लोकमित्र

पाकिस्तान में फांसी की सजा पाए भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आइसीजे) ने भारत की दलीलों को सही पाया। उसका फैसला पकिस्तान को बेनकाब करने वाला है। आइसीजे ने न केवल कुलभूषण जाधव की फांसी पर फिलहाल रोक लगा दी, बल्कि पाकिस्तान को यह निर्देश भी दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि जाधव की जान को कोई खतरा नहीं हो। अंतरराष्ट्रीय अदालत की 11 सदस्यीय बेंच ने यह कहकर भी पाकिस्तान को जोरदार झटका दिया कि कुलभूषण जाधव का मामला वियना संधि के तहत आता है। गौरतलब है कि पाकिस्तान की एक बड़ी दलील यही थी कि यह मसला तो वियना संधि के दायरे में आता ही नहीं है। उसने यह तर्क भी दिया था कि जासूसी और आंतकवाद फैलाने के मामले इस संधि के दायरे में नहीं आ सकते। पाकिस्तान की यह दलील भोथरी साबित हुई। आइसीजे ने यह कहकर एक तरह से पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया कि कुलभूषण जाधव को काउंसलर एक्सेस मिलना चाहिए था। ध्यान रहे कि पाकिस्तान जाधव से संपर्क-संवाद के भारत के अनुरोध को लगातार ठुकराता रहा। भारत ने ऐसा अनुरोध एक दर्जन से ज्यादा बार किया। आइसीजे का यह फैसला भारत की प्रारंभिक जीत है। इसका श्रेय विदेश मंत्रालय के साथ-साथ वकील हरीश साल्वे और उनकी टीम को जाता है। अंतरराष्ट्रीय कानूनी मामलों में उनका अनुभव काम आया। नि:संदेह यह अंतिम फैसला नहीं है, लेकिन भारत ने इस मामले को जिस तरह सकारात्मक आक्रामकता के साथ रखा उससे उम्मीद बंधती है कि अंतिम फैसले में अंतरिम फैसले की झलक मिलेगी। आइसीजे के इस अंतरिम फैसले से इसके प्रति सुनिश्चित हुआ जा सकता है कि अंतिम फैसला आने तक पाकिस्तान जाधव को फांसी पर नहीं चढ़ा सकता।
जाधव मामले में अंतिम फैसला अंतरिम फैसले के अनुकूल आने की संभावना इसलिए भी है, क्योंकि आमतौर पर जो जज प्रारंभिक फैसला सुनाते हैं वही अंतिम फैसला देते हैं। कुलभूषण जाधव के फैसले की सुनवाई में 11 जजों की पीठ कर रही थी। इसमें भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दलवीर भंडारी के साथ चीन की भी एक महिला जज हैं। स्पष्ट है कि कुछ पाकिस्तानी पत्रकारों का यह दुष्प्रचार फिजूल है कि भंडारी के कारण फैसला उसके खिलाफ आया होगा। ऐसे पत्रकार शायद इसकी भी अनदेखी कर रहे हैं कि फैसला सर्वसम्मत से दिया गया। अंतरराष्ट्रीय अदालत की 11 सदस्यीय बेंच ने यह भी कहा है कि जाधव की गिरफ्तारी का मसला विवादित है। पिछले साल जब जाधव की गिरफ्तारी की सूचना दी गई थी तब पाकिस्तान ने उन्हें बलूचिस्तान से गिरफ्तार करने का दावा किया था, लेकिन उसके इस दावे को कई स्तरों पर चुनौती दी गई। भारत और ईरान का यही मानना है कि उन्हें ईरानी धरती से गिरफ्तार किया गया।
आइसीजे ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसे कुलभूषण जाधव मामले में सुनवाई का अधिकार है, जबकि पाकिस्तान इस मामले को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का बता रहा था। आइसीजे के मुख्य जज जस्टिस रॉनी अब्राहम का फैसला यह बताता है कि पाकिस्तान ने भारत और जाधव के विरुद्ध जो भी दलीलें दीं वे सब कमजोर साबित हुईं और 11 में से किसी जज को वे रास नहीं आईं। इससे पहले आइसीजे में 15 मई को भारत और पाकिस्तान ने अपना-अपना पक्ष रखा था। भारत ने सबूतों के आधार पर कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए जाधव पर पाकिस्तान के सभी आरोपों को झूठ बताया था, जबकि पाकिस्तान ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बताते हुए अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई पर ही सवाल खड़े कर दिए थे। उस दौरान वकील साल्वे ने यह भी आशंका जताई थी कि पाकिस्तान आइसीजे में सुनवाई पूरी होने से पहले ही कहीं जाधव को फांसी न दे दे। शायद इसीलिए आइसीजे को बहुत साफ और स्पष्ट शब्दों मे अपना अंतरिम फैसला सुनाना पड़ा। यह सही है कि कुलभूषण जाधव के लिए अभी लंबी लड़ाई लड़नी होगी, लेकिन यह देखना सुखद रहा कि भारत सरकार संभवत: पहली बार अपने नागरिक को बचाने के लिए इस सीमा तक गई और उसने कई लोगों की आशंका की अनदेखी करते हुए आइसीजे का दरवाजा खटखटाया। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि यह मामला पाकिस्तान के साथ जुड़ा था और जनभावनाएं यह मांग कर रही थीं कि सरकार जाधव को बचाने के लिए हर संभव कदम उठाए। वैसे सुषमा स्वराज ने कहा भी था कि भारत के बेटे को बचाने के लिए जो भी संभव होगा, किया जाएगा।
इंटरनेशनल कोर्ट में भारत की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने तो पाकिस्तान की तरफ से डॉ. मोहम्मद फैजल ने दलीलें पेश कीं। साल्वे ने कोर्ट में यह भी कहा था कि मैं भारत की ओर से यह बताना चाहता हूं कि भारत के 125 करोड़ लोग कुलभूषण जाधव की वापसी की राह देख रहे हैं। भारत की ओर से दलीलें पेश किए जाने के बाद जब पाकिस्तान की बारी आई तो पाकिस्तान जाधव के कथित कबूलनामे का एक वीडियो दिखाना चाहता था, लेकिन कोर्ट ने इसकी इजाजत नहीं दी। भारत पहले से ही कह रहा था कि पाकिस्तान ने पिछले साल जाधव की गिरफ्तारी के बाद जो वीडियो जारी किया था वह फर्जी तरह से तैयार किया गया था। छह मिनट के इस वीडियो में सौ से ज्यादा कट देखे गए थे। इस फुटेज में कैद कुलभूषण का कबूलनामा देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वह टेलीप्रॉम्प्टर देखकर अपनी बात कह रहे हों। आइसीजे में सुनवाई के दौरान पाकिस्तान ने यह कहा था कि जाधव के पास अपील के लिए 150 दिन हैं। मतलब यह कि अभी अगस्त तक उसे फांसी नहीं चढ़ाया जाएगा, जबकि जब पाकिस्तानी फौजी अदालत का फैसला आया था तब पाकिस्तानी मीडिया ने यह रिपोर्ट किया था कि जाधव के पास अपनी जिंदगी के बचाव के लिए अधिकतम 50 दिन ही बचे हैं। शायद इसी कारण भारत को यह दलील देने का मौका मिला कि पाकिस्तान मानवाधिकारों को हवा में उड़ा देता है। यह ध्यान रहे कि अंतरराष्ट्रीय अदालतें मानवाधिकारों को लेकर बहुत संवेदनशील हैं। वे गंभीर से गंभीर से मामलों को मानवाधिकारों की कसौटी पर कसती हैं। पिछले महीने जब पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट ने नौ सेना के पूर्व अफसर कुलभूषण जाधव को जासूसी के मामले में फांसी की सजा सुनाई थी तो यह माना गया था कि पाकिस्तानी सेना विदेश नीति के मामले में अपनी ही सरकार को कमजोर करना चाहती है। हैरत नहीं कि इस फैसले के बाद पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच तकरार और बढ़ जाए।