपनी प्रतिबद्धताओं को विस्तार दे रहा है। उसमें वह परंपरागत रूप से दक्षिण एशिया तक सीमित रहने वाली अपनी छवि के दायरे से बाहर निकल रहा है। इस कड़ी में भारत को हाल के वर्षों में जिस तरह से जापान, ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ साझेदारी कायम करने में सफलता मिली है वह इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका और मौजूदगी का प्रमाण है। बीते हफ्ते संपन्न हुआ ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री का दिल्ली दौरा भी दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर भारत को एक मजबूत एवं विश्वसनीय क्षेत्रीय ताकत के रूप में मान्यता मिलने लगी है। दोनों देशों ने नौवहन और ओवरप्लाइट यानी समुद्र के ऊपर उड़ान भरने की स्वतंत्रता, निर्बाध वैध कारोबार के लिए समुद्री सहयोग को बढ़ावा देने और यूएनसीएलओएस (यूनाइटेड नेशंस कनवेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी) सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सभी समुद्री विवादों को शांतिपूर्वक हल करने पर सहमति जताई है।
यहां भी केंद्र में रक्षा सहयोग ही है जिसके तहत इस साल के अंत में विशेष बलों के संयुक्त अभ्यास और प्रथम द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास सहित 2018 में बंगाल की खाड़ी में ऑसिनडेक्स यानी भारत-ऑस्ट्रेलिया नौसेना अभ्यास के नाम से द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास शुरू करने जैसी जुगलबंदी का फैसला किया गया है। दोनों देशों को अपनी बढ़ती सुरक्षा साझेदारी को आर्थिक महत्व देने के लिए अब जल्द से जल्द व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) के पहलुओं को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। एशिया में उदार अर्थव्यवस्था और सुरक्षा व्यवस्था के प्रवर्तक देश के रूप में भारत के उभार की संभावनाओं के बारे में भारी प्रचार के बावजूद इस क्षेत्र में कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो नई दिल्ली की क्षेत्रीय एवं वैश्विक ताकत की भूमिका को विस्तार दे रहा है। ऐसे समय में जब वाशिंगटन की नीति में अस्पष्टता बरकरार है और बीजिंग मौजूदा विश्व व्यवस्था के आधार को चुनौती दे रहा है तब क्षेत्र और क्षेत्र के बाहर समान सोच वाले देशों के साथ सहयोग भारत को विश्वसनीय क्षेत्रीय मध्यस्थ शक्ति के रूप में उभारने में मददगार होगा। यह भारत पर निर्भर करता है कि वह इस अवसर को कैसे अपने पक्ष में भुनाता है। शायद यही वजह है कि बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश उस पर भरोसा करते दिख रहे हैं।
[ लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफेसर हैं ]