मन जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य है। इसकी शक्ति के आगे देवता, ऋषि, मुनि, साधक, विद्वान और महाबली भी हारते रहे हैं। मन की शक्ति से ही निर्बल और साधारण लोगों ने भी बड़ी से बड़ी सफलताएं हासिल की हैं। ऐसे लोग उपलब्धियां अर्जित कर महान हो गए। मन को समझना ही सबसे बड़ा ज्ञान है। जो इससे नियंत्रित हो गया, वह विनाश की ओर बढ़ा। जिसने मन को जीत लिया, उसने जग को जीत लिया। मन स्वयं में कुछ नहीं एक उर्वरा भूमि की तरह है। जैसे खेत को तैयार किया जाता है और उसके बाद श्रेष्ठ बीज बोए जाते हैं। बीज बोने के बाद खेत की निरंतर देखभाल होती है और समय पर सिंचाई की जाती है, खाद आदि डाली जाती है। खेत की सुरक्षा के लिए चारों ओर बाड़ लगा दी जाती है। इसके बाद लहलहाती फसल की कामना की जाती है। मन भी ऐसा ही है। मन में सुख, समृद्धि, प्रतिष्ठा और शक्ति की कामनाएं उठनी स्वाभाविक हैं, किंतु क्या मन इसके लिए तैयार है। मन को यह ज्ञात होना चाहिए कि उसे क्या चाहिए। लक्ष्य के बारे में कोई भी दुविधा न रहे। शंकित और भ्रमित मन उजाड़ खेत की तरह है, जहां से कुछ भी मिलने वाला नहीं है। लक्ष्य की स्पष्टता मन की तैयारी है। मन को बताएं कि उसे किस राह पर चलना है और क्या प्राप्त करना है। अपने लक्ष्य के अनुरूप मन में स्वस्थ विचारों का रोपण करें और उन्हें विकसित होने दें। मन शुभ विचारों से भरा होगा, तो रुग्ण विचारों के लिए स्थान ही नहीं बचेगा।
मन को नियंत्रित करना भी जरूरी है। हम एक ऐसे संसार में रह रहे हैं, जहां सत्य के साथ असत्य, भलाई के साथ दुष्टता, ज्ञान के साथ मूढ़ता, कर्म के साथ ढोंग और आचार के साथ कदाचार भी पल रहा है। जीवन में हर पल दो विकल्प नजर आते हैं। इनमें से एक का चयन करके ही आगे बढ़ा जा सकता है। एक बार गलत राह चुन ली, तो पीछे लौटना कठिन हो जाता है। गलत भी ठीक लगने लगता है। मन को हर पल बचाने के लिए ऐसी आवश्यकता है कि कुविचार मन तक पहुंच ही न सकें। यह मात्र परमात्मा की कृपा से संभव हो सकता है। परमात्मा से सदैव यह मांगें कि मन को भटकाने वाले विचार निकट ही न आएं। परमात्मा मन में ही है और वह आपकी याचना को सुन रहा है। मन के विचार ही कर्मों का रूप लेते हैं और जीवन को आनंद से परिपूर्ण करते हैं। हर धर्म में पवित्र ग्रंथ हैं। हर भाषा में सत्साहित्य हैं। इनसे विचार ग्रहण कर मन की भूमि में शुभ संकल्पों की हरी भरी फसल उगाएं। मन की यह शक्ति ही सफलता की ओर ले जाएगी।
[ डॉ. सत्येंद्र पाल सिंह ]