संजय गुप्त

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत का मुख्य आधार प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के कामकाज और व्यक्तित्व पर आम जनता का भरोसा है। यह एक सक्षम प्रशासक और दृढ़ राजनेता की उनकी छवि ही है जिसने लगभग डेढ़ दशक बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा की अभूतपूर्व वापसी कराई। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की बड़ी योजनाओं और फैसलों को लोगों ने न केवल सराहा है, बल्कि उन्हें अपने जीवन स्तर में सार्थक बदलाव का माध्यम भी माना है। स्वच्छता अभियान, स्मार्ट सिटी, सांसद आदर्श ग्राम योजना, गरीब महिलाओं को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन देने की उज्ज्वला योजना, कौशल विकास कार्यक्रम आदि के बाद नोटबंदी के ऐतिहासिक निर्णय ने लोगों में इस भरोसे का संचार किया है कि मोदी देश को आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं और उनके पास विकास और जनकल्याण का सही एजेंडा है। एक के बाद एक चुनावों में जनता के इस भरोसे पर मुहर भी लग रही है। प्रधानमंत्री की यह छवि भाजपा की कितनी बड़ी ताकत है, इसका अंदाजा हाल के विधानसभा चुनावों, विशेषकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के नतीजों से लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक जीत के बाद किसी विधायक को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय गोरखपुर के सांसद आदित्यनाथ योगी को मुख्यमंत्री बनाना और उनकी मदद के लिए दो उपमुख्यमंत्रियों का चयन भी मोदी और अमित शाह की दूरगामी रणनीति का हिस्सा है। आदित्यनाथ योगी एक संत राजनेता हैं। भले ही एक वर्ग उनके कुछ बयानों के आधार पर उनकी छवि एक कट्टर राजनेता की बनाने की कोशिश करता रहा हो और अभी भी कर रहा हो, लेकिन सच्चाई यह है कि आदित्यनाथ गोरखपुर के जिस मठ के प्रमुख हैं वह सामाजिक एकता और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल माना जाता है। उपमुख्यमंत्री बनाए गए केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा भी राज्य में भाजपा की रणनीति के केंद्र रहे हैं। अब जब उत्तर प्रदेश में मंत्रियों ने अपने-अपने विभागों में कामकाज भी आरंभ कर दिया है तो उन्हें आम जनता की उम्मीदों को पूरा करने में जुट जाना चाहिए। यह तभी होगा जब वे मोदी के इस मंत्र को सही तरह से ग्रहण करेंगे कि चुनाव बहुमत से जीता जाता है, लेकिन सरकार सर्वमत से चलती है।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और उनकी टीम को समाज के हर वर्ग को अपने साथ लेकर चलना होगा। मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी भाजपा के चुनावी घोषणापत्र को पूरा करने में जुट गए हैं, लेकिन उन्हें सतर्क रहने की भी आवश्यकता है, विशेषकर सरकार की प्राथमिकताओं के मामले में। उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन को दूर करने और विकास की राह प्रशस्त करने के लिए एक व्यापक एजेंडे की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री के रूप में योगी के चयन को अभी भी विपक्षी दलों के साथ-साथ कुछ लोग संशय की दृष्टि से देख रहे हैं और वे यह साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे कि योगी सरकार हिंदूवादी एजेंडे पर चल रही है। अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा है। इसमें हर्ज नहीं कि भाजपा अपने घोषणापत्र पर यथाशीघ्र अमल करे, लेकिन यह कार्य न तो हड़बड़ी में होना चाहिए और न ही सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता के रूप में। अवैध रूप से चलने वाले कारोबारों में सिर्फ बूचड़खाने ही शामिल नहीं हैं। तमाम ऐसे उद्योग भी हैं जो प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश में अवैध खनन का कारोबार भी बहुत गहरा है। इन सब पर अंकुश लगाने के लिए एक समग्र नीति की आवश्यकता है। राज्य के कुछ हिस्सों से जिस तरह ऐसी खबरें आईं कि बूचड़खानों पर आनन-फानन ताले डलवाए जाने लगे उससे