सूर्यकुमार पांडेय

जबसे वह एक ‘महत्वपूर्ण’ कवि घोषित हो गया है तबसे इस बहस का कोई ‘महत्व’ नहीं रह गया कि वह एक ‘पूर्ण’ कवि है भी या नहीं? वह आज के समय की कविता लिखता है। कविता लिखना क्यों जरूरी है, वह नहीं जानता है। फिर भी वह जो कुछ भी काला-सफेद कर देता है उसके खास खेमे के लोग उस लिखे को ‘जरूरी कविता’ सिद्ध करने में जुट जाते हैं। जब वह चिड़िया पर कविता लिखता है तो वे इसे नारी-विमर्श की कविता बताते हैं। जब वह रंगों पर लिखता है तब उसे सांप्रदायिक सद्भाव को केंद्र में रखकर लिखी गई कविता कहते हैं। वह महत्वपूर्ण कवि, अपने बाकी के सभी काम दाहिने हाथ से करता है, लेकिन कविता बाएं हाथ से लिखता है। इस तरह वह अपने ‘वाम पक्ष’ के सक्रिय होने का प्रमाण देता रहता है। उसके आलोचकों की राय है कि वह एक सिद्धहस्त कवि है। चूंकि बाएं हाथ से लिखता है इसलिए महत्वपूर्ण भी है। मैं उन नामवर आलोचकों का लोहा मानता हूं जिन्होंने उसे महत्वपूर्ण कहा है। मानने को तो मैं उसे सोना, चांदी और यहां तक कि पीतल भी मान सकता हूं, लेकिन ये सभी महंगे हैं। लोहा सस्ता है। यह सर्वहारा की धातु है। लोहे का जीवन में बड़ा महत्व है। मैं तो उसे कवि ही नहीं मानता हूं, जिसकी रचना में लोहा शब्द दो-चार बार नहीं आता।
अब चाहे वह घोड़े की नाल के बहाने आता हो या फिर जूते की कील के जरिये घुस लेता हो। मजदूर हो या किसान, सबकी जिंदगी में लोहा है। इनकी जिंदगी लोहा लेने में और लोहे के चने बोने, काटने और चबाने में ही बीत जाती है। लौह तत्व का सर्वत्र महत्व है। छायावादी भाषा में कहूं तो ‘एक तत्व की ही प्रधानता, कहें उसे जड़ या चेतन।’ लोहा जड़ होकर भी चेतन है। इसे आयरन की कमी के चलते गर्भवती महिलाओं को दिया जाता है। महत्वपूर्ण कवि लिखता है-‘लोहे की गोलियां/ शामिल हैं बंदूक में/ काम आती हैं दुश्मनों के/ आयरन की गोलियां मिलती हैं/ अस्पताल और दवा की दुकान में/ काम आती हैं/ आने वाली पीढ़ियों के।’ आने वाली नस्लों और दुश्मनों को संभव से कोई कवि ही देख सकता है। दूसरा जुर्रत करे तो पागल समझा जाएगा। एक आलोचक टकटकी लगाए हुए मिले। मैंने उनसे इस कविता का रहस्य पूछा। वह स्वयं लौह स्तंभ की तरह स्थिर हो गए। तभी वह कवि मुझसे टकरा गया। उसने स्वयं ही परिचय दिया कि वह एक महत्वपूर्ण कवि है। हालांकि उसे यह नहीं पता था कि वह महत्वपूर्ण है इसलिए कवि है या फिर कवि है इसलिए महत्वपूर्ण है। उसे यह भी जानकारी नहीं थी कि वह कितना महत्वपूर्ण है?
मैंने उसे समझाया, महत्वपूर्ण का मतलब ‘इंपॉर्टेंट’ होता है। वह बोला, फिर तो मुझे पाठ्यक्रम में होना चाहिए। बिना पाठ्यक्रम में आए ‘इंपॉर्टेंट’ का क्या महत्व? विद्यार्थी उसकी कविता रटेंगे कि वह ‘इंपॉर्टेंट’ है और परीक्षा में जरूर पूछा जाएगा। उसे भरोसा नहीं हो पा रहा था कि बिना लोहे के चने चबाए वह रातोंरात इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया? उसकी एक आम शिकायत थी कि जिन आलोचकों को अपनी गांठ से चाय पिलवाई थी, सिर्फ उन्होंने ही उसे महत्वपूर्ण घोषित कर रखा था। जबकि ठर्रेबाज आलोचक उसे साहित्य से खारिज करने पर आमादा थे। (नोट-चाय पीकर आदमी झूठ भी बोल सकता है। नशे में सभी सच बोलते हैं, चाहे आम आदमी हों या आलोचक।) एक असमकालीन कवि ने (जिसका न असम से कुछ लेना-देना था, न ही कालीन से) इस कवि को बताया था कि कैसे उसने एक स्थापित समालोचक को देसी पिलाकर खुद को महत्वपूर्ण घोषित करा लिया था। उसने असम के हालात और कालीन उद्योग की दुर्दशा, दोनों पर कविता लिखी थी। समकालीन आलोचक ने उसे सिर पर उठा लिया था। बाद में किसी अभिजात्य कवि ने उसी आलोचक को बिलैती चटाकर खुद को ‘अति महत्वपूर्ण’ घोषित करा लिया था। उन महा क्रिटिक महोदय ने उसे न केवल मुख्यधारा का कवि सिद्ध किया था, अपितु पुरस्कार भी दिलवाए थे और कविता की पताका भी थमाई थी। महत्वपूर्ण कवि के हाथ डंडी तक नहीं लग पाई थी।
वह बेचारा लोक संवेदनाओं की ओस चाटता हुआ लघु कविता सम्मेलनों में अपनी भड़ास निकालता रहा, किंतु वह एक बात जरूर जानता है कि आज अभिव्यक्ति का संकट है। उसे व्यक्ति के संकट से ज्यादा अभिव्यक्ति का संकट परेशान किए रहता है। कवि सोचता है, शब्द अपनी शक्ति खोते जा रहे हैं। कविता एक जंग लगा हथियार होती जा रही है। फिर भी वह कविता के जरिये एक जंग लड़ना जरूरी समझता है। (शब्द से न सही, सेप्टिक से तो प्रतिरोधी शक्तियां मरेंगी!) अब समस्या यह है कि लड़ाई भीतर से लड़ी जाए या बाहर से! आग दोनों ही तरफ बराबर लगी हुई है। कवि लड़ना चाहता है। किसी ने इस महत्वपूर्ण कवि को समझा रखा है कि जो समय से लड़े, वही असली कवि है। वह शहर के घंटाघर पर चढ़कर समय की वल्गा थाम लेना चाहता है। यह दीगर बात है कि घंटाघर की सुइयां बरसों से बंद पड़ी हुई हैं। वह महत्वपूर्ण कवि अभी-अभी मुझसे मिलकर गया है। अगर आपसे टकरा जाए तो उसे भरपूर सहयोग दीजिएगा। यदि गलती से आप समालोचक भी हैं तब तो सोने पे सुहागा समझिए। वह आपको शर्तिया विदेशी पिलाएगा। वह अपने झोले में एक वजन लिए फिर रहा है। आप उसे ‘अति महत्वपूर्ण’ बताकर उसके झोले और सिर दोनों को हल्का बना सकते हैं।

[ हास्य-व्यंग्य ]