परिश्रम के बगैर मनुष्य का जीवन व्यर्थ है। परिश्रम किए बगैर मनुष्य को भोजन भी नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह बीमार पड़ जाएगा। एक कहानी केअनुसार एक राजा वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था, लेकिन इसके बावजूद उसे लगता था कि वह बीमार है। ऐसे में जो भी चिकित्सक उससे यह कहता कि वह स्वस्थ है तो वह उसी को फांसी पर चढ़ाने का आदेश दे देता। अंत में एक चिकित्सक ने राजा से कहा कि आप तो गंभीर रूप से बीमार हैं। यह सुनकर वह खुशी से उछल पड़ा और बोला, यह बताओ कि मुङो क्या बीमारी है। चिकित्सक ने कहा कि राजा जी, आपको एक रहस्यमयी बीमारी है और इसका इलाज यही है कि आप एक दिन के लिए किसी सुखी और प्रसन्न व्यक्ति की कमीज पहनें।

बहरहाल काफी खोजबीन के बाद भी राजा के सैनिकों को कोई प्रसन्न व्यक्ति नहीं मिला। राजा को जब यह बात मालूम हुई कि उसके राज्य में लगभग सभी दुखी हैं तो वह काफी विचलित हुआ। खैर एक दिन सैनिकों ने देखा कि एक व्यक्ति अपनी ही धुन में खोया हुआ गाना गाते हुए अपने खेत में काम कर रहा है। सैनिकों ने उससे पूछा कि क्या वह अपने जीवन से प्रसन्न है? उस व्यक्ति ने जब इसका उत्तर हां कहकर दिया तब सैनिकों को बहुत खुशी हुई और वे बोले कि क्या वह एक दिन के लिए अपनी कमीज राजा जी को दे सकता है। इस पर वह व्यक्ति बोला, मैं राजा जी को अपनी कमीज दे देता, लेकिन मेरे पास तो कोई दूसरी कमीज ही नहीं है। अगले दिन जब राजा उससे मिलने के लिए अपने महल से बाहर निकला तो चिड़ियों की चहचहाहट, स्वच्छ वातावरण व नए-नए चेहरों को देखकर उसे बहुत अच्छा लगा और वह अपने आपको स्वस्थ महसूस करने लगा।

सार यही है कि प्रकृति द्वारा दिए गए संसाधनों का उपयोग वही व्यक्ति कर सकता है जो परिश्रम में विश्वास रखता है। गीता में भी श्रीकृष्ण परिश्रम का महत्व बताते हुए अजरुन से कहते हैं कि परिश्रम ही मनुष्य की वास्तविक पूजा-अर्चना है। इसके बिना मनुष्य का सुखी-समृद्ध होना कठिन है। जो परिश्रम नहीं करता, वह हमेशा दुखी व बीमार और दूसरों पर निर्भर रहता है। परिश्रम करने वाले व्यक्ति अपने कर्म से अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। कोई भी व्यक्ति परिश्रम किए बगैर सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है।

(आचार्य अनिल वत्स)