परिवार सजातीय सदस्यों के बीच गहरे संवेदनशील संबंधों का एक सुमेल है। परिवार के सभी सदस्यों को सद्भाव और सम्मान की एक डोर बांधे रखती है। यह डोरी ही सबको एक सूत्र में पिरोती है। यह डोरी जितनी सुदृढ़ होगी परिवार उतना ही खुशहाल एकजुट और स्थायित्व लिए होता है। परिवार का यही मूलमंत्र है कि उसके सभी सदस्य आपसी सहयोग और सम्मान को महत्व दें। बडे़ छोटों को प्यार और सहयोग करें और छोटे बड़ों का विश्वास, आदर और सम्मान करें। भारतीय परिवार जब तक ‘सहयोग ले, सम्मान दे’ के सूत्र पर आधारित था तब तक सभी बाधाओं को चीरकर नित-नूतन विकसित होता रहा, परंतु आज इस लीक से हट जाने पर विसंगतियां और व्यतिक्रम खडे़ हो गए हैं। हमारी संस्कृति एकल और संयुक्त परिवार दोनों का एक साथ सम्मान करती है। परिवार में अगर कुछ समस्याएं पैदा होती हैं तो इनका नया समाधान भी मिल जाता है। पारिवारिक सूत्र है कि समस्याएं पैदा होने से पहले ही उनका समाधान हो जाए और यह तभी संभव है जब सभी के बीच एक गहरी आस्था और विश्वास का भाव बना रहे।
वर्तमान परिवारों की सबसे बड़ी समस्या है आपसी संबंधों में दरार, अविश्वास और संदेह में लगातार वृद्धि। रिश्तों के बीच विश्वास पनपना चाहिए, परंतु पनप रहा है अविश्वास। रिश्तों का आधार भावना और संवेदना पर आधारित होना चाहिए, लेकिन यह आधारित है गणित के गठजोड़ पर। अविश्वास रिश्तों में खटास पैदा करता है, दूरियां बढ़ाता है और अनेक प्रकार की गलतफहमियां उत्पन्न करता है और यही वजह है कि परिवार टूटते चले जा रहे हैं। इस एकल परिवार की स्थिति भी अत्यंत दयनीय और चिंताजनक है। यहां भी अविश्वास, शक-संदेह और भ्रम व्याप्त है। परिवार कष्टों से सीख लेता है और खुशियां बिखेरता है। परिवार की संरचना ही कुछ ऐसी होती है कि सभी के बीच भावनाएं और संवेदनाएं जुड़ी हुई होती हैं। यही भावनाएं घावों को भरती हैं। संबंधों में यदि भ्रम, संदेह और गलतफहमियां पैदा हो रही हों तो उसे और अधिक बढ़ने के बजाय आपस में या शुभचिंतकों की उपस्थिति में शांत और संतुलित होकर सुलझा लेना चाहिए। संदेह, भ्रम और अविश्वास का कोई अंत नहीं।
[ डॉ. सुरचना त्रिवेदी ]