महात्मा गांधी की हत्या के कुछ समय पश्चात ब्रिटेन के तत्कालीन चांसलर ने कहा था कि हमारे समय में किसी अन्य व्यक्ति ने इतने बलपूर्वक और प्रभावकारी तरीके से भौतिक वस्तुओं से अधिक आत्मा की शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया जितनी कि महात्मा गांधी ने प्रदर्शित की। सात दशकों के बाद भी वे शब्द अभी भी सत्य माने जाते हैं। सिर्फ कुछ लोग ही कह सकते हैं कि उन्होंने ऐसे व्यक्ति की उपलब्धियों की बराबरी कर ली है जिसने संसार के सबसे बड़े साम्राज्य को हथियारों के बल पर नहीं, बल्कि विचारों की साधारण शक्ति से हरा दिया। लेकिन गांधीजी के स्वयं के बराबर कोई नहीं हो सकता है। अपने कार्यों और आदर्शों से उन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी दुनिया भर के राजनीतिक प्रचारकों को प्रभावित और प्रेरित किया है। चाहे वे अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका या बर्मा (अब म्यांमार) के नागरिक अधिकारों के नेता हों या किसी अन्य देश-समाज के सुधारक, उन्होंने बार-बार गांधी के उदाहरण का पालन किया है। यह अविश्वसनीय विरासत इस काबिल है कि उसे भलीभांति याद किया जाए। तो आज भारतीय लोकतंत्र के अभिभावक को संसदों के जनक कहे जाने वाले देश के हृदय में उचित स्थान मिलेगा। उस महान व्यक्ति की एक नई मूर्ति का लंदन के पार्लियामेंट स्क्वायर में अब्राहम लिंकन और नेल्सन मंडेला जैसे ऐतिहासिक असाधारण व्यक्तियों की मूर्तियों के बगल में अनावरण किया जा रहा है।

महात्मा गांधी की प्रतिमा की स्थापना से यह सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी कि उनकी शिक्षा भविष्य की पीढ़ियों के लिए जीवंत रहे। यह उस स्क्वायर का भ्रमण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को और उन राजनीतिज्ञों को जो संसद के सदनों में विरोधियों के रूप में बैठते हैं, अपने स्थायी मूल्यों, अहिंसा, लोकतंत्र और सत्य के प्रति समर्पण की याद दिलाएगा। यह स्थान संसार के सबसे पुराने लोकतंत्र और बड़े लोकतंत्र यानी ब्रिटेन और भारत के बीच अविश्वसनीय बंधन के एक प्रतीक के रूप में खड़ा रहेगा। आखिरकार आज गांधीजी के कारण ही हमारे राष्ट्रों के मध्य घनिष्ठ संबंध हैं, जिसका हम आनंद ले रहे हैं। हमारे मध्य बराबरी की भागीदारी है और यह साझा मूल्यों, आपसी समझ और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के इतिहास पर आधारित है। गांधीजी स्वयं हमारी राजधानी के लिए कोई अजनबी नहीं थे। वे सबसे पहले 19वीं सदी में लंदन पहुंचे थे। उस समय वे एक किशोर थे। उन्होंने यहीं पर कानून का अध्ययन किया था और अंत में उन्हें इनर टेंपल बॉर में बुलाया गया था।

लगभग चार दशकों के बाद वह भारतीय स्वतंत्रता अभियान के प्रमुख प्रकाश के रूप में लौटे। हालांकि उपमहाद्वीप के भविष्य पर चर्चा की बैठक विफल हुई थी, तब भी ब्रिटेन के लोगों ने गांधीजी को दिलों में उतार लिया था। फोकस्टोन के बंदरगाह में लंकाशर की मिलों और ईस्ट लंदन की मलिन बस्तियों में उनका स्वागत विशाल उत्साही भीड़ द्वारा किया गया था। लोग अक्सर जमा देने वाली ठंड और घनघोर बारिश में उस व्यक्ति की एक झलक पाने के लिए घंटों इंतजार करते थे जिसके बारे में उन्होंने काफी कुछ सुना था। यह मूर्ति उनके जीवन की इसी अवधि को प्रतिबिंबित करती है। मूर्तिकार फिलिप जैक्सन ने 10 डाउनिंग स्ट्रीट की सीढ़ियों पर गांधी की तस्वीरों के आधार पर एक सुंदर कांस्य मूर्ति बनाई है। यह मूर्ति गांधीजी के उस रूप को दर्शाती है जब वे अंतरराष्ट्रीय राजनेताओं और राजनीतिक दिग्गजों के बीच एक विनम्र गुजराती वकील के रूप में वापस आए थे। प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के स्मारकों से घिरे वह पहले व्यक्ति हो जाएंगे जो सार्वजनिक कार्यालय में नहीं थे, जिन्हें स्क्वायर में मूर्ति के रूप में सम्मानित किया जाए। गांधीजी पहले भारतीय हैं जिनकी मूर्ति पार्लियामेंट स्क्वायर में स्थापित की जा रही है। यह मूर्ति करीब नौ फीट (2.75 मीटर) ऊंची है। मूर्ति की स्थापना 10 लाख पाउंड से अधिक के चंदे की मदद से की जा रही है।

इस स्मारक के संदर्भ में एक और बात गौर करने वाली है। अन्य प्रसिद्ध लोगों की मूर्तियों के विपरीत गांधीजी की मूर्ति बहुत लंबी नहीं बनाई गई है ताकि वह हमें ऊपर से नीचे की ओर देखते हुए न दिखाई दें। इसके बजाय वह लंदन के लोगों के बीच एक साधारण व्यक्ति के समान नीचे रहेगी-एक ऐसे साधारण व्यक्ति की जिसने सही मायने में असाधारण काम किया है। यह फैसला काफी कुछ गांधीजी के चिंतन और आदर्शों के अनुरूप है। उन्होंने हमेशा कमजोर-वंचित वर्ग को ध्यान में रखा है। मैं सोचता हूं कि वह व्यक्ति स्वयं भी यही चाहता होगा कि उसे इसी रूप में दर्शाया जाए। मैं आशा करता हूं कि यह स्मारक लंदन और नई दिल्ली में वर्तमान और भविष्य की सरकारों को हमारे देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रेरित करता रहेगा। ये संबंध हमें उनके द्वारा विरासत में मिले हैं, जिन्हें आगे और अधिक मजबूत किया जाना है। भारत और ब्रिटेन अपने नजदीकी रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जा सकते हैं। दोनों देशों के बीच निरंतर घनिष्ठ दोस्ती का संबंध सही मायने में गांधीजी के लिए एक स्थायी श्रद्धांजलि होगा और भौतिक वस्तुओं पर आत्मा की शक्ति का यह एक स्थायी अनुस्मारक होगा। निश्चित रूप से गांधीजी के आदर्शों की शक्ति पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक समाज के लिए आगे भी प्रेरणा का काम करती रहेगी।

[साजिद जावेद: लेखक ब्रिटेन के संस्कृति, मीडिया और खेल मंत्री हैं]