पीयूष पांडे

काश! मैं राजनेता होता। राजनेता होता तो 50-100 एकड़ जमीन, 10-15 फ्लैट, दो-तीन एजेंसी और 100-200 करोड़ रुपये के बैंक बैलेंस के साथ मोटा आसामी होता। इलाके में जलवा होता। जलवे के बीच जब कभी इलाके में बलवा होता तो मेरी ही बाइट टेलीविजन चैनलों पर चलती। मेरी एक सिफारिश पर स्कूल में एडमिशन होते, बाबुओं के ट्रांसफर होते। मैं राजनेता होता तो मेरा बेटा ऑटोमेटिकली राजनेता होता। फिर उसके पास भी 100-200 एकड़ जमीन, 40-50 फ्लैट, 10-15 एजेंसी, स्विस बैंक में अकाउंट और 500-1000 करोड़ रुपये का माल होता। काश! ऐसा होता। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया तो इसकी दो बड़ी वजह रहीं। पहली, हमारे पिताजी राजनीति से दूर रहे। इस तरह उन्होंने एक भावी नेता के मन में राजनेता बनने की ललक का पैदा होने से पहले ही दम घोंट दिया। दूसरी, हमारे जमाने में राजनीति सिखाने का कोई कोर्स कहीं नहीं था। राजनीतिक दुनिया से पहला वास्ता पड़ते ही अपन कन्फ्यूज हो गए। यहां अंगूठा छाप मुख्यमंत्री था तो विदेश से पढ़कर आया मुख्यमंत्री भी। यहां घोटाले का आरोप लिए बंदा भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में था और ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांटने वाला भी। राजनीति में एंट्री कैसे ली जाए इसका कोई अता-पता नहीं था। कुल मिलाकर मेरा राजनेता बनने का सुनहरा ख्वाब उसी तरह टूट गया, जिस तरह टार्जन जैसी सुपरहिट फिल्म देने के बाद भी हेमंत बिरजे का बॉलीवुड का किंग बनने का ख्वाब टूट गया था।
इधर जब से मैंने यह खबर पढ़ी है कि मुंबई में नेतागीरी सिखाने का कोर्स शुरू हो गया है तब से मन प्रफुल्लित है। कोर्स की फीस भी सिर्फ ढाई लाख रुपये है। इतना वक्त तो बच्चे आजकल उन काउंसलिंग में खर्च कर देते हैं जिनमें बताया जाता है कि भाई तू है किस लायक और तुझे कौनसा कोर्स करना चाहिए? ऐसा लग रहा है कि बेटे को नेतागीरी का कोर्स कराकर गंगा नहाया जाए। बेटा राजनेता हो गया तो बुढ़ापे का रोग आलीशान बंगले के लॉन मे बैठकर मजे-मजे में कट जाएगा। दो चार ट्रांसफर-पोस्टिंग कराके थोड़ी परोपकारिता भी हो जाएगी। मेरे भोले पिताजी तो राजनीति को मैली गंगा मानते रहे, लेकिन अपन को मालूम है कि इस मैली गंगा में डुबकी लगते ही घर के नल से अंगूर की बेटी बहने लगेगी।
इस देश में सिर्फ तीन लोगों का जलवा है। एक, फिल्मी सितारे। दूसरा क्रिकेटर। तीसरा राजनेता। बेटे की शक्ल मुझ पर गई है तो कोई प्रोड्यूसर उसे लेकर फिल्म बनाने का बड़ा जोखिम तो लेगा नहीं। फिल्म बनाने के लिए कम से कम दस करोड़ चाहिए जो मेरे पास हैं नहीं तो बेटा हीरो बन नहीं सकता। तिस पर अगर कोई दरियादिली दिखाए भी तो जरूरी नहीं कि एक फिल्म के बाद भी उसके करियर की गाड़ी सरपट दौड़ने लगे। क्रिकेटर बनने की संभावना उसी दिन खत्म हो गई थी, जब कोच ने कीपिंग करने के दौरान उसे सोते हुए पकड़ लिया था। राजनेता बनने की संभावना भी नहीं के बराबर थी, लेकिन अब अचानक उम्मीद जग गई है कि बेटा राजनेता बनकर रहेगा। मैंने बेटे को समझाया, मनाया और नेतागीरी के कोर्स के लिए राजी कर लिया। सब कुछ तय हो गया। ढाई लाख रुपये का ड्राफ्ट तैयार हो गया कि अचानक बेटे ने कहा- ‘पापा, आपने कोर्स का सिलेबस देखा? कितना शानदार है। कितना कुछ है पढ़ने को।’ मैंने भी सिलेबस हाथ में ले लिया। पूरा सिलेबस ऊपर से नीचे तक झटके में पढ़ डाला। फिर धीरे धीरे पूरे सिलेबस पर नजरें गड़ाईं, लेकिन यह क्या !! सिलेबस पढ़ते ही मुझे चक्कर आने लगे। यह कौन सी नेतागीरी सिखाने वाला कोर्स है? सिलेबस में न तो आलाकमान तक पहुंचने के बाबत कोई पाठ है, न आलाकमान से टिकट झटकने के बाबत। बसें फूंकने, ट्रेन रोकने, हंगामा करने, तोड़फोड़ करने जैसे प्रैक्टिकल का कोई जिक्र नहीं। ईवीएम से कैसे छेड़छाड़ की जाए और कैसे ईवीएम के वोट इधर से उधर हो-इस अहम मुद्दे पर किसी लेक्चर तक की बात नहीं। घोटाले-घपले कैसे किए जाएं। घपले में पकड़े जाने पर सीबीआई जांच से कैसे बचा जाए। बंगला खाली करने के पचास नोटिस के बावजूद बंगलापकड़ रवैया बनाया रखा जाए। पार्टी के भीतर विरोधियों को कैसे ठिकाने लगाया जाए। बिन बात के भी विरोधियों से कैसे इस्तीफा मांगा जाए और अपनी कितनी भी बड़ी गलती होने पर कोई माई का लाल इस्तीफा न लेने पाए जैसे अहम विषयों पर विजिटिंग फैकल्टी तक की व्यवस्था नहीं। तो फिर किस बात का नेतागीरी का कोर्स? किस बात के ढाई लाख रुपये? स्वतंत्रता आंदोलन, गांधी-नेहरू-लोहिया-जेपी के विचार, अलग-अलग सरकारों की विदेश नीति, गवर्नेंस के मॉडल वगैरह सिखाने से क्या हो जाएगा जी? मुद्दा तो असल नेतागीरी सिखाने का है और वो कोर्स में सिखाई ही नहीं जा रही। यह तो एक तरह की ठगी है।
मैंने ढाई लाख रुपये का ड्राफ्ट जेब में रखकर एक लंबी गहरी सांस ली। पिछले जन्मों के पुण्यों से बंदे को राजनीति में दलाली का मौका मिलता है। मैं समझ चुका था कि राजनीति के धंधे से कमाई लायक पुण्य मैंने नहीं किए हैं। मैंने बेटे की तरफ देखा और कहा- ‘बेटा तुम नेता बनने लायक नहीं हो। तुम बैंक के इम्तिहान की तैयारी करो।’

[ हास्य-व्यंग्य ]