सतीश सिंह। वर्ष 2020-21 के वित्तीय बजट में केंद्र सरकार ने समाज के प्रत्येक क्षेत्र तक पहुंचने की नीतिगत मंशा दिखाई देती है। वैसे तो यह बजट सभी वर्गो के लोगों के लिए कुछ न कुछ लेकर आया है, लेकिन बैंकिंग क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए इसमें विशेष प्रावधान किए गए हैं। बैंक अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करें इसके लिए पूर्व में साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये देने की घोषणा की गई थी। इस वर्ष के बजट में कमजोर बैंकों के प्रदर्शन में सुधार लाने की बात कही गई है। सरकार के इस कदम से बैंकों को अपनी वित्तीय गतिविधियों में पारदर्शिता लाने एवं उन्हें प्रतिस्पर्धी होने में मदद मिलेगी।

सरकार वित्तीय क्षेत्र को भरोसेमंद और मजबूत बनाना चाहती है। इसी मकसद से कुछ सरकारी बैंकों का विलय किया गया है। इस संबंध में सरकार का मानना है कि बड़े बैंक होने से बैंकों को पूंजी की कमी नहीं होगी। इतना ही नहीं, सरकार सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर निगरानी की व्यवस्था को और भी मजबूत बनाना चाहती है, ताकि लोगों की जमा पूंजी सुरक्षित रहे। वित्त मंत्री ने आइडीबीआइ बैंक में सरकार की हिस्सेदारी कम करने की घोषणा की है जिससे सरकार को विनिवेश लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी। बैंकों को अपनी गतिविधियों में तेजी लाने में भी आसानी होगी।

बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घोषणा बैंक जमा पर गारंटी सीमा को बढ़ाकर पांच लाख रुपये करना है। इस सीमा में बढ़ोतरी की मांग बैंकों के खाताधारक लंबे समय से कर रहे थे, लेकिन महाराष्ट्र में पीएमसी घोटाले के बाद इसमें विशेष तेजी आई थी। अब यदि कोई बैंक डूबता है तो बैंक खाते में जमा पांच लाख रुपये तक की राशि सुरक्षित रहेगी। इस घोषणा से निवेशकों का बैंकों पर भरोसा बढ़ेगा और बैंकों को पूंजी की किल्लत भी नहीं होगी। अभी तक डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट 1961 के तहत बैंक में जमा राशि में से कुल एक लाख रुपये तक की राशि सुरक्षित होती है।

व्यक्तिगत आयकर में कटौती करने से मांग में वृद्धि होने की संभावना है। वित्त मंत्री ने बजट में कर स्लैब में बदलाव कर व्यक्तिगत करदाताओं को राहत दी है। करदाताओं के समक्ष पुराने और नए में से फायदे के अनुसार किसी भी स्लैब को अपनाने का विकल्प रखा गया है। नए कर स्लैब में कई तरह के कटौती के लाभ नहीं मिलेंगे, जबकि पुराने स्लैब में ये लाभ मिलते रहेंगे। करदाताओं के पास जब अतिरिक्त पैसे होंगे तो वे बिना अपना मन मारे जरूरत की चीजों को खरीदेंगे।

बजट में कॉरपोरेट्स को लाभांश वितरण कर यानी डीडीटी से राहत देने की घोषणा की गई है। लाभांश कर की व्यवस्था के तहत पहले कंपनियां अपने शेयरधारकों को जो लाभांश देती थीं, उस पर उन्हें लाभांश वितरण कर देना होता था। अब उन्हें लाभांश वितरण कर नहीं देना होगा। कंपनियों को अभी लाभांश वितरण पर 22.35 प्रतिशत अतिरिक्त कर देना होता था जिसमें सेस और सरचार्ज भी शामिल होता था। इस वजह से कंपनियां शेयरधारकों को कम कर दे पाती थीं। अब कर से छूट मिलने पर वे अधिक लाभांश दे पाएंगी जिससे निजी उपभोग में बढ़ोतरी होने की पूरी उम्मीद है।

इससे निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश करने की प्रेरणा मिलेगी। सनद रहे कि कंपनियों के लिए कॉरपोरेट कर को पहले ही 35 प्रतिशत से कम करके 22 प्रतिशत कर दिया गया है। अब नई विनिर्माण कंपनियों के लिए शर्तो के साथ कॉरपोरेट कर को घटाकर 15 प्रतिशत करने का भी प्रस्ताव है। माना जा रहा है कि इन प्रावधानों से कॉरपोरेट्स आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे जिससे बैंकों के कारोबार में भी वृद्धि होगी। कहा जा सकता है कि आम बजट में किए गए तमाम प्रावधानों से बैंकों और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने की पूरी संभावना है।

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)