विपक्षी दलों और मीडिया के एक हिस्से को योगी सरकार की आलोचना का मौका मिल गया। यह एक सच्चाई है कि आज के समाज में मांसाहार किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं है। हिंदुओं का एक बड़ा हिस्सा भी मांसाहार से परहेज नहीं करता। योगी सरकार इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकती कि मांस का कारोबार आज एक बड़ा उद्योग बन चुका है। सही नियमन और निगरानी के जरिये इस उद्योग को बढ़ावा भी दिया जा सकता है और मांस का अवैध कारोबार करने वाले लोगों पर अंकुश भी लगाया जा सकता है। अवैध बूचड़खाने वर्षों से चल रहे हैं और पहले की सरकारों ने राजनीतिक कारणों से उनकी ओर निगाह न डालना ही बेहतर समझा। बेहतर हो कि अब अवैध बूचड़खानों पर कोई कार्रवाई इस तरह हो कि वे तालाबंदी का शिकार होने के बजाय नियम-कायदों का पालन करने के लिए विवश हों।
मुख्यमंत्री बनने के बाद एक सांसद के रूप में लोकसभा में अपने संबोधन में आदित्यनाथ योगी ने उत्तर प्रदेश को दंगा मुक्त बनाने का संकल्प व्यक्त करने के साथ ही यह भी कहा कि वह राज्य में कानून एवं व्यवस्था में सुधार को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे। उनका यह संकल्प इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तर प्रदेश एक लंबे समय से गुंडाराज से त्रस्त रहा है। राज्य में कानून एवं व्यवस्था की बदहाली पूर्ववर्ती सरकारों की नाकामी की देन है, क्योंकि पहले की सरकारें न केवल अपने स्तर पर पुलिस के ढांचे में सुधार की अनदेखी करती रहीं, बल्कि उन्हें पुलिस सुधारों संबंधी सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश भी रास नहीं आए। रही-सही कसर पुलिस के राजनीतिक इस्तेमाल ने पूरी कर दी। परिणाम यह है कि उत्तर प्रदेश में उन तत्वों का दुस्साहस हद से अधिक बढ़ चुका है जो हत्या, अपहरण, हफ्ता वसूली जैसी गतिविधियों में लिप्त हैं। योगी सरकार को कानून एवं व्यवस्था में सुधार के लिए एक व्यापक कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार के साथ उसे उसकी प्राथमिकताएं भी बताए जाने की आवश्यकता है। जब पुलिस अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करने लगेगी तो उन तत्वों पर भी अंकुश लगने लगेगा जो महिलाओं के साथ छेड़छाड़-दुव्र्यवहार करते हैं। नि:संदेह महिलाओं को सुरक्षा देना किसी भी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता होनी ही चाहिए, लेकिन शासन को यह भी देखना होगा कि पुलिस की कोई कार्रवाई किसी आम युगल के लिए समस्या का कारण न बने और न ही यह संदेश जाए कि नैतिकता के नाम पर लोगों की जीवनशैली में हस्तक्षेप किया जा रहा है।
वास्तव में उत्तर प्रदेश में योगी के नेतृत्व वाली युवा टीम को शासन के तौर-तरीकों के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी से सीख लेने की आवश्यकता है। मोदी जिस तरह गुणात्मक परिवर्तन के साथ दूरगामी दृष्टि से बड़े बदलाव को मूर्त रूप दे रहे हैं वह शासन का आदर्श तरीका है। योगी सरकार को मोदी से एक सबक यह भी सीखने की आवश्यकता है कि किस तरह उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद कुछ समय दिल्ली को समझने में लगाया। शुरुआती दिनों में खुद प्रधानमंत्री ने यह स्वीकार किया था कि वह दिल्ली की कार्यसंस्कृति को सीखने की कोशिश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश सही मायने में उत्तम प्रदेश तभी बनेगा जब छापामार शैली वाले प्रयासों के बजाय विकास और जनकल्याण की व्यापक रूपरेखा बनाई जाएगी और उस पर सुविचारित तरीके से अमल किया जाएगा। इसके लिए ऐसी क्रांतिकारी सोच की आवश्यकता है जो आम जनता को यह सोचने के लिए विवश कर दे कि योगी की सरकार वास्तव में बदलाव की वाहक है। किसी भी सरकार के कामकाज के आकलन के लिए एक सप्ताह का समय बेहद कम है, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में आदित्यनाथ योगी को कम समय में ही अपने आलोचकों को गलत साबित करना है।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं  ]