विवेक काटजू 
भारत सरकार ने तय किया है कि भारत में इलाज के लिए आने वाले पाकिस्तानियों को सरताज अजीज का सिफारिशी पत्र अनिवार्य होगा। अजीज पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार हैं। चूंकि पाकिस्तान में व्यावहारिक कारणों से कोई विदेश मंत्री नहीं है, लिहाजा अजीज ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के समकक्ष हुए। जब कैंसर पीड़ित एक 25 वर्षीय पाकिस्तानी युवती ने भारत में उपचार के लिए स्वराज से गुहार लगाई तो उन्होंने उसे आश्वस्त किया कि जैसे ही अजीज वीजा के लिए संस्तुति कर देंगे उसके लिए तुरंत वीजा जारी कर दिया जाएगा। इसके साथ ही स्वराज ने अजीज को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर की कि कुलभूषण जाधव की मां को वीजा देने के उनके निवेदन पर उन्होंने शिष्टाचार का भी लिहाज नहीं किया। इस सबके बीच बीते दिनों स्वराज ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके के एक युवा को अजीज के सिफारिशी पत्र के बिना ही वीजा देने की घोषणा की। उन्होंने ऐसा इस आधार पर किया, क्योंकि भारत पीओके को अपना ही हिस्सा मानता है। यह काबिलेतारीफ फैसला है।
सुषमा स्वराज की बुद्धिमता संदेह से परे है। उनके पास अपार राजनीतिक अनुभव है। उन्होंने तमाम जिम्मेदारियों को कुशलता से निभाया है। वह मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत विनम्र नेता मानी जाती हैं। भारत सौभाग्यशाली है कि उसके पास उनके जैसी विदेश मंत्री हैं। पाकिस्तानी बच्चों और युवाओं को स्वास्थ्य वीजा देने में दिखाई जाने वाली उनकी दरियादिली उनके मानवीय पक्ष को ही उजागर करती है। इसमें संदेह नहीं कि उन्होंने काफी सोच विचार के बाद ही पाकिस्तानियों के लिए स्वास्थ्य वीजा की मौजूदा नीति को आकार दिया है। वीजा देना या न देना किसी देश का अपना विशेषाधिकार है। हालांकि तमाम देश वीजा के मोर्चे पर कुछ श्रेणियों के लिए विशेष करार कर लेते हैं। मिसाल के तौर पर कारोबारियों की श्रेणी के लिए वीजा नियम आसान बना दिए जाते हैं। हालांकि ऐसे अनुबंध भी उस श्रेणी से बाहर के लोगों को वीजा देने के उस देश के विशेषाधिकार को खत्म नहीं करते। भारत और पाकिस्तान के बीच दूतावास के स्तर पर अनुबंध है। धार्मिक यात्रा के सिलसिले में आने वाले लोगों के मामलों को इसी अनुबंध के तहत देखा जाता है। छात्रों या पर्यटकों के अलावा इलाज कराने के लिए आने वाले पाकिस्तानियों के वीजा संबंधी मामलों पर यह लागू नहीं, लेकिन यह भारत या पाकिस्तान को पर्यटन, स्वास्थ्य या किसी अन्य श्रेणी में वीजा देने से नहीं रोकता।
भारत और पाकिस्तान के मामले में वीजा का मसला अमूमन उन्हीं श्रेणियों तक ही सीमित है जिनका दूतावास अनुबंध में उल्लेख है। सितंबर, 2016 में उड़ी आतंकी हमले के बाद से भारत ने सुरक्षा कारणों से पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा संबंधी नियम सख्त कर दिए। यह एकदम सही फैसला था, क्योंकि देश की सुरक्षा के मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता। भारत ने पाकिस्तान से दो टूक लहजे में यह भी कह दिया कि जब तक वह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देता रहेगा तब तक उससे कोई बातचीत नहीं हो सकती। भारत को इस रुख पर अडिग रहना चाहिए। ऐसे माहौल में बातचीत के निहितार्थ समझने होंगे। इससे व्यापक रूप से तीन मुद्दे जुड़े हैं। एक तो मतभेद सुलझाना, दूसरा सहयोग बढ़ाना और तीसरा मानवीय पक्षों से जुड़े समाधान तलाशना। इनमें तीसरी श्रेणी से जुड़े मामलों के लिए दोनों देशों के अधिकारियों के बीच नियमित रूप से संवाद की जरूरत है, क्योंकि यात्रियों, कैदियों और मछुआरों से जुड़े मामले अक्सर तनाव की वजह बन जाते हैं। पड़ोसी मुल्कों के बीच यह स्वाभाविक ही है और ये संबंध निश्चित रूप से बने रहने चाहिए। इन मसलों पर चर्चा पाकिस्तान के साथ वार्ता को लेकर भारत के सख्त रुख-रवैये को किसी भी लिहाज से कमजोर नहीं करता।
स्वास्थ्य वीजा भी मानवीय पक्ष से संबंधित है। क्या हमें इस पर स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं करना चाहिए? इसे लेकर पाकिस्तान पर ऐसी कोई शर्त क्यों लगाई जानी चाहिए कि किसी सरताज अजीज की संस्तुति अनिवार्य बन जाए? इसके लिए एक खास तंत्र बनाया जा सकता है जिसमें भारतीय डॉक्टरों की टीम सुनिश्चित करे कि स्वास्थ्य वीजा का दुरुपयोग न हो पाए। असल में सिफारिशी पत्र की जरूरत एक तरह से पाकिस्तान को शर्मसार करने के लिए ही है कि उसने जाधव की मां के लिए वीजा पर मानवीय रूप से विचार नहीं किया। अगर पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया होता तो शायद आज इसकी नौबत ही नहीं आती। पाकिस्तानी आज अपने ही देश की गलत नीतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं। पाकिस्तान ने इन गलत नीतियों को सुधारने की कोई जहमत भी नहीं उठाई है। लगता है उसके हुक्मरानों को कहीं कोई शर्म नहीं।
इसमें संदेह नहीं कि स्वास्थ्य वीजा के पाकिस्तानियों के आवेदन पर उदारतापूर्वक विचार के बाद भी भारत के प्रति पाकिस्तान के विषवमन में किसी तरह की कमी नहीं आने वाली। भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए वह आतंक सहित हरसंभव तिकड़म का इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करेगा। यक्ष प्रश्न यही है कि यह सब जानते हुए भी क्या पाकिस्तानियों की ओर से मदद की गुहार पर हमारी सरकार का दिल पसीजना चाहिए? इस सवाल का कोई आसान जवाब नहीं है। एक नजरिया तो यह हो सकता है कि अगर पाकिस्तान को अपने ही नागरिकों की परवाह नहीं तो फिर भारत क्यों उनकी चिंता करे? दूसरा यह कि पाकिस्तानी आतंक की भेंट चढ़ते अपने नागरिकों के दर्द को देखते हुए भारत को पाकिस्तानी नागरिकों के स्वास्थ्य वीजा के जरिये उनकी भलाई की परवाह नहीं करनी चाहिए। भारत ने सरताज अजीज के संस्तुति पत्र के मामले में एक विकल्प मुहैया कराया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो इस मौजूदा नीति की वैधता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। वैसे भी कूटनीति की दुनिया परस्पर आदान-प्रदान से संचालित होती है। संभवत: अधिकांश भारतीय यही महसूस करते हैं कि जो पाकिस्तान हमेशा भारत को अपना दुश्मन मानता आया हो और जिसके आतंक की वजह से सैनिकों से लेकर निर्दोष आम लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रहा हो उसके बाशिंदों के इलाज के मामले में कोई नरमी दिखाने की दरकार नहीं।
हमने देखा है कि दिसंबर 2014 में पेशावर के सैनिक स्कूल में आतंकी हमले में 150 बच्चों की मौत पर जब भारत ने एकजुटता दिखाई तब भी पाकिस्तान में भारत के रुख की खास सराहना नहीं हुई। इस सबके बाद भी हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि स्वास्थ्य वीजा से भारत की साख जुड़ी है। क्या हमारे प्राचीन मूल्य हमें यह नहीं सिखाते कि भले ही हम अपने दुश्मन से लड़ते रहें, लेकिन दुश्मन देश के मजलूम, महिलाओं और बच्चों के साथ बेहतरी से पेश आएं? निश्चित रूप से आतंकी किसी नरमी के हकदार नहीं और पाकिस्तानी आतंक को निर्ममता से कुचला जाना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही हमें अपनी प्राचीन सभ्यता के मूल अवयव के रूप में मानवता का परित्याग भी नहीं करना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में सुषमा स्वराज को स्वास्थ्य वीजा मसले पर गहराई से मंथन करना चाहिए।
[ लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं ]