शिवेंद्र कुमार सिंह

फिल्म और रंगमंच के बेहतरीन अभिनेता, लेखक, माहिर किस्सागो, वाइल्ड लाइफ के शौकीन, जोशीले खेल प्रेमी और खुद भी कई खेलों के गहरे जानकार टॉम आल्टर नहीं रहे। स्किन कैंसर से जूझ रहे ऑल्टर ने 67 साल के जीवन में कई क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। आज के युग में उनके जैसी बहुमुखी प्रतिभा की शख्सियत मिलना कठिन है। फिल्म, रंगमंच से अलग टॉम आल्टर एक अलग ही शख्सियत के मालिक थे। बचपन में सिखाई गई कुछ बातों को मरते दम तक शायद ही कोई उस तरह निभाता हो जैसे टॉम आल्टर ने निभाया। बचपन में अपने से बड़े एक दुकानदार को ‘तुम’ कह देने पर पिताजी ने कान खींचे थे तो मरते दम तक उन्होंने किसी को ‘तुम’ नहीं कहा। उनकी जुबां पर आप और हुजूर जैसे शब्द ही होते थे। बचपन में ही चलती कार से टॉफी का ‘रैपर’ फेंकने पर डांट पड़ी तो उन्होंने ताउम्र सड़क पर कुछ नहीं फेंका। बचपन में ही एक बार रेत में स्कूटर फंसने पर पिता की मदद करने के बजाय चुपचाप खड़े रहने पर पड़ी डांट ने उन्हें हमेशा लोगों की मदद करना सिखाया। ऐसा कभी नहीं हुआ कि टॉम आल्टर ने सड़क पर कोई दुर्घटना देखी हो और वह वहां मदद के लिए न रुके हों। ये तीन सबक टॉम ऑल्टर की जिंदगी में राज कपूर की फिल्म ‘तीसरी कसम’ जैसे थे।


टॉम आल्टर की एक और खासियत थी। वह मोबाइल नहीं रखते थे। कहते थे-मोबाइल झूठ बोलना सिखाता है। उनका तर्क था कि मोबाइल हाथ में आ जाए तो आप होते कहीं हैं और बताते कहीं और हैं। टॉम आल्टर से संपर्क करने का जरिया था-ईमेल। वह वक्त के बेहद पाबंद थे। एक खेल पत्रकार और फिर संगीत प्रेमी के तौर पर जब भी हमारी मुलाकात हुई तो तय समय पर हुई। खेलों से टॉम आल्टर का गहरा नाता था। उनकी एक पहचान यह भी रही कि उन्होंने सचिन तेंदुलकर का पहला वीडियो इंटरव्यू किया था। वह खुद भी क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, बैडमिंटन, बेसबॉल, टेनिस, तीरंदाजी और एथलेटिक्स के मंझे हुए खिलाड़ी थे। बचपन में अपने बड़े भाई के साथ क्रिक, हॉक, सॉक, फुट का उनका जुमला उन्हें हमेशा याद रहा। इस जुमले का मतलब होता था कि आज क्या खेलना है-क्रिकेट, हॉकी, सॉकर या फुटबॉल। खेल की बात करिए तो उनकी आंखों में एक खास चमक सी आ जाती थी।
22 जून 1950 को मसूरी में पैदा हुए टॉम आल्टर का बचपन इलाहाबाद, अमेरिका, सहारनपुर, राजपुर आदि में गुजरा। मसूरी में पढ़ाई लिखाई हुई। उनके दादा-दादी 1916 में अमेरिका से आकर भारत आ बसे थे। टॉम कहा करते थे कि मसूरी की वादियों में रोमांस है। नौवीं-दसवीं में उन्हें थिएटर का चस्का लगा, जो जिंदगी भर उनके खून में रहा। 70 के दशक में टॉम आल्टर ने राजेश खन्ना की फिल्म ‘अराधना’ देखी। इसके बाद तो उन पर राजेश खन्ना का इश्क तारी हो गया। सचिन तेंदुलकर के अलावा जिस शख्स का नाम लेते ही उनकी आंखें चमक जाती थीं वह राजेश खन्ना ही थे। उनकी हर फिल्म का किरदार उन्हें जुबानी याद था। वह कहा करते थे, ‘आज की पीढ़ी इसे समझ ही नहीं सकती कि राजेश खन्ना की फिल्म रिलीज होने का इंतजार किस बेसब्री से किया जाता था।’ राजेश खन्ना से प्रेरितहोने के बाद टॉम आल्टर ने फिल्मों का रुख किया। उनकी पहली फिल्म ‘चरस’ थी। फिल्म रिलीज होने पर वह मोटरसाइकिल से अपनी गर्लफ्रेंड के साथ फिल्म देखने गए। बाद में वही उनकी पत्नी बनीं। आल्टर ने शतरंज के खिलाड़ी, क्रांति, सरदार, कर्मा, परिंदा जैसी दर्जनों फिल्मों के साथ टीवी सीरियल में भी यादगार किरदार अदा किए। उनके बारे में एक और दिलचस्प किस्से के बिना बात अधूरी रहेगी। करीब चार दशक पहले उन्होंने नसीरुद्दीन शाह और बेंजामिन गिलानी के साथ मिलकर एक नाटक टोली बनाई थी। नसीरुद्दीन शाह राजेश खन्ना को अभिनेता ही नहीं मानते थे और टॉम आल्टर के लिए राजेश खन्ना अभिनय के ‘भगवान’ थे। इसे लेकर दोनों में खूब बहस हुआ करती थी। नसीरुद्दीन शाह बताते हैं कि न कभी उन्होंने हार मानी और न ही कभी टॉम आल्टर ने।
अमूमन जिस उम्र में लोग शिकायतों से भर जाते हैं उस उम्र में टॉम को कोई शिकायत नहीं थी। वह कहते थे, ‘मेरे जैसे इंसान को जिंदगी में और क्या चाहिए। मैंने राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर के साथ अभिनय किया, दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद जैसे दिग्गज अभिनेताओं के साथ फिल्में कीं। सुनील गावस्कर के साथ क्रिकेट खेला, पटौदी साहब से मिला, मिल्खा सिंह से मिला...जवानी के जितने भी सपने थे सब पूरे हो गए।’ वैसे इसी साल फरवरी में मुलाकात के दौरान उन्होंने अपने कुछ और सपनों के बारे में चर्चा की थी। एक तो नोबेल पुरस्कार विजेता बॉब डिलन और दूसरे बीटल्स का हिस्सा रहे ग्रीको स्टार्स से मुलाकात करना। इसके अलावा वह जिम कॉर्बेट का भी रोल करना चाहते थे। उन्हें इसका भरोसा था कि उनकी ये चाहतें भी पूरी होंगी, मगर अफसोस कि ऐसा न हो सका